Raksha Bandhan Date 2019: रक्षाबंधन कब है और रक्षाबंधन की कथा

Raksha Bandhan Date 2019: रक्षाबंधन कब है और रक्षाबंधन की कथा
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Raksha Bandhan 15 August 2019 : रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार (Raksha Bandhan Festival) न केवल आज से बल्कि सदियों से चल रहा है। देवताओं ने भी युद्ध में जाने से पहले अपनी बहनों से राखी बंधवाई थी । इतना ही नहीं मुस्लिम शासकों ने भी राखी की लाज रखते हुए अपनी हिंदू बहनों की रक्षा की थी । अगर आप रक्षाबंधन की इन कथांओं (Raksha Bandhan Ki Kathaye) के बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे

Raksha Bandhan 2019 Date : रक्षाबंधन कब है 2019 में (Raksha Bandhan Kab Hai 2019) और क्या है रक्षाबंधन से जुड़ी कथांए (Raksha Bandhan Stories) अगर आपको इसके बारे में नहीं पता तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे। रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) भाई -बहन के अटूट संबंध का त्योहार । इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और भाई बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं । रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार (Raksha Bandhan Festival) न केवल आज से बल्कि सदियों से चल रहा है। देवताओं ने भी युद्ध में जाने से पहले अपनी बहनों से राखी बंधवाई थी । इतना ही नहीं मुस्लिम शासकों ने भी राखी की लाज रखते हुए अपनी हिंदू बहनों की रक्षा की थी । अगर आप रक्षाबंधन की इन कथांओं (Raksha Bandhan Ki Kathaye) के बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी कथाओं ( Raksha Bandhan Katha) के बारे में....


रक्षाबंधन की तिथि (Raksha Bandhan Tithi)

15 अगस्त 2019

रक्षाबंधन की कथांए (Raksha Bandhan Ki Kathaye)


रक्षाबंधन देवता और असुरों की कथा ( Raksha Bandhan Devta or Asuro Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार युद्धिष्ठर ने भगवान कृष्ण से रक्षाबंधन की कथा के बारे में पूछा । इस पर भगवान कृष्ण ने कहा- हे पांडव श्रेष्ठ! एक बार दैत्यों तथा असुरों में भयंकर युद्ध छिड़ गया और इस युद्ध की अवधि लगातार बढ़ती ही जा रही थी। असुरों के पास इतनी शक्ति थी कि उन्होंने देवताओं को पराजित कर दिया। जिसके बाद सभी देवता इंद्र के साथ अमरावती चले गए। इसके बाद असुरों का तीनों लोकों पर कब्जा हो गया। जिसेक बाद देवताओं का स्वर्ग में आना मना था और धरती पर कोई भी यज्ञ करने की अनुमति नहीं थी।

दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ-वेद, पठन-पाठन तथा उत्सव आदि समाप्त हो गए। धर्म के नाश से देवताओं का बल घटने लगा। यह देख इंद्र अपने गुरु वृहस्पति के पास गए तथा उनके चरणों में गिरकर निवेदन करने लगे- गुरुवर! ऐसी दशा में परिस्थितियां कहती हैं कि मुझे यहीं प्राण देने होंगे। न तो मैं भाग ही सकता हूं और न ही युद्धभूमि में टिक सकता हूं। कोई उपाय बताइए।वृहस्पति ने इंद्र की वेदना सुनकर उसे रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया गया।

'येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।'

इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर पर द्विजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का तंतु लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधकर युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया। 'रक्षा बंधन' के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय हुई। राखी बांधने की प्रथा का सूत्रपात यहीं से होता है।

रक्षाबंधन जहांगीर और राजपूत बहन पन्ना की कथा ( Raksha Bandhan Jahangir or Rajput Bahan Panna Ki Katha)

भारतीय इतिहास के अनुसार मुसलमान शासक भी रक्षाबंधन की धर्मभावना पर न्योछावर थे। जहांगीर ने एक राजपूत स्त्री का रक्षा सूत्रपाकर समाज को विशिष्ट आदर्श प्रदान किया। इस संदर्भ में पन्ना की राखी विशेषतः उल्लेखनीय है।

एक बार राजस्थान की दो रियासतों में गंभीर कलह चल रहा था। एक रियासत पर मुगलों ने आक्रमण कर दिया। अवसर पाकर दूसरी रियासत वाले राजपूत मुगलों का साथ देने के लिए सैन्य सज्जा कर रहे थे।

पन्ना भी इन्हीं मुगलों के घेरे में थी। उसने दूसरी रियासत के शासक को, जो मुगलों की सहायतार्थ जा रहा था, राखी भेजी। राखी पाते ही उसने उलटे मुगलों पर आक्रमण कर दिया। मुगल पराजित हुए।

इस तरह रक्षा बंधन के कच्चे धागे ने दोनों रियासतों के शासकों को पक्की मैत्री के सूत्र में बांध दिया।


रक्षाबंधन कृष्ण और द्रौपदी की कथा ( Raksha Bandhan Krishna or Draupadi ki katha)

एक कथा के अनुसार जब युद्धिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था । उस समय शिशुपाल और भगवान कृष्ण दोनों ही वहां पर थे । जब युद्धिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण को अपने पास बैठने के लिए आमंत्रित किया तो शिशुपाल भड़कने लगा और श्री कृष्ण को अपशब्द कहने लगा ।

इस पर श्री कृष्ण ने शिशुपाल को चेतावनी दी और उसे रूकने को कहा लेकिन जब वह नहीं माना तो श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया । जब भगवान ने शिशुपाल का वध किया तो श्री कृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र से चोट लग गई और उनके हाथ से खून निलकलने लगा।

हाथ में चोट लगने के कारण खून की धार बह निकली। यह सब द्रौपदी से नहीं देखा गया और उसने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया फलस्वरूप खून बहना बंद हो गया।कुछ समय पश्चात जब दुःशासन ने द्रौपदी की चीरहरण किया तब श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया।यह प्रसंग भी रक्षाबंधन की महत्ता प्रतिपादित करता है।


रक्षाबंधन कर्णावती और हुमायूं की कथा (Raksha Bandhan Karnavati and Humayun ki Katha)

एक कथा के अनुसार यह मध्यकालीन इतिहास की घटना है। उस समय मगलों और राजपूतों में युद्ध चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थी। जब बहादूरशाह जफर चित्तौड़ पर हमला करने वाला था । उस समय रानी कर्णावती बहुत घबरा गई थी। कर्णावती बहादूरशाह जफर से युद्ध करने में सक्षम नहीं थी ।

इसलिए चित्तौड़ की हिन्दूरानी कर्णावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मानकर उनके पास राखी भेजी थी। हुमायूं ने रानी कर्णावती की राखी स्वीकार की और समय आने पर रानी के सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।

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