Raksha Bandhan 2019 : भारत में रक्षाबंधन पर इस राज्य में होता है पत्थर युद्ध

Raksha Bandhan 2019 : भारत में रक्षाबंधन पर इस राज्य में होता है पत्थर युद्ध
X
भारत में रक्षाबंधन को एक महत्वपूर्ण त्योहार के रुप में मनाया जाता है, जिसमें शांति का संदेश भी दिया जाता है, लेकिन भारत के उत्तराखंड राज्य में पत्थर मारने की परंपरा को निभाया जाता है, जिसे बग्वाल नाम से भी जाना जाता है तो आइए जानते हैं कैसे मनाते हैं बग्वाल और कैसे शुरु हुई यह परंपरा

Raksha Bandhan 2019 रक्षाबंधन का त्योहार भारत में बड़ी ही शांति के साथ के मनाया जाता है। जिसमें बहने अपने भाई को राखी बांधती हैं। लेकिन भारत में एक जगह ऐसी भी है जहां पर रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के दिन खूनी खेल भी खेला जाता है। इस परंपरा के अनुसार इस खेल में एक पक्ष दूसरे पक्ष पर पत्थर फेंकता है। रक्षाबंधन का पर्व साल 2019 (Raksha Bandhan Festival 2019) में 15 अगस्त 2019 के दिन मनाया जाएगा। पत्थर मारने की इस पंरपरा के लिए प्रशासन की और से पूरे इंतजाम किए जाते हैं। जिसमें चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध रहती है। तो आइए जानते हैं भारत में मनाए जाने वाले पत्थर युद्ध के बारे में....


रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट प्रेम का त्योहार है। लेकिन भारत के ही एक राज्य उत्तराखंड में कुमायुं के देवीधूरा में पत्थर युद्ध खेलने की परंपरा है और इसकी तैयारी हर साल प्रशासन की और से की जाती है। इस साल में भी प्रशासन ने इस युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयारी कर ली है।

प्रशासन की और से चिकित्सा सुविधा का इंतजाम भी कर लिया है। उत्तराखंड में इस युद्ध को बग्वाल को बग्वाल कहा जाता है। बग्वाल हर साल रक्षाबंधन के दिन ही मनाया जाता है। जिसमें पत्थर युद्ध खेला जाता है।

इस युद्ध में युवा और बुजुर्ग भी रणबांकुरे शामिल होते हैं। इन रणबांकुरे के हाथ में पत्थर होते हैं जो वह दूसरी तरफ के लोगों पर फेंकते हैं। इस युद्ध में लोग लहूलुहान तक भी हो जाते हैं।

उत्तराखंड की बग्वाल मेला कमेटी के संरक्षक खीम सिंह लमगड़िया, भुवन चंद्र जोशी और कीर्ति वल्लभ जोशी ने इस अजीब परंपरा के बारें में बताया कि इस परंपरा के अनुसार एक पक्ष दूसरे पत्थर पर पत्थर फेंकता है और बग्वाल खेलकर अपनी आराध्य देवी को प्रसन्न करने के लिए खून बहाया जाता है।

इस युद्ध में पत्थरों की बरसात की जाती है और जिसमें कई लोग जख्मी तक हो जाते हैं। इस युद्ध का आयोजन हर साल किया जाता है। जिसमें घायलों को प्राथमिक उपचार भी सरकार की और से दिया जाता है।

बग्वाल कमेंटी के अनुसार यह पर्व प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन के दिन ही आयोजित किया जाता है और इस युद्ध को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आसपास के क्षेत्र के अलावा बाहर से भी आते हैं।


बग्वाल के इस त्योहार को असाड़ी कौथिक के नाम से भी जाना जाता है जो कुमाऊं मंडल के चंपावत जिले के देवीधूरा में मनाया जाता है। पत्थर युद्ध का यह खेल देवीधूरा के खोलीखांड मैदान में खेला जाता है। जिसमें चंपावत के चार खाम तथा सात थोक के लोग हिस्सा लेते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चार खामों के लोग अपनी आराध्य देवी को प्रसन्न करने के लिए नर बलि दिया करते थे। एक साल में एक खाम का नंबर आता है। एक बार नर बलि देने का नंबर चमियाल खाम का था। चमियाल खाम के एक परिवार को नर बलि देनी थी।

उस परिवार में एक बुढ़ा व्यक्ति और उसका एक पौता भी था। उस बुढ़े व्यक्ति ने अपने पोते की रक्षा के लिए मां बाराही की स्तुति की मां उस बुढ़े व्यक्ति से अत्याधिक प्रसन्न हो गई और उसे खोलीखांड मैदान में बग्वाल (पत्थर युद्ध) खेलने को कहा। तभी से उस स्थान पर नर बलि के जगह बग्वाल खेलने की परंपरा शुरु हुई थी।

बग्वाल खेलने के लिए चारों खामों में रणबांकुरे शामिल होते हैं। जिसमें लमगड़िया तथा बालिग खाम एक तरफ और दूसरी तरफ गहड़वाल तथा चमियाल खाम के रणबांकुरे शामिल होते हैं।

इस दिन दोनों तरफ के रणबांकुरे सजकर हाथों में पत्थर लेकर आते हैं और पुजारी का संकेत पाकर एक- दूसरे पर पत्थर फेंकने लगते हैं। दोनों तरफ से पत्थरों की बारिश होती है।

पुजारी के आदेश तक इसी प्रकार खूनी खेल चलता रहता है। पत्थरों की बारिश से बचने के लिए रणबांकुरे छत्तड़े यानी बांस से बनी ढाल का उपयोग करते हैं। इस पंरपरा के अनुसार पहले रणबांकुरे मंदिर में आते हैं और मां बाराही का आर्शीवाद लेते हैं।

बग्वाल के दूसरे दिन मां बाराही की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है और उसके अगले दिन मां की शोभायात्रा धूमधाम से निकाली जाती है और इसी के साथ बग्वाल का खेल भी समाप्त हो जाता है।

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

Tags

Next Story