Ram Navami 2020 Festival : जानिए नारद जी के किस श्राप के कारण भगवान विष्णु को लेना पड़ा राम रूप में जन्म

Ram Navami 2020 Festival : रामनवमी (Ram Navami) को भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है। लेकिन नारद जी ( Narad Ji) ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था। जिसके बाद भगवान विष्णु को राम अवतार में धरती पर अवतरित होना पड़ा था।
नारद जी का श्राप और भगवान विष्णु का राम रूप में जन्म (Narad Ji ka Sharap or Bhagwan Vishnu ka Ram Roop Mai Janam)
नारद मुनि एक ज्ञानी ऋषि और महान तपस्वीं थे। उनके ज्ञान के महादेव और माता पार्वती भी प्रशंसक थे।एक बार माता पार्वती भगवान शिव से नारद जी की प्रशंसा कर रही थीं। तब महादेव ने बताया की नारद मुनि को अपने ज्ञान का अहंकार है।जिस कारण एक बार बंदर का रूप भी लेना पड़ा था।तब शिव जी ने पूरा वृतांत कुछ इस प्रकार से सुनाया।हिमालय पर्वत पर एक पवित्र गुफा थी।जिसके पास से गंगा नदी बहती थी।
पर्वतों और वनों के बीच ऐसा सुहावना वातावरण देख नारद मुनि की इच्छा हुई की वह वहां पर भगवान विष्णु की आराधना करें और वह वहीं पर मग्न होकर तपस्या में लीन हो गए। नारद जी की तपस्या को देखकर स्वर्ग के राजा इंद चिंतित हो उठे कि कहीं उनसे स्वर्ग का राज न छिन जाए और उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए कामदेव को भेज दिया। कामदेव ने हरियाली, रंग बिरंगे फूल, शीतल हवा, अपसराओं के नृत्य, भंवरों की गुंजार और कोयल की आवाज से ऐसा वातावरण उत्पन्न किया। जिससे काम ऊर्जा का संचार हो सके।
लेकिन कामदेव के इस योजना का नारद मुनि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तब कामदेव ने श्राप मिलने के भय से नारद मुनि से अपने इस अपराध के लिए श्रमा मांगी। नारद मुनि ने कामदेव को श्रमा कर दिया और अपने लोक की ओर प्रस्थान कर गए। लेकिन नारद मुनि को इस बात का अहंकार हो गया कि उन्होंने नारद मुनि को परास्त कर दिया है।उन्होंने यह वृतांत शिवजी को सुनाया तब शिवजी को आभास हुआ की देवऋषि को अहंकार हो गया है।
भगवान शिव ने नारद जी से कहा कि वह यह बात श्री हरि विष्णु को न बताएं क्योंकि यदि भगवान विष्णु को नारद मुनि के अहम का अहसास होता तो वह बहुत ही निराश होते। परंतु नारद जी ने अपने अहंकार की वजह से शिवजी की बात की उपेश्रा की और विष्णु जी को जाकर सब कुछ बता दिया। तब भगवान विष्णु ने सोचा की नारद के अहम तो तोड़ना पड़ेगा।जिसके लिए उन्होंने एक लीला रचाई। भगवान विष्णु ने नारद मुनि के रास्ते में एक सुंदर नगर की रचना कर दी। इस नगर के राजा का नाम शिलनिधि था।
जिसकी विषमोहिनी नाम की एक बहुत ही आकर्षक पुत्री थी। विषमोहिनी का स्वंयवर आयोजित होने वाला था। जिसके लिए बहुत से राजा उस नगर में आए थे। राजा ने नारद मुनि का सम्मान किया और उन्हें आसन ग्रहण करने के लिए कहा। राजा ने नारद मुनि को उसकी हस्तरेखा देखकर उसका भाग्य बताने के लिए कहा। जिसके बाद नारद मुनि ने राजा को उस कन्या के लिए बहुत सी अच्छी बातें बताई। लेकिन नारद मुनि उस कन्या पर मोहित हो गए थे और मन ही मन उस कन्या से विवाह के बारे में सोचने लगे।
जिसके बाद उन्होंने भगवान विष्णु को याद किया और उन्हें सब बात बताई और कहा कि हे प्रभु आप मुझे इतना आकर्षक बना दे कि यह कन्या मुझसे ही विवाह करे।तब विष्णु जी ने नारद जी को वानर रूप दिया। नारद जी पहले तो हैरत में पड़ गए लेकिन बाद में उन्हें लगा कि वह बहुत ही आकर्षक लग रहे हैं। जिसके बाद नारद जी स्वंयवर में पहुंचे। जहां भगवान विष्णु भी भेष बदलकर पहुंचे। जब नारद जी स्वंयवर में पहुंचे तो सभी लोग उन पर हस रहे थे और जैसे ही मोहिनी स्वंयवर मे आई तो उसने राजा रूप में भगवान विष्णु के गले में माला डाल दी।
जैसे ही नारद मुनि ने अपना चेहरा पानी में देखा तो वह बहुत ही क्रोधित हो गए। भगवान विष्णु के कारण ही उनका उपहास हुआ था। इसलिए उन्हें विष्णु जी पर बहुत क्रोध आ रहा था। वह तुरंत ही विष्णु जी से मिलने के लिए निकल पड़े। रास्ते में उनकी भेट लक्ष्मी जी, विष्णु जी और विषमोहिनी से हुई उन्होंने क्रोध में विष्णु जी से कहा कि आप किसी की प्रसन्नता देख ही नहीं सकते। आपके अंदर कपट की भावना है आपको इसका परिणाम भुगतना ही पड़ेगा। आपने मनुष्य रूप धारण करके मोहिनी को प्राप्त किया है। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ेगा। आपने मुझे स्त्री से दूर किया है। इसलिए आपको भी स्त्री से दूर रहना पड़ेगा। आपने मुझे बंदर का रूप देकर मेरा उपहास किया है। इसलिए आपको भी बंदरो से सहायता लेनी पड़ेगी भगवान विष्णु ने इन सभी श्रापों को स्वीकार किया और नारद जी के ऊपर से अपनी माया को हटा लिया।
माया का आवरण होते ही नारद मुनि को पश्चाताप हुआ। लेकिन वह श्राप को वापस नहीं ले सकते थे। इस कारण त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम अवतार में मनुष्य़ रूप को धारण किया। उनको माता सीता से दूर रहना पड़ा और वानर सेना से सहायता लेनी पड़ी।
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