Rama Ekadashi 2019 : रमा एकादशी कब है, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा और आरती

Rama Ekadashi 2019 (रमा एकादशी 2019) रमा एकादशी का व्रत शुभ मुहूर्त (Rama Ekadashi Vrat Shubh Muhurat) में रखने और रमा एकादशी का महत्व, पूजा विधि तथा कथा सुनाने से सुख वैभव का जीवन व्यतीत कर सकते हैं। रमा एकादशी को रम्भा एकादशी (Rambha Ekadashi) भी कहा जाता है। माता लक्ष्मी को रमा नाम से भी जाना जाता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति रमा एकादशी पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करता है तो उसे भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी (Goddess Laxmi) का भी आर्शीवाद प्राप्त होता है। रमा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को जीवन में सभी ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होते हैं। तो आइए जानते हैं रमा एकादशी शुभ मुहूर्त, महत्व, व्रत विधि, रमा एकादशी कथा और आरती...
रमा एकादशी 2019 तिथि (Rama Ekadashi 2019 Tithi)
24 अक्टूबर 2019
रमा एकादशी 2019 शुभ मुहूर्त (Rama Ekadashi 2019 Subh Muhurat)
एकादशी प्रारंभ-24 अक्टूबर 2019 रात 1 बजकर 9 मिनट से
एकादशी समाप्त-24अक्टूबर 2019 रात 10 बजकर 19 मिनट तक
पारण का समय- 25 अक्टूबर 2019 सुबह 6 बजकर 32 मिनट से 8 बजकर 45 मिनट तक
रमा एकादशी का महत्व (Rama Ekadashi Ka Mahatva)
रमा एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। रमा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं। सिर्फ रमा एकादशी की कथा सुनने से ही अश्वमेघ यज्ञ के फल प्राप्त हो जाते हैं। रमा एकादशी का फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर गंगा स्नान और दान से मिलता है वही फल रमा एकादशी पर भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है। रमा एकादशी का व्रत प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत ही लाभकारी माना गया है। रमा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कुयोनि प्राप्त नहीं होती ।
इस दिन पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अर्पित करने चाहिए। जिससे की जीवन के सभी पापों से छुटकारा प्राप्त हो सके। भगवान विष्णु सिर्फ भाव के भूखे हैं। उन्हें इस दिन मात्र तुलसी का पत्ता ही अर्पित करने से ही भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त हो जाता है। रमा एकादशी का व्रत इतना पुण्यदायी है कि इससे ब्रह्महत्या का दोष भी समाप्त हो जाता है।
रमा एकादशी की व्रत विधि (Rama Ekadashi Vrat Vidhi)
1. रमा एकादशी के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें उसके बाद रोज की नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करें।
2. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
3. प्रतिमा स्थापित करने के बाद फल, फूल नैवेध आदि से विधि- विधान से पूजा करें।
4. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आरती उतारें और प्रसाद का भोग लगाएं।
5. इसके बाद शाम को भी इसी तरह से पूजन करें और रात को कीर्तन और भजन करें।
रमा एकादशी कथा (Rama Ekadashi Katha)
रमा एकादशी की कथा के अनुसार मुचुकुंद नाम का एक राजा राज करता था। उसके मित्र देवता थे। जिनमें से इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि प्रमुख थे। वह राजा विष्णु का परम भक्त था। उस राजा के राज में सभी लोग बहुत खुश थे। मुचुकुंद के घर में एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका कन्या का नाम चंद्रभागा रखा गया। उस कन्या का विवाह चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ हुआ।
एक दिन साभन अपने ससुर मुचुकुंद के यहां आया उस समय एकादशी थी। साभन ने एकादशी का व्रत करने का संकल्प लिया। उसकी पत्नी चंद्रभागा को यह चिंता थी कि उसका पति भूखा कैसे रहेगा। उसके पिता नियमों का पालन करने वाले थे और वह नियमों के पक्के थे।
उनके राज्य में एकादशी जो भी एकादशी का व्रत रखता था वह अन्न का सेवन नहीं करता था। साभन ने अपनी पत्नी से पुछा की ऐसा क्या उपाय करे कि उसका व्रत भी खंडित न हो और वह भूखा भी न रहे। लेकिन चंद्रभागा के पास ऐसा कोई उपाय था ही नहीं। इसके बाद साभन ने व्रत रखा। लेकिन भूख के कारण उसकी मृत्यु हो गई। चंद्रभागा अपने पति की मृत्यु की वजह से अत्यंत दुखी थी। लेकिन अपने पिता के विरोध के कारण वह सती नही हुई।
साभन ने रमा एकादशी का व्रत किया था इसलिए उसने मंदराचल पर्वत के शिखर पर एक उत्तम देवनगर प्राप्त कर लिया। जहां सभी ऐशों आराम की चीजें मौजूद थी। गंधर्व भी उसकी स्तुति और गुणगान करते थे। अपसराएं उसकी सेवा करती थी। एक दिन मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पर आए वहां उन्होंने साभन का वैभव देखा।जिसके बाद अपने राज्य में आकर सारा किस्सा अपनी बेटी को सुनाया। जिसके बाद वह अपने पति के पास चली गई और दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
उधर शोभन ने रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत के शिखर पर एक उत्तम देवनगर प्राप्त किया। वहां ऐश्वर्य के समस्त साधन उपलब्ध थे। गंधर्वगण उसकी स्तुति करते थे और अप्सराएं उसकी सेवा में लगी रहती थीं। एक दिन जब राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पर आए तो उन्होंने अपने दामाद का वैभव देखा। वापस अपनी नगरी आकर उसने चंद्रभागा को पूरा हाल सुनाया तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई। वह अपने पति के पास चली गई और अपनी भक्ति और रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन के साथ सुख पूर्वक रहने लगी।
रमा एकादशी आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
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