जानिए केतु ग्रह का रहस्य, छाया ग्रह होकर भी क्यों है शुभ

केतु को राहु की तरह ही छाया ग्रह माना जाता है। जोतिशास्त्र में राहु को जितना अशुभ माना गया हैं केतु को उतना ही शुभ ग्रह माना जाता है। केतु ग्रह राहु ग्रह से कम नुकसानदाय क्यों है। इसके दोष निवारण किस प्रकार किये गये हैं जानिए इस कथा के माध्यम से आइए जानते हैं केतु ग्रह के बारे में
केतु की दो भुजाएँ हैं। वे अपने सिरपर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं। उनका शरीर धूम्रवर्ण का हैं तथा मुख विकृत हैं। वे अपने एक हाथ में गदा और दुसरे में वरमुद्रा धारण किये रहते हैं तथा नित्य गीधपर समासीन रहते हैं।
भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु ही कबन्ध हैं राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्यपुराण के अनुसार केतु बहुत से हैं उनमें धूम केतु प्रधान है।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है। व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश मण्ड़ल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया हैं। कुछ विद्धनों के मतानुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हित कारी होता हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर में पहुचा देता हैं। केतु का मण्ड़ल ध्वजाकार माना गया हैं। कदाचित यही कारण हैं कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखाई देता है। इसका माप केवल 6 अंगुल है।
यद्दापि राहू केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव जातिका था। परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के कारण पश्चात उनका पुनर्जन्म मानकर उसके नये गोत्र धोषित किये गये इस आधार पर राहु पैठीनस गोत्र तथा केतु जैमिनि गोत्र का स्दस्य माना गया हैं। केतु का वर्ण धूम्र हैं कहीं कहीं इसका कपोत वाहन भी मिलता है।
केतु की महादशा सात वर्ष की होती हैं इसके अधिदेवता चित्र केतु तथा प्रत्यधिदेवता ब्रम्हा हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु अशुभ स्थान में रहता हैं। तो वह अनिष्टकारी हो जाता है। अनिष्टकारी केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। इसकी प्रतिकुलता से दाद, खाज तथा कुष्ट जैसे रोग होते हैं।
केतु की प्रसन्नता हेतु दान की वस्तुएँ इस प्रकार बतायी गयी हैं।
वैदूर्य रत्न तैलं च तिलं कम्बलमर्पयेत
शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय वै।।
वैदूर्य नामक रत्न, तेल काला तिल, कम्बल शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है। इसके लिये लहसुनिया पत्थर धारण करने तथा मृत्युंजय जप का विधान हैं। नवग्रह मणडल में इसका प्रतीक वायव्यकोण में काला ध्वज है।
केतु की शान्ति के लिये वैदिक मन्त्र- ऊँ केतु कृण्वत्रकेतवे पेशो मर्या अपेश से सुमुषभ्दिराज।। बीज मन्त्र- ऊँ स्रां स्त्रीं स्रौं स: केतवे नम:। जप का समय रात्रि तथा कुल जप संख्या 17000 है। हवन के लिए कुश का उपयोग करना चाहिये। विशेष परिस्थितिमें विद्वान ब्राम्हाण का सहयोग लेना चाहिये
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