Shardiya Navratri 2019 : शारदीय नवरात्रि पर जानिए सबसे प्रभावशाली दुर्गा सप्तशती के अथ देव्या: कवचम का महत्व

Navratri 2019 नवरात्रि में मां दुर्गा की स्तुति के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती के अथ देव्या: कवचम का पाठ करने से नौ देवियों की स्तुति हो जाती है। नवरात्रि (Navratri) में मां दुर्गा की पूजा करने से जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं और जीवन में सुखों का वास होता है। नवरात्रि इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 (29 September 2019) से प्रारंभ हो रही है। नवरात्रि में मां दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा की जाती है और महानवमी के दिन मां को कन्या पूजन के साथ ही विदाई दे दी जाती है तो आइए जानते हैं क्या है दुर्गा सप्तशती के अथ देव्या: कवचम का महत्व
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दुर्गा सप्तसती अथ देव्या: कवचम का महत्व (Durga Saptsati Ath Devyah Kavacham Ka Mahatva)
ऊँ चंडिका देवी को नमस्कार
मार्कण्डेय जी ने कहा- पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुषयों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइए।।
ब्रह्मा जी बोले- ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा संपूर्ण प्राणियों का उपकार, करने वाला है महामुने! उसे श्रवण करो। देवी की नौ मूर्तियां हैं, जिन्हें 'नवदूर्गा' कहते हैं। उनके पृथक-पृथक नाम बतलाऐं जाते हैं । प्रथम नाम शैलपुत्री है। दूसरी मूर्ति का नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध है। चौथी मूर्ति का कूष्माण्डा कहते हैं। पांचवीं दुर्गा का नाम स्कंदमाता है। देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं। सांतवां कालरात्रि और आठवां स्वरूप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध है। नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं।
जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया है, विषम संकट मे फंस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमंगल नही होता। युद्ध के समय में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नही दिखाई नहीं देती। उन्हें शौक. दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती।
1. शैलपुत्री हिमालय की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई। यह बात पुराणों में प्रसिद्ध है।
2.ब्रह्म चारियिंतु शीलं यस्या: सा ब्रह्मचारिणी - सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिनका स्वाभाव हो, वे 'ब्रह्मचारिणी' हैं।
3. चंद्र: घण्टायां यस्या: सा- आह्हादकरी चंद्रमा जनकी घण्टा में स्थित हों, उन देवी का नाम 'चंद्रघण्टा' है।
4. कुत्सित: ऊष्मा कूष्मा- त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मासं पेश्यामुदरूपायां यस्या: सा कूष्माण्डा। अर्थात् त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती 'कूष्माण्डा' कहलाती हैं।
5. छान्दोग्यश्रुति के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कंद है। उनकी माता होने से वे 'स्कंदमाता' कहलाती हैं।
6. देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी महार्षि कात्यायान के आश्रम पर प्रकट हुईं और महार्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना; इसलिए 'कात्यायनी' नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई।
7.सबको मारने वाली काल की भी रात्रि (विनाशिका) होने से उनका नाम 'कालरात्रि' है।
8. इन्होंने तपस्या द्वारा महान गौर वर्ण प्राप्त किया था, अत: ये महागौरी कहलाईं।
9. सिद्धि अर्थात् मोक्ष को देनेवाली होने से उनका नाम ' सिद्धिदात्री' है।
जिन्होंने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्यूदय होता है। देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिंतन करते हैं, उनकी तुन निसंदेह रक्षा करती हो। चामुण्डा देवी प्रेतपर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरुड पर ही आसन जमाती हैं। माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं। कौमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं और हाथों में कमल धारण किए हुए हैं। वृषभपर आरूढ़ देवी ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है। ब्राह्मीदेवी हंस पर बैठी हुई है और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं। इस प्रकार ये सभी माताएं सब प्रकार की योगशक्तियों से संपन्न हैं। इनके सिवा और भी बहुत- सी देवियां हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार से रत्नों से सुशोभित हैं।
ये संपूर्ण देवियां क्रोध में भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती हैं। ये शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशुल एवं उत्तम शार्डग धनुष आदि अस्त्र शस्त्र अपने हाथों में धारण करती हैं। दैत्यों के शरीर का नाश करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना यही उनके शस्त्र धारण करने का उद्देश्य है (कवच आरंभ करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए) महान रौद्ररूप, अत्यंत घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवी! तुम महान भय का नाश करने वाली हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारी और देखना भी कठिन है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बिके! मेरी रक्षा करो।पूर्व दिशा में ऐन्द्री (इंद्र शक्ति) मेरी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे।
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पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्यकोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रश्रा करें। उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान- कोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करें। ब्राह्माणि! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करे। इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से विजया पीछे की और से मेरी रक्षा करें वामभाग में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करें। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे। उमा मेरे मस्तक पर वराजमान होकर रक्षा करें। ललाट में मालाधरी रक्षा करें और यशस्विनी देली मेरी भौहों का संरक्षण करें। भौहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे। दोनों नेत्रों के मध्य भाग में शंखिनी और कानों में द्वारवासिनी रक्षा करें।
कालिका देवी कपोलों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूलभाग की रक्षा करे नासिका में सुगंधा और ऊपर ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करें। नीचे के ओठ में अमृतकला तथा जिह्वा में सरस्वती देवी रक्षा करें। कौमारी दांतों की और चंडिका कणठ प्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले की घाटी की और महामाया तालु में रहकर रक्षा करें। कामाक्षी ठोढ़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें। भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड) में रहकर रक्षा करे। कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा यौर कण्ठ री नली मे नलकूबरी रक्षा करे। दोनों हाथों में दण्डिनी और अंगुलियों में अम्बिका रक्षा करे। शूलेश्वरी नखों की रक्षा करे। कुलेश्वरी कुक्षि(पेट) में रहकर रक्षा करें।महादेवी दोनों स्तनों की और शोक विनाशिनी देवी मन की रक्षा करे। ललिता देवी हृदय में और शूलधारिणी उदर में रहकर रक्षा करें।
नाभि में कामिनी और गुह्यभाग गुह्येश्वरी रक्षा करें। पूतना और कामिका लिंग का और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे। भगवती कटिभाग में और विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे। संपूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबली देवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे। नारसिंही दोनों घुट्ठियों और तैजस देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें। श्री देवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासिनी पैरों के तालुओं में रहकर रक्षा करे। अपनी दाढ़ो के कारण भयंकर दिखाई देने वाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्व केशिनी देवी केशों की रक्षा करें। रोमावलियों के छिद्र में कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करें। आंतो की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करें। मूलाधार आदि कमल- कोशो में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करें। नखके तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें। जिसका किसी बी अस्त्र से भेदन नही हो सकता , वह अभेद्यादेवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें।
ब्राह्माणि! आप मेरे वीर्य की रक्षा करें। छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें। हाथ में व्रज धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान, और समान वायु की रक्षा करे। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करें। रस, रूप, गंध, शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्तवगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करे। वाराही आयु की रक्षा करे। वैष्णवी धर्म की रक्षा करे तथा चक्रिणी(चक्र धारण करने वाली) देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्या की रक्षा करे। इंद्राणि आप मेरे गोत्र की रक्षा करें। चण्डिके तुम! मेरे पशुओं की रक्षा करो। महालक्ष्मी पुत्रो की रक्षा करे और भैरवी पत्नी की रक्षा करें। मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें। राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें तथा सब और व्याप्त रहने वाली विजया देवी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें।
देवी! जो स्थान कवच में नही कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो; क्योंकि तुम विजय शालिनी और पापनाशिनी हो यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी न जाए कवच का पाठ करके ही यात्रा करें। कवच के द्वारा सब और से सुरक्षित मनुष्य जहां- जहां भी जाता है, वहां- वहां उसे धन लाभ होता है तथा संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस जिस अभिष्ट वस्तु का चिंतन करता है, उस उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वीं तुलना रहित महान ऐश्वर्य का भागी होता है। कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नही होती तथा वह तीनों लोको में पूजनीय होता है। देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है, उसे देवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी परिचित नही होता।
इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु से रहितो हो सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है। मकरी,चेचक और कोढ़ आदि उसकी संपूर्ण व्याधियां नष्ट हो जाती है। कनेर, भांग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, सांप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जंगम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नही होता। इस पृथ्वीं पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने मंत्र यंत्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं।
ये ही नहीं, पृथ्वीं पर विचरने वाले ग्रामदेवता, आकाशचारी देवविशेष, जल के संबंध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नरकोटि के देवता, अपने जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुलदेवता, माला (कण्ठमाला आदि), डाकिनी, शाकिनी, अंतरिक्ष में विचरने वाली अत्यंत बलवती भयानक डाकिनियां, ग्रह ,भूत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किए रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं। कवचधारी पुरुष को राजा से सम्मान- वृद्धि प्राप्त होती है। यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है।
कवच का पाठ करने वाला पुरुष अपनी कीर्ति ले विभूषित भूतल पर अपने सुयश के साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त होता है। जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननोंसहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहां पुत्र पौत्र आदि संतान परंपरा बनी रहती है। फिर देह का अन्त होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से उस नित्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। वह सुंदर दिव्य रूप धारण करता और कल्याणमय शिव के साथ आनंद का भागी होता है।
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