Varuthini Ekadashi 2019: जानें कान्यादान जितना फल देने वाली वरूथिनी एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि महत्व और कथा

Varuthini Ekadashi 2019: वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) मनुष्य के सभी पापों को नष्ट करने वाली एकादशी मानी जाती है। वरूथिनी एकादशी पूजा विधि (Varuthini Ekadashi Puja Vidhi) अनुसार करने से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। अगर आप यह नहीं जानते कि वरुथिनी एकादशी कब है (Varuthini Ekadashi kab hai) तो आज हम आपको इसकी पूरी जानकारी देंगे कि कब है वरुथिनी एकादशी , क्या है इसका शुभ मुहूर्त , क्या है इसका महत्व, व्रत की विधि और कथा । मान्यताओं के अनुसार साल के प्रत्येक महीनें में दो एकादशियां आती हैं और दोनों ही एकादशियां खास मानी जाती हैं। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे वरूथिनी ग्यारस भी कहते हैं। बहुत ही पुण्य और सौभाग्य प्रदान करने वाली इस एकादशी के व्रत से समस्त पाप व ताप नष्ट होते हैं। मान्यता है कि इस लोक के साथ-साथ व्रती का परलोक भी सुधर जाता है।
वरूथिनी एकादशी तिथि व शुभ मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी तिथि -
30 अप्रैल 2019
वरूथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ -29 अप्रैल 2019 को रात 10:04 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त -1 मई 2019 दिन के 12:18 मिनट तक
वरूथिनी एकादशी का महत्व
वरूथिनी एकादशी तिथियों में श्रेष्ठ मानी जाने वाली एकादशी है।वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के 'वरूथिन्' से बना है, जिसका मतलब है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से विष्णु भगवान हर संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं। इस दिन जो व्यक्ति ब्राह्मणों फलों और सोना आदि दान करता है। उसे करोड़ों वर्ष की तपस्या करने का फल मिलता है। इतना ही नहीं इस दिन किए गए व्रत का फल कन्यादान करने जितना मिलता है।इसलिए इस व्रत को संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाली एकादशी कहा गया है।
पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इस व्रत से मिलने वाले पुण्य के बारे में युधिष्ठिर को बताते हैं, 'पृथ्वी के सभी मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त भी इस व्रत के पुण्य का हिसाब-किताब रख पाने में सक्षम नहीं हैं।'इस दिन भगवान विष्णु के वाराह अवतार की पूजा- अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु को जगत का पालनहार भी कहा जाता है। माना जाता है इस दिन किए गए व्रत से मनुष्य जीवन में कभी भी धन की कमीं नहीं रहती।इतना ही नहीं जब मनुष्य मृत्युलोक को छोड़ता है तो उसे इसके पुण्य फलों के रुप में बैकुंठ धाम मिलता है। इसलिए इस एकादशी को इतना महत्व दिया गया है।
वरूथिनी एकादशी व्रत की विधि
1. इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। किसी पवित्र सरोवर , नदी या तालाब में स्नान करना चाहिए।
2.इस दिन कलश की स्थापना करके श्रीफल अर्थात् नारियल, आम के पत्ते, लाल रंग की चुनरी या कलाई नारा बांधें।
3.इसके पश्चात् कलश देवता एवं भगवान मधुसूदन की धूप-दीप जला कर पूजा करें।
4.भगवान विष्णु को मिष्ठान, ऋतुफल यानी खरबूजा, आम आदि चढ़ाकर भजन कीर्तन एवं मंत्र जाप करना चाहिए।
5.इस दिन व्रत करने वाले को केवल फलों का ही सेवन करना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
प्रत्येक एकादशी के महत्व को बताने वाली एक खास कथा हमारे पौराणिक ग्रंथों में है। वरुथिनी एकादशी की भी एक कथा है जो इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है नर्मदा किनारे एक राज्य था जिस पर मांधाता नामक राजा राज किया करते थे।राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के उपासक थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे। एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में ही लीन रहे भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी।
उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई। भगवान अपने भक्त पर संकट कैसे देख सकते हैं। विष्णु भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया। परंतु तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चबा चुका था। राजा बहुत दुखी थे दर्द में थे। भगवान विष्णु ने कहा वत्स विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो कि वरुथिनी एकादशी कहलाती है पर मेरे वराह रूप की पजा करना।
व्रत के प्रताप से तुम पुन: संपूर्ण अंगो वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप का फल है। इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जायेगी। भगवन की आज्ञा मानकर मांधाता ने वैसा ही किया और व्रत का पारण करते ही उसे जैसे नवजीवन मिला हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया। अब राजा और भी अधिक श्रद्धाभाव से भगवद्भक्ति में लीन रहने लगा।
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