Varuthini Ekadashi 2020 Date And Time : वरूथिनी एकादशी 2020 में कब है,जानिए शुभ मुहूर्त,महत्व, पूजा विधि और कथा

Varuthini Ekadashi 2020 Date And Time: वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के वाराह अवतार की पूजा करने से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है तो चलिए जानते हैं वरूथिनी एकादशी 2020 में कब है,वरूथिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त,वरूथिनी एकादशी का महत्व,वरूथिनी एकादशी की पूजा विधि और वरूथिनी एकादशी की कथा।
वरूथिनी एकादशी 2020 तिथि (Varuthini Ekadashi 2020 Tihti)
18 अप्रैल 2020
वरूथिनी एकादशी 2020 शुभ मुहूर्त (Varuthini Ekadashi 2020 Shubh Muhurat)
एकादशी तिथि प्रारंभ - रात 8 बजकर 3 मिनट से (17 अप्रैल 2020)
एकादशी तिथि समाप्त - अगले दिन रात 10 बजकर 17 मिनट तक (18 अप्रैल 2020)
वरूथिनी एकादशी का महत्व (Varuthini Ekadashi Importance)
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से सभी दानों में श्रेष्ठ अन्न दान और कन्या दान का फल प्राप्त होता है। इस वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनेकों वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वाराह अवतार की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है।
इसके साथ ही इस व्रत को रखने से अश्वमेघ यज्ञ का फल भी प्राप्त होता है। जो भी व्यक्ति वरूथिनी एकादशी का व्रत रखता है और वह जब तक संसार में रहता है उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है और मरने के बादे उसे भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में स्थान की प्राप्ति होती है।
वरूथिनी एकादशी पूजा विधि (Varuthini Ekadashi Puja Vidhi)
1. वरूथिनी एकादशी से एक दिन पहले ही साधक को इस एकादशी के नियमों का पालन करना चाहिए।
2. इस दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
3. इसके बाद एक चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़ककर उसे साफ करके पीला वस्त्र बिछाना चाहिए।
4. वस्त्र बिछाने के बाद भगवान विष्णु के वाराह अवतार की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
5. इसके बाद उसे पंचामृत से स्नान कराएं फिर गंगाजल से स्नान कराकर स्थापित करें।
6.मूर्ति स्थापित करने के बाद भगवान वाराह को पीले रंगे फूल,पीली मिठाई, तुलसी दल, पीले फूल,पीले वस्त्र और नैवेद्य आदि अर्पित करें।
7. इसके बाद धूप व दीप जलाकर विधिवत पूजा करें और वरूथिनी एकादशी की कथा पढ़े या सुने।
8. कथा पढ़ने के बाद भगवान वाराह की धूप व दीप से आरती उतारें।
9. इसके बाद उन्हें मिठाई का भोग लगाएं।
10. अंत में पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए उनसे श्रमा याचना करें।
वरूथिनी एकादशी की कथा (Varuthini Ekadashi Story)
पौराणिक कथा के अनुसार नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य हुआ करता था जिसमें मंधाता नाम के राजा राज्य किया करते थे राजा बहुत ही पुण्य आत्मा थे और अपनी दान शीलता के लिए वह दूर दूर तक प्रसिद्ध थे मैं परम तपस्वी थे और भगवान विष्णु के उपासक भी थे एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिए गए और वहां एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर उन्होंने तपस्या आरंभ कर दी मैं भी तपस्या में लीन हुए ही थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया और वे उनके पैरों को चबाने लगा।
लेकिन राजा मतदाता तपस्या में ही लीन रहे और भालू ने घसीट कर ले जाने लगा ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी और उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही संकट से उबारने की गुहार लगाई भगवान विष्णु अपने भक्तों पर संकट कैसे देख सकते थेराजा की गुहार शंकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और उन्होंने भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया लेकिन तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चला चुका था राजा इस कारण बहुत दुखी थे और दर्द में भी थेभगवान विष्णु ने राजा से कहा कि हे वत्स तुम्हें विचलित होने की जरूरत नहीं है वैशाख माह की एकादशी जी वैसे वरुथिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
मेरे वाराह अवतार का पूजन करो इस व्रत के प्रताप से तुम फिर से संपूर्ण अंग वाले हो जाओगे और भालू ने तुम्हारे साथ जो भी कुछ किया वह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का फल हैइस एकादशी का व्रत करने से तुम अपने पूर्व सभी पूर्व संचित पापों से भी मुक्त हो जाओगे भगवान की आज्ञा मानकर मंधाता ने वैसा ही किया औरत का पालन करते ही जैसे उसे नवजीवन प्राप्त हो गया हो वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया इसके बाद राजा और भी अधिक श्रद्धा भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करने लगा।
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