Yogini Ekdashi 2019 : सभी पापों से मुक्त कराने वाली योगिनी एकादशी पर जानें भगवान विष्णु के सात रहस्यों मे से एक कूर्म अवतार का रहस्य

Yogini Ekdashi 2019 : सभी पापों से मुक्त कराने वाली योगिनी एकादशी पर जानें भगवान विष्णु के सात रहस्यों मे से एक कूर्म अवतार का रहस्य
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Yogini Ekdashi 2019 : योगिनी एकादशी कब है 2019 (When Is Yogini Ekadashi 2019 Date) में अगर आप नहीं जानते तो बता दें कि 29 जून को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। योगिनी एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu Yogini Ekadashi) की पूजा- अर्चना की जाती है। इस व्रत से न केवल दुखों से मुक्ति मिलती है । बल्कि जीवन के सभी सुखों की भी प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु (Lord Vishnu)) ने पृथ्वीं लोक पर कई अवतार लिए हैं । इन्हीं में से एक अवतार है कूर्म अवतार (Kurma Avtar)। अगर आप कूर्म अवतार के बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको कूर्म अवतार (Lord Vishnu Kurma Avtar) के बारे में बताएंगे

Yogini Ekdashi 2019 : योगिनी एकादशी कब है 2019 (When Is Yogini Ekadashi 2019 Date) में अगर आप नहीं जानते तो बता दें कि 29 जून को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। योगिनी एकादशी का व्रत (Yogini Ekadashi Vrat 2019 ) सभी पापों से मुक्त कराने वाला व्रत माना गया है। योगिनी एकादशी का व्रत (Yogini Ekadashi Vrat) करने वाले व्यक्ति को 88 हजार ब्राह्मण भोज का फल मिलता है। योगिनी एकादशी के व्रत (Yogini Ekadashi 2019 Vrat) में भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu Yogini Ekadashi) की पूजा- अर्चना की जाती है। इस व्रत से न केवल दुखों से मुक्ति मिलती है । बल्कि जीवन के सभी सुखों की भी प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु (Lord Vishnu)) ने पृथ्वीं लोक पर कई अवतार लिए हैं । इन्हीं में से एक अवतार है कूर्म अवतार (Kurma Avtar) । अगर आप कूर्म अवतार के बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको कूर्म अवतार (Lord Vishnu Kurma Avtar) के बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के रहस्य (Kurma Avtar Rahsya) के बारे में.....


क्या है भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का रहस्य (Kya Hai Bhagwan Vishnu Ke Kurma Avtar Ka Rahasya)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा देवराज इंद्र से मिलाने स्वर्ग लोक में जाते हैं। उस समय देवराज इंद्र अपने हाथी ऐरावत पर कहीं जाने के लिए निकल रहे थे। देवराज इंद्र को देखकर दुर्वासा ऋृषि प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हे पारिजात-पुष्पों की माला भेंट करते हैं।

देवराज दुर्वासा से माला ले तो लेतें है। लेकिन खुद न पहनकर ऐरावत के मस्तक पर डाल देते हैं । हाथी भी उससे सुगंधित माला की सुगंध से हाथी मदमस्त हो जाता है और खींचते हुए माला को अपने पैरों से मसलकर कुचल देता है।

यह सब देखकर ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं और उन्हे श्राप देत हुए कहते हैं - हे मुर्ख ! तूने मेरी दी हुई माला का निरादर किया है। इंद्र तुम्हें इस बात का घमंड है ना कि तुम्हारे पास त्रिभुवन की राजलक्ष्मी है, इसलिए आज से तीनों लोकों की लक्ष्मी नष्ट हो जायेगी और तुम्हारा ये सब वैभव तुमसे छीन जाएगा।

दुर्वासा ऋषि इंद्र को श्राप देकर वहां से चले जाते हैं । दुर्वासा के श्राप से तीनों लोकों लक्ष्मी विहीन हो जाते हैं। देवों की स्थिति दयनीय हो जाती है। सभी देवता अपनी इस समस्या का समाधान निकालने कि लिए बह्मा जी के पास जाते हैं। जब ब्रह्मा जी के पास भी इसका कोई हल नहीं निकलता तो सभी लोग ब्रह्मा जी को साथ लेकर बैकुंठ श्री हरि विष्णु के पास जाते हैं।

सभी देवता अनेक प्रकार से नारायण की स्तुति की और बताया कि "प्रभु" एक तो हम दैत्यों के द्वारा अत्यंत कष्ट में हैं और इधर महर्षि के शाप से श्रीहीन भी हो गये हैं।आप शरणागतों के रक्षक हैं, इस महान कष्ट से हमारी रक्षा कीजिये।


तब असहाय, निरुपाय तथा दु:खी देवगण, ऋषि-मुनि आदि सभी प्रजापति ब्रह्माजी के पास गये। ब्रह्मा जी ने उन्हें साथ लेकर वैकुण्ठ में श्री नारायण के पास पहुंचे और सभी ने अनेक प्रकार से नारायण की स्तुति की और बताया कि "प्रभु" एक तो हम दैत्यों के द्वारा अत्यंत कष्ट में हैं और इधर महर्षि के शाप से श्रीहीन भी हो गये हैं। आप शरणागतों के रक्षक हैं, इस महान कष्ट से हमारी रक्षा कीजिये।

स्तुति से प्रसन्न होकर श्रीहरि ने गंभीर वाणी में कहा- तुम लोग समुद्र का मंथर करो, जिससे लक्ष्मी तथा अमृत की प्राप्ति होगी, उसे पीकर तुम अमर हो जाओगे, तब दैत्य तुम्हारा कुछ भी अनिष्ट न कर सकेंगे। किन्तु यह अत्यंत दुष्कर कार्य है, इसके लिये तुम असुरों को अमृत का प्रलोभन देकर उनके साथ संधि कर लो और दोनों पक्ष मिलकर समुद्र मंथन करो। यह कहकर प्रभु अन्तर्हित हो गये।

सभी देवता देवता असुर राज बलि और उनके सभी प्रधान असुरों को अमृत का लालच देते हैं और समुद्र मंथन के लिए राजी कर लेते हैं। मथनी के लिए मंदराचल पर्वत और रस्सी के लिए वासुकी नाग का प्रयोग किया जाता है। जिसके बाद देवता वासुकी नाग का सिर और असुर पुंछ पकड़कर समुद्र मंथन आरंभ कर देते हैं।

लेकिन सागर अथाह गहराई में मंदराचल पर्वत डूबने लगता है। यह सब देखकर भगवान विष्णु अपना कूर्म अवतार धारण करते हैं और अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को धारण कर लेते हैं। कूर्म की पीठ पर आते ही मंदराचल पर्वत की गति तेज हो जाती है और वह तेजी के साथ घूमने लगता है। इस प्रकार भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की वजह से समुद्र मंथन संपन्न होता है।

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