Yogini Ekadashi 2019 : योगिनी एकादशी कब है, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और योगिनी एकादशी व्रत कथा

Yogini Ekadashi 2019 : योगिनी एकादशी कब है, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और योगिनी एकादशी व्रत कथा
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Yogini Ekadashi 2019 : योगिनी एकादशी 2019 में कब है (Yogini Ekadashi 2019 Mai Kab Hai) , क्या है योगिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त (Kya Hai Yogini Ekadashi Ka Subh Mahurat), क्या है योगिनी एकादशी का महत्व (Kya Hai Yogini Ekadashi Ka Mahatva) , क्या है योगिनी एकादशी की पूजा विधि (Kya Hai Yogini Ekadasi Puja Vidhi) और क्या है योगिनी एकादशी की कथा (Kya Hai Yogini Ekadashi Ki Katha) अगर आप इसके बारे में नहीं जानते हैं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे। सभी एकादशियों की तरह ही योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) में भी भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) की पूजा अर्चना करने का विधान है। माना जाता है कि योगिनी एकादशी का व्रत (Yogini Ekadashi Vrat) रखने वाले व्यक्ति को हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है। अगर आप भी योगिनी एकादशी का व्रत (Yogini Ekadashi Ka Vrat) रखना चाहते हैं तो आज हम आपको बताएंगे कि क्या है योगिनी एकादशी की तिथि (Yogini Ekadashi Ki Tithi) , क्या है योगिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, क्या है योगिनी एकादशी का महत्व , क्या है योगिनी एकादशी की पूजा विधि क्या है योगिनी एकादशी की कथा तो चलिए जानते हैं योगिनी एकादशी की तिथि , योगिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त (Yogini Ekadashi Subh Mahurat) , योगिनी एकादशी का महत्व (Yogini Ekadashi Ka Mahatva),योगिनी एकादशी की पूजा विधि (Yogini Ekadashi Puja vidhi) योगिनी एकादशी की कथा (Yogini Ekadashi Ki Katha) के बारे में.....

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योगिनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त (Yogini Ekadashi Tithi or Subh Mahurat)

29 जून 2019

योगिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ - 06:36 बजे (28 जून 2019)

एकादशी तिथि समाप्त - 06:45 बजे (29 जून 2019)

पारण का समय - 05:30 से 06:11 बजे तक (30 जून 2019)


योगिनी एकादशी का महत्व (Yogini Ekadashi Ka Mahatva)

योगिनी एकादशी पर भी सभी एकादशियों की तरह ही भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्तियों को अट्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है। योगिनी एकादशी का व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। योगिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन के सभी पाप कट जाते हैं और उसे अपने जीवन के अंत के बाद स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

योगिनी एकादशी पर जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की सच्चे मन से आराधना करता है। उसे न केवल भगवान विष्णु की बल्कि मां लक्ष्मी का भी आर्शीवाद प्राप्त होता है। योगिनी एकादशी व्रत पर पारण की सावधानी अवश्य रखें क्योंकि योगिनी एकादशी पर पारण उसी दिन नही अगले दिन होता है। यानी द्वादशी के दिन ही एकादशी वत का पारण करें।


योगिनी एकादशी पूजा विधि (Yogini Ekadashi Puja Vidhi)

1. योगिनी एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि की रात से ही शुरू हो जाते हैं। दशमी तिथि से नमक का त्याग करना चाहिए।

2. योगिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहने और व्रत का संकल्प लें।

3. इसके बाद कलश के स्थापना करें और एक चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।

4. उसके बाद भगवान विष्णु को लाल फूल, अक्षत , धूप और दीप दिखाकर पूजा करें।

5. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और भगवान विष्णु की आरती उतारें।


योगिनी एकादशी कथा (Yogini Ekadashi Katha)

स्वर्गलोक में अलकापुरी नगरी के राजा का नाम कुबेर था. वह एक शिव भक्त था और नित्य नियमपूर्वक बड़ी ही श्रद्धा के साथ भगवान् शिव की पूजा किया करता था। पूजा के लिए पुष्प लाने का कार्य हेम नाम का माली किया करता था।

हेम का विवाह एक बहुत ही सुन्दर स्त्री के साथ हुआ था जिसका नाम विशालाक्षी था। दोनों में बहुत प्रेम था। एक दिन राजा कुबेर के लिए माली हेम पुष्प लेने जब बागीचे में पहुंचा तो उसकी पत्नी भी वहीँ थी। अपनी पत्नी विशालाक्षी की सुन्दरता को निहारते और उससे बातें करते हुए कब पूजा का समय बीत गया उसे पता ही नहीं चला।

उधर राजा कुबेर भी पूजा में विलम्ब होता देख बहुत क्रोधित हुआ। उसने माली को खोजने के लिए अपने सैनिकों को भेजा. सैनिकों ने जब कुबेर को माली के समय पर न आने का कारण बताया तो क्रोधित होकर उसने माली को श्राप दे दिया। जिसके कारण हेम ने पृथ्वीलोक पर एक कोढ़ी के रूप में जन्म लिया, परन्तु पिछले जन्म की सभी घटनाएं उसे याद रहीं।

रोगी काया और पत्नी से विछोह के कारण हेम बहुत दुखी था। एक दिन हेम मार्कंडेय ऋषि के आश्रम पहुंचा। उसकी दुर्दशा देखकर ऋषि ने कारण पूछा तो हेम ने सारी घटना सुनाई. मार्कंडेय ऋषि ने तब हेम को योगिनी एकादशी का महत्व बताया और विधिपूर्वक व्रत करने को कहा।

हेम ने श्रद्धापूर्वक व्रत का पालन किया और दोबारा निरोगी काया पाई। अपनी स्त्री का पुनः साथ पाकर हेम ने सुख और आनंद के साथ जीवन व्यतीत किया।

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