सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया सुझाव- चेक बाउंस के मामलों को निपटाने के लिए बनाई जाएं अदालतें

सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया सुझाव- चेक बाउंस के मामलों को निपटाने के लिए बनाई जाएं अदालतें
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मुख्य न्यायधीश एस ए बोवडे की अध्यक्षता में गठित पांच न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 247 (Article 247) के तहत केन्द्र सरकार को परक्राम्य लिखत अधिनियम के प्रावधानों के तहत चेक बांउस के मामलों से निपटने के लिये अधिकार प्राप्त हैं और साथ ही उसका यह कर्तव्य भी बनता है।

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने अदालतों में लंबित 35 लाख से अधिक मामलों को 'विचित्र'' स्थिति बताया और केन्द्र सरकार (Central Government) को इस समस्या से पार पाने के वास्ते एक खास अवधि के लिये अतिरिक्त अदालतों के गठन के वास्ते कानून बनाने का सुझाव दिया। मुख्य न्यायधीश एस ए बोवडे की अध्यक्षता में गठित पांच न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 247 (Article 247) के तहत केन्द्र सरकार को परक्राम्य लिखत अधिनियम के प्रावधानों के तहत चेक बांउस के मामलों से निपटने के लिये अधिकार प्राप्त हैं और साथ ही उसका यह कर्तव्य भी बनता है।

क्या है संविधान का अनुच्छेद 247

संविधान का अनुच्छेद 247 संसद को यह अधिकार देता है कि उसके द्वारा बनाये गये कानूनों के बेहतर प्रशासन के लिये वह कुद अतिरिक्त अदालतों का गठन कर सकती है। वह संघ की सूची से जुड़े मौजूदा कानूनों के मामले में भी ऐसा कदम उठा सकती है। इस पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, बी आर गवई, ए एस बोपन्ना और एस रविंनद्र भट भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि पराक्रम्य लिखत कानून के विकृत होने की वजह से इसके तहत लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस तरह के मामलों से निपटने के लिये आप एक निश्चित अवधि के लिये अतिरिक्त अदालतों की स्थापना कर सकते हैं।

केंद्र सरकार विशेषज्ञ को भी कर सकती है नियुक्त

शीर्ष अदालत ने कहा कि केन्द्र इस तरह के मामलों से निपटने के लिये एक सेवानिवृत न्यायधीश अथवा मामले के किसी विशेषज्ञ को भी नियुक्त कर सकती है। पीठ ने केन्द्र की ओर से इस मामले में पेश सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि परक्राम्य लिखत कानून के तहत लंबित मामले समूचे न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों के 30 प्रतिशत तक हो गए हैं। इस कानून को जब बनाया गया था तब इसके न्यायिक प्रभाव के बारे में कोई आकलन नहीं किया गया। शीष अदालत के मुताबिक कानून बनाते समय इस तरह का आकलन किया जाना चाहिये।

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