अमेरिकी डॉलर में निवेश से रुपये में गिरावट आनी हुई शुरू, एक महीने के निचले स्तर पर पहुंचा रुपया

कोरोना वायरस और दुनिया में आर्थिक ग्रोथ को लेकर चल रही उठा पटक के बीच गुरुवार को (American Dollar) अमेरिकन डॉलर के मुकाबले रुपया महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। इसकी वजह सोने और दूसरी चीजों को छोड़कर दुनियाभर के निवेशकों का अमेरिकी डॉलर में सेफ इन्वेस्टमेंट के तौर पर निवेश शुरू करना है। इसी वजह से विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों की करेंसी में गिरावट आ रही है। जिसका असर भारतीय बाजार से लेकर आम आदमी की जेब पर भी पड़ेगा।
दरअसल, जानकारों की मानें तो भारत अपनी जरूरत का करीब 80 प्रतिशत (Petroliam Product) पेट्रोलियम प्रोडक्ट आयात करता है। ऐसे में अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से (Rupee) रुपये में गिरावट के चलते पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात महंगा हो जाएगा। इसकी वजह से (Oil Company) तेल कंपनियों को पेट्रोल और डीजल के भाव में तेजी लानी होगी। जिसका असर सीधे तौर पर घरेलू बाजार में माल ढुलाई से लेकर आना जाना समेत दूसरी चीजों पर असर पडेगा। इससे महंगाई बढ़ सकती है। इसके अलावा रुपये के कमजोर होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। जिसका असर हर आम आदमी पर होगा।
एक सर्वे की मानें तो अमेरिकी डॉलर में तेजी आने से एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है। इसी तरह (Petrol Diesel Price) पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने के लिए तेल कंपनियों को मजबूर होना पड़ता है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 प्रतिशत से ही तेजी से ही महंगाई दर में करीब 0.8 प्रतिशत की तेजी आ जाएगी। इसका असर खाने-पीने और परिवहन समेत दूसरी चीजों की लागत पर पड़ेगा।
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