बर्थडे विशेष : आज है देश को आगे ले जाने में अहम योगदान देने वाले इन दो शख्सियतों का जन्मदिन, युवाओं के लिए हैं कामयाबी के प्रेरणा स्रोत

देश की सबसे बड़ी कंपनियों रिलायंस (Reliance) और टाटा ग्रुप (Tata Group) की नींव रखने वाले दो सबसे प्रसिद्ध और कामयाब उद्योगपतियों का आज जन्मदिन है। यह दोनों ही शख्सियतें ऐसी हैं जिन्हें किसी पहचान की जरूरत नहीं हैं। दोंनों ही ग्रुपों ने देश को आगे ले जाने और देश के विकास में अहम भूमिका निभाई है। खासकर युवाओं के लिए इनकी कामयाबी प्रेरणा का स्रोत है क्योंकि इन्होंने अपने काम की शुरुआत कम उम्र में ही कर दी थी और अपनी मेहनत और लगन की वजह से कामयाबी के उस स्तर पर पहुंचे जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है। खास बात तो ये है कि इन दोनों का जन्मदिन भी एक ही दिन आता है। धीरूभाई अंबानी आज हमारे बीच होते होते तो 88वां जन्मदिवस सेलीब्रेट कर रहे होते। वहीं रतन टाटा 83वां जन्मदिन सेलीब्रेट कर रहे हैं। आइए दोनों के जीवन से जुड़ी तमाम कही-अनकही कहानियों को जानते हैं-
सिर्फ काम को तरजीह देते हैं रतन टाटा
भारत के कई औद्योगिक घरानों के साथ होता है कि वे उद्योग के साथ-साथ राजनीति में भी दिलचस्पी लेने लगते हैं। लेकिन टाटा ग्रुप और खास तौर से रतन टाटा इन चीजों से हमेशा बचते रहे हैं। उन्होंने हमेशा अपने जीवन में काम को ही सबकुछ समझा। सबसे पहले काम को ही तरजीह दी. अगर आप सफलता चाहते हैं, तो अपने काम पर फोकस करें। टाटा ग्रुप सालों से देश और आम लोगों की सेवा कर रहा है। देश के सबसे पुराने ग्रुप होने के कुछ फायदे हैं तो कुछ चुनौतियां भी। वो भी तब जब टेक्नोलॉजी के जमाने में नई और विदेशी कंपनियों का सामना करना हो। यहीं से शुरू होती है रतन टाटा की कहानी। 1991 में रतन टाटा के हाथों में ग्रुप की बागडोर हाथों में आई। सबसे दिलचस्प बात यह है कि रतन टाटा स्वर्णिम इतिहास पर कोई दाग भी नहीं लगने दिया। जब तक वो टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे कंपनी का प्रोफिट लगातार बढ़ता रहा। आज भी वो जब रिटायर हो गए हैं, छोटे-छोटे स्टार्टअप के जरिए नौजवानों को सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने कैब प्रोवाइडर कंपनी ओला, पेटीएम, अर्बन क्लैप, फस्र्ट क्राई और कारदेखो जैसी कंपनियों में निवेश किया हुआ है।
धीरूभाई अंबानी ने फल और नाश्ता बेचने से की शुरुआत
रिलायंस ग्रुप की शुरुआत करनेवाले धीरूभाई अंबानी ने शुरुआत में बहुत ही आर्थिक संकट का सामना किया। धीरूभाई के पिता (हीरालाल) शिक्षक थे। धीरूभाई का शुरुआती जीवन काफी कष्टमय था। काफी बड़ा परिवार होने के कारण उन्हें कई बार आर्थिक समस्याएं आती रहीं। जिस कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। धीरूभाई ने पढ़ाई छोड़ने के बाद फल और नाश्ता बेचना शुरू किया। लेकिन कुछ ज्यादा फायदा नहीं मिला। जिसके बाद उन्होंने गांव के एक धार्मिक स्थल के करीब पकौड़ा बेचना शुरु कर दिया। साल के कुछ दिन यह काम अच्छा चलता था। जबकि साल में कुछ दिन धंधा पूरी तरह मंदा रहता था। शुरुआत के दो बिजनेस में मिले नुकसान के कारण उनके पिता ने उन्हें नौकरी करने की सलाह दी। हमेशा लीक से हटकर सोचने के कारण धीरूभाई अंबानी ने देश में बिजनेस करने के तौर-तरीकों को नया अंदाज दिया। अपनी नायाब बिजनेस स्ट्रैटजी की बदौलत वह जल्द ही ही देश के सबसे रईस लोगों में शामिल हो गए। यही वजह है कि 2002 में उनके निधन तक रिलायंस देश के सबसे सम्मानित और बड़े बिजनेस समूह में एक हो गया था।
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