गया की पवित्र फाल्गु नदी के किनारे प्रभु राम ने भी किया था पिंडदान, इतनी बरसात के बाद अभी भी सूखी

गया शहर के पूर्वी छोर पर पवित्र फल्गु नदी बहती है। माता सीता के शाप के कारण यह नदी अन्य नदियों के तरह नहीं, बल्कि भूमि के अंदर बहती है, इसलिए इसे अंतः सलिला भी कहते है। एक तरफ बाढ़ के पानी से लोगों को बाहर निकालने के लिए सेना के जवानों को लगाया गया है तो दूसरी तरफ फल्गु नदी में अपने पितरों की आत्मा को मुक्ति देने के लिए तर्पण करने वालों के लिए पानी नदी खोद कर निकालना पड़ रहा है।
ऐतिहासिक फल्गु नदी में लाखों लोग प्रतिवर्ष अपने पितरों की आत्मा मुक्ति के लिए आकर तर्पण करते हैं। पितृपक्ष के प्रारंभ होते ही फल्गु में डुबकी लगाकर अपने पितरों को विष्णुलोक एवं खुद को योग एवं मोक्ष की प्रार्थना करने के लिए लाखों लोग गया आ चुके हैं। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि पुनपुन नदी में पिंडदान के बाद गया में पड़ने वाला पिंडदान फल्गु स्नान के बाद ही प्रारंभ होता है। वर्तमान समय में फल्गु की स्थिति ऐसी है कि कहीं-कहीं तो बालू के टीले का रूप बना हुआ है। लोग नदी में गड्ढा कर स्नान के लिए पानी निकाल रहे हैं और तर्पण कर रहे हैं।
धीरे-धीरे प्रदूषित होती जा रही फाल्गु नदी-
गया जिले के एक बहुत बड़े भू-भाग को अभिसिंचित करने वाली फल्गु नदी का यहां के लोगों के जीवन से बहुत ही गहरा जुड़ाव है। इस नदी से गांवों के हजारों लोगों का आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक जुड़ाव है। धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह नदी अपना अद्वितीय स्थान रखती है। हर साल इसके तट पर फल्गु महोत्सव मनाया जाता है। इसकी रक्षा के संकल्प लिए जाते हैं।
इसके पीछे कई कारण भी है। जिसमें एक तो इसके तट पर कभी भगवान श्रीराम और सीता ने आकर अपने पिता राजा दशरथ के अवसान के बाद पिंडदान किया। वेद व पुराण में फल्गु का वर्णन है। इसे मोक्षदायिनी भी कहा गया है। पर अब जो इसकी स्थिति है। उसे देख कहा जाये कि फल्गु नदी ही अपने मोक्ष को लालायित है। गया में फल्गु नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए कोई उपाय न होने से लोगों की आस धूमिल हो रही है।
रिपोर्ट -ज्योति
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