लोकसभा चुनाव 2019 : फिर पाला बदलने की तैयारी में तो नहीं नीतीश!

लोकसभा चुनाव 2019 : फिर पाला बदलने की तैयारी में तो नहीं नीतीश!
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आखिरी और सातवें चरण के मतदान से पहले बिहार में जदयू के रुख ने सियासी गलियारों और एनडीए में हलचल मचा दी है। जदयू के इस बयान ने बिहार में सियासी पारा और चढ़ा दिया है। पार्टी ने मतदान से ऐन पहले बिहार की विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोहरा दी है।

लोकसभा चुनाव 2019 के सातवें चरण (Lok Sabha Elections 2019 Phase 7) के मतदान से पहले बिहार में जदयू के रुख ने सियासी गलियारों और एनडीए में हलचल मचा दी है। जदयू के इस बयान ने बिहार में सियासी पारा और चढ़ा दिया है। पार्टी ने मतदान से ऐन पहले बिहार की विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोहरा दी है। दोबारा एनडीए में शामिल होने के बाद जदयू की ओर से विशेष राज्य का दर्जा देने वाले बयान के नए मतलब निकाले जा रहे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी की तरफ से अगस्त 2017 में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई गई थी। ये वो दौर था जब जदयू और राजद के संबंध बिगड़ने लगे। फिर हालात ऐसे बने कि दोनों दल अलग हो गए और नीतीश कुमार दोबारा एनडीए में शामिल हो गए। इसके बाद से जदयू की ओर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग भी मंद पड़ गई।

इशारों-इशारो में : जदयू के विशेष राज्य का दर्जा देने वाले बयान के कई मायने

हालात देखकर रणनीति बनाते हैं

नीतीश कुमार का सियासी इतिहास भी बताता है कि वह हालात देखकर रणनीति तय करते हैं। कभी अकेले, कभी भाजपा तो कभी राजद के साथ हो लेते हैं। 2009 में जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन 2014 में अपने बूते चुनाव लड़ा।

लेकिन अब 2019 में जदयू, भाजपा और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। दूसरी ओर चंद्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी और दूसरे नेता साथ आ रहे हैं।

भाजपा के लिए ये असहज स्थिति

जदयू की यही मांग एनडीए और भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है। बिहार में 40 सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है। इस बार यहां कि सियासी फिजा बता रही है कि पलड़ा किसी का भी भारी पड़ सकता है।

त्यागी के बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है और तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं। जदयू की ये मांग भाजपा को असहज कर सकती है। क्योंकि करीब दो साल पहले नीतीश कुमार ने इसी को मुद्दा बनाकर भाजपा से किनारा किया था।

इसी मुद्दे पर भाजपा की बड़ी सहयोगी रही टीडीपी ने भी एनडीए और भाजपा का साथ छोड़ा है। चंद्रबाबू नायडू लगातार मोदी सरकार से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे थे।

जब उनकी ये मांग नहीं मानी गई तो वह भाजपा से सबसे बड़े विरोधी बन गए हैं। अब वह पीएम मोदी को सीधे निशाने पर लेते हुए उनपर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हैं।

बिहार में भी कांटे की लड़ाई

बिहार में एनडीए इस बार कांटे की लड़ाई में फंसा है। बिहार में कुल 40 विधानसभा सीटें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 22 और उसके सहयोगी लोजपा को छह और रालोसपा को तीन सीटें मिली थीं।

हालांकि, अब रालोसपा एनडीए से अलग हो गई। इस बार कांग्रेस और आरजेडी एक साथ हैं। इनके साथ कई छोटे दल भी हैं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी का ग्राफ बेहतर हुआ है।

2015 विधानसभा चुनाव के नतीजों ने आरजेडी और कांग्रेस के प्रदर्शन से लगता है कि बिहार में महागठबंधन बीजेपी-जदयू को ठीक-ठाक चुनौती देगा। सवाल उठ रहा है कि क्या इसी सियासी मिजाज को भांपकर नीतीश कुमार की ओर से पुराना राग फिर छेड़ा गया है? क्या वह फिर पाला बदलेंगे?

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