फार्मा सेक्टर में बनाएं शानदार कॅरियर

आज पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही है। दुनिया भर की दवा कंपनियां भी वैक्सीन बनाने में जुटी हुई हैं। वैसे, आपको बता दें कि फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में ही नई-नई दवाइयों की खोज और डेवलपमेंट से संबंधी कार्य किए जाते हैं। इसके अलावा, दवाओं के वितरण से लेकर मार्केटिंग, पैकेजिंग और मैनेजमेंट सभी फार्मास्यूटिकल सेक्टर के अहम हिस्से हैं। ग्लोबल लेवल पर इसमें भारत की अहम भागीदारी है। भारत दुनिया भर के देशों को दवाइयों के निर्यात के मामले में अग्रणी है। इस क्षेत्र में जिस तरह से तरक्की हो रही है, उसमें फार्मा विशेषज्ञ और इससे जुड़े प्रोफेशनल्स और एक्सपर्ट्स की मांग और बढ़ेगी।
क्वालिफिकेशन-कोर्स
फार्मास्यूटिकल के क्षेत्र में स्टूडेंट्स 12वीं के बाद डिप्लोमा या फिर डिग्री लेकर करियर बना सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी या मैथ्स के साथ 12वीं करना जरूरी है। यह दो वर्ष का होता है, वहीं ग्रेजुएशन 4 वर्ष का होता है। लेटरल एंट्री के तहत डिप्लोमाधारी बीफार्मा के द्वितीय वर्ष में सीधे दाखिला ले सकते हैं। स्टूडेंट्स के लिए मास्टर्स और डॉक्टरेट के विकल्प भी हैं। मास्टर्स के लिए ग्रेजुएशन में 50 प्रतिशत अंक चाहिए। यह दो वर्ष में होता है, जबकि पीएचडी का कोर्स तीन साल का है। डिप्लोमा इन फार्मेसी (डीफार्मा) दो वर्षीय (चार सेमेस्टर का) कोर्स है।
बैचलर ऑफ फार्मेसी (बीफार्मा) चार वर्षीय (आठ सेमेस्टर का) अंडरग्रेजुएट कोर्स है। मास्टर ऑफ फार्मेसी (एमफार्मा) यह दो वर्षीय पोस्टग्रेजुएट कोर्स है। इसके लिए स्टूडेंट्स को बीफार्मा होना चाहिए। इसके अलावा, फार्मा रिसर्च में स्पेशलाइजेशन के लिए कैंडिडेट्स एनआईपीईआर यानी नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फार्मा एजुकेशन एंड रिसर्च जैसे इंस्टीट्यूट्स में एंट्री ले सकते हैं। इस क्षेत्र में पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्यूटिकल एंड हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एंड पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी हैं, जिनकी अवधि छह माह से एक वर्ष के बीच है।
इनमें एंट्री के लिए एलिजिबिलिटी बीएससी, बीफार्मा या डीफार्मा (कोर्स के अनुसार) है। वैसे बीफार्मा के बाद स्टूडेंट्स एमफार्मा, एमफार्मा इन फार्मेकोलॉजी, क्लिनिकल रिसर्च, क्वालिटी एश्योरेंस, फार्मास्यूटिकल केमिस्ट्री, मास्टर इन पब्लिक हेल्थ, हॉस्पिटल मैनेजमेंट, एमबीए आदि कर सकते हैं। भारत में कई निजी एवं सरकारी फार्मेसी कॉलेज हैं। ऐसे में एडमिशन लेने से पहले सुनिश्चित कर लें कि वह फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त हो।
स्पेशलाइजेशन कोर्स
जो स्टूडेंट्स बीफार्मा करने के बाद मास्टर्स करना चाहते हैं, उनके लिए आज कई स्पेशलाइज्ड कोर्सेस उपलब्ध हैं। वे फार्मास्यूटिकल केमिस्ट्री, फार्मास्यूटिकल एनालिसिस एंड क्वालिटी एश्योरेंस, क्लीनिकल फार्मेसी, फार्मास्यूटिक्स, फार्माकोग्नोसी, फार्माकोलॉजी, फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग मैनेजमेंट, क्वालिटी एश्योरेंस, बायोफार्मास्यूटिक्स, इंडस्ट्रियल फार्मेसी आदि में स्पेशलाइजेशन हासिल कर सकते हैं।
पर्सनल स्किल
इस सेक्टर में अगर सफल होना चाहते हैं तो फिर सबसे जरूरी यह है कि आपकी साइंस और खासकर लाइफ साइंस और दवाइयों के प्रति दिलचस्पी होनी चाहिए। इससे जुड़े रिसर्च के क्षेत्र में काम करने के लिए आपकी दिमागी विश्लेषण क्षमता बेहतर होनी चाहिए। साथ ही, शैक्षणिक बुनियाद भी अच्छी होनी चाहिए। यदि आप इससे जुड़े मार्केटिंग क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं, तो बेहतर कम्युनिकेशन स्किल जरूरी है।
वर्क प्रोफाइल
इस फील्ड में प्रोडक्ट की मार्केटिंग के लिए जहां सीधे डीलर या कस्टमर से संपर्क करना होता है, वहीं दवाओं की मार्केटिंग में डॉक्टर भी अहम कड़ी होता है। दवाओं के बारे में डॉक्टरों को संतुष्ट करना जरूरी है। कौन-सी दवाएं किस रोग के इलाज में प्रभावी होंगी, इसका ज्ञान भी फार्मा एक्सपर्ट के पास होता है। उसे रिसर्च के द्वारा नई-नई दवाएं और ड्रग्स भी विकसित करने में अपना योगदान देना होता है।
इसलिए फार्मा मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने के लिए दवाओं की बिक्री के साथ-साथ उसमें इस्तेमाल होने वाले पदार्थ और तकनीकी नॉलेज की भी अपेक्षा होती है। इस तरह के हुनर से लैस लोगों को दवा के निर्माण, विकास से लेकर मार्केटिंग तक अपनी भूमिका निभानी पड़ती है। फार्मासिस्ट को अस्पतालों में, डिस्पेंसरी और मेडिकल स्टोर में भी जॉब मिलती है। इसके अलावा बाजार में जगह बनाने के लिए बतौर मेडिकल रिप्रजेंटेटिव और मार्केटिंग ऑफिसर के रूप में आगे आना पड़ता है।
कहां मिलेगी जॉब
देश में बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनियों के खुलने से रिसर्च एंड डेवलपमेंट के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की बड़ी डिमांड है। एमफार्मा या पीएचडी करने के बाद कैंडिडेट नई दवाओं के शोध, प्रोसेस डेवलपमेंट, क्लीनिकल ट्रायल जैसे कार्यों से जुड़ सकते हैं। कंपनियां अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी के लिए क्वालिटी कंट्रोल या क्वालिटी एश्योरेंस से संबंधित ट्रेंड लोगों की नियुक्त करती हैं। इस तरह, सरकारी के अलावा निजी संस्थानों, फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, अस्पताल, इंवेस्टिगेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में फार्मासिस्ट्स के पद होते हैं। वैसे, सबसे ज्यादा फार्मेसी स्नातकों की मांग सेल्स एवं मार्केटिंग सेक्टर में होती है।
जो स्टूडेंट्स कोर्स कंप्लीट कर अपना कार्य करना चाहते हैं, वे बायोटेक्नोलॉजिकल प्रोडक्ट्स, सर्जिकल ड्रेसिंग, मेडिकल डिवाइसेज, कॉस्मेटिक्स, डेंटल प्रोडक्ट्स और टॉयलेटरीज का निर्माण कर सकते हैं। वे खुद का मेडिकल स्टोर भी शुरू कर सकते हैं। एमफार्मा करने के बाद साइंटिस्ट और रिसर्च ऑफिसर जैसे पदों पर कार्य कर सकते हैं। फार्मेसी कॉलेज में टीचर के तौर पर कार्य करने का विकल्प भी मौजूद होता है। रिसर्च और दवा निर्माता कंपनियों में प्रोडक्शन के काम से जुड़ सकते हैं।
सैलरी पैकेज
शुरुआत में यहां 20 से 30 हजार रुपए महीने की नौकरी मिल जाती है। इसके अलावा, किसी भी क्षेत्र में कैंडिडेट के अनुभवों के आधार पर बढ़ने वाला पे-पैकेज का फॉर्मूला यहां भी लागू होता है। अनुभवी फार्मासिस्ट को सालाना 10 से 12 लाख रुपए का पैकेज मिल जाता है।
अवसरों की कमी नहीं है
फार्मा नॉलेज आधारित इंडस्ट्री है, इसलिए फार्मेसी में ग्रेजुएशन के अलावा पोस्ट ग्रेजुएशन करना जरूरी होगा। देश-दुनिया में जिस तरह से नई प्रकार की बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है और कई मामलों में एंटीबायोटिक्स कारगर नहीं रह गए हैं, उसे देखते हुए दवाओं के रिसर्च-डेवलपमेंट में काफी संभावनाएं हैं। फार्मा सेक्टर तेजी से ग्रोथ करने वाले सेक्टर्स में से एक हैं। इसलिए यहां नौकरियों को लेकर बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है।
प्रमुख संस्थान
-डीपीएसआरयू, दिल्ली
वेबसाइट-www.dpsru.edu.in
-चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
वेबसाइट- www.cuchd.in
-गुरु घासीदास विवि, बिलासपुर
वेबसाइट-www. ggu.ac.in
-बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी, भोपाल
वेबसाइट-www.bubhopal.ac.in
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