बजट 2019: शिक्षा के लिए चाहिए इतना बजट, तब बनेगी बात

बजट सत्र 2019 (Budget Session 2019) मोदी सरकार का पांचवा और आखिरी बजट होगा। बजट 2019 (Budget 2019) के बाद लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) की घोषणा कर दी जाएगी। वित्त मंत्री पीयूष गोयल आज 11 बजे सदन में बजट पेश करेंगे। देश को आगे बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है शिक्षा। शिक्षा क्षेत्र में भारत बढ़ रहा है लेकिन उस गति से नहीं जैसा दुनिया के बाकी देश बढ़ रहे हैं। शिक्षा पर हमें कितना खर्च करना चाहिए और बजट 2019 (Budget 2019) में सरकार कितना खर्च कर सकती है। इस बारे में हरि भूमि की रिपोर्टर कविता जोशी ने विशेषज्ञों से बात की। आइए जानते हैं उनका क्या कहना है।
शिक्षा क्षेत्र को लेकर जाने-माने शिक्षाविद और यूनेस्को एक्जीक्युटिव बोर्ड में भारत के प्रतिनिधि डॉ़ जे़ एस़ राजपूत ने कहा कि अंतरिम बजट में सरकार की ओर से प्राथमिक और उच्च-शिक्षा में घटती गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए अध्यापकों की नियमित नियुक्ति के साथ-साथ उन्हें शोध की सुविधाएं देने की प्राथमिकता प्रदर्शित होनी चाहिए।पिछले तीन-चार दशकों से देश में आरंभ हुई थोड़े से मानदेय पर अध्यापकों की नियुक्ति की प्रथा ने गुणवत्ता को बहुत खराब किया है।
इसका अंत होना चाहिए अन्यथा प्रारंभिक और उच्च-शिक्षा कभी आगे नहीं बढ़ पाएगी। स्कूली शिक्षा में अतिरिक्त बजट की आवश्यकता ग्रामीण इलाकों में बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा उनके स्किल डेवलपमेंट के संसाधनों को बढ़ाने को लेकर है, जिससे उन्हें अपने आसपास जीविकोपार्जन के साधन मिल सकेंगे और पलायन रूकेगा। यूनिवर्सलाइजेशन ऑफ सेकेण्ड्री एजुकेशन प्रोजेक्ट पर अतिरिक्त बजटीय धनराशि खर्च की जानी चाहिए। क्योंकि अब देश में सन 1950 जैसी आठवीं तक की शिक्षा के क्रियाक्लाप से काम नहीं चलने वाला।
आज कम से कम दसवीं या बारहवीं तक जल्द से जल्द जाना पड़ेगा। केंद्र को अपनी प्रतिबद्धता शिक्षा के अधिकार कानून के विस्तार को लेकर भी दिखानी चाहिए। जिसमें निजी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए लागू 25 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटे को बारहवीं या उच्च-शिक्षा तक करने के लिए बजट में विशेष प्रावधान किए जाने की झलक होनी चाहिए। कई उच्च-शिक्षण संस्थानों में 50 फीसदी से अधिक शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं।
अब सरकार ने 10 फीसदी सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण लागू करते हुए 25 फीसदी सीटों में इजाफा कर दिया है। इसकी पूर्ति के लिए भी अध्यापकों से लेकर भवन, उपकरण, छात्रावास जैसी सुविधाएं बनानी होंगी और इन सभी के लिए भी वित्तीय प्रावधान किया जाना जरूरी है। अगर सरकार मौजूदा संस्थानों पर ही नए संस्थानों का बोझ डाल देगी तो इससे घोषणा के बाद गुणवत्ता और विश्वसनीयता में गिरावट होगी ही। बल्कि छात्रों और उक्त संस्थान दोनों का मनोबल भी गिरेगा।
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