IBSW-CDP की पहल, देश में रहकर ही आसान फीस पर पाइए इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से डिग्री

गुरुग्राम. कोविड 19 के समय में इंटरनेशनल बिजनेस स्कूल ऑफ वाशिंगटन और कॉलेज डी पेरिस (IBSW-CDP) ने भारतीय क्षात्रों के लिए एक ऐसा कदम उठाया जो इस कठिन समय को वरदान में तब्दील कर सकता है। आईबीएसडब्यू और सीडीपी ने भारतीय छात्रों को ऑनलाइन एजुकेशन के तहत बाहर की यूनिवर्सिटी से शिक्षा लेने और डिग्री हासिल करने का रास्ता खोल दिया है।
आईबीएस के प्रेसिडेंट विनय लांबा के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान ही भारत से हजार से ज्यादा बच्चों ने आईबीएसडब्ल्यू में एडिमिशन लिया है। बाहर से शिक्षा हासिल करने के आतुर छात्रों ने तेजी से इसकी ओर अपना रुख किया है। उन्होंने बताया कि आईबीएसडब्ल्यू-सीडीपी में इस वक्त पूरी दुनिया से छात्र-छात्राएं ऑनलाइन एजुकेशन शिक्षा प्रणाली के तहत जुड़कर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। फिलहाल इसके प्रमुख केंद्र वाशिंगटन, पेरिस, ल्यों, मॉन्टपेलियर, दुबई और बैंगलोर में हैं। जबकि यहां से छात्र-छात्राएं डिप्लोमा, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुशन और पीएचडी कर सकते हैं। इसमें प्रमुख रूप बिजनेस एडिमिनिस्ट्रेशन, इंटरनेशनल मार्केटिंग, इंफार्मेंशन टेक्नोलॉजी, ग्लोबल एमबीए, कलनरी आर्ट्स, फैशन डिजाइन, टूरिज्म और हॉस्पिटॉलिटी में डिग्री हासिल की जा सकती है।
विनय बताते हैं कि आज शिक्षा और पठन-पाठन से जुड़ा हुआ हर शख्स मोबाइल, आईपैड्स, लैपटॉप्स, डेक्सटॉप्स, टैब्स पर आ चुका है। सभी को ई-लर्निंग पर आश्रित होना पड़ा है। लेकिन चुनौती ये है कि अभी खुद बहुत से शिक्षक ही इसके लिए तैयार नहीं हैं। वजह ये है कि तकनीकी विकास और मौजूदा दौर के अनुभवी शिक्षकों में एक पीढ़ी का अंतर है। वे कोशिश करने के बाद भी अभी इस न्यू नॉर्मल के दौर को आत्मसात नहीं कर पाए हैं।
विनय ने बताया कि उन्होंने खुद भी अपनी शुरुआती पढ़ाई के दौर में ऐसी चीजों का सामना किया था। इसलिए वो शुरुआत से ही तकनीकी के क्षेत्र में कुछ ऐसा करना चाहते थे कि भविष्य में चीजों में बदलाव आए। लेकिन तकनीकी तो तेजी से बदल गई, पर शिक्षा प्रणाली आज भी सालों पुरानी है। विनय का कहना है कि जैसे बचपन में साइकिल चलाना सिखाया जाता है, वैसी ही शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए। बच्चों को सिखाने पर जोर डलवाना चाहिए, बजाए कि उनको किताबी-कीड़ा बनाने के बाद। याद की हुई चीजें बाद में भूल जाती हैं। इसलिए ज्यादातर स्टूडेंट जो शुरुआती पढ़ाई करते हैं अपना सबकुछ झोंककर वो आगे ना उनके काम आती है ना उन्हें याद रहती है।
इसलिए उन्होंने आईबीएसडब्ल्यू की स्थापना की थी। उनके अनुसार वो कम लागत में एक सिखाने वाले ढांचे के तहत भारत के बच्चों को इंटरनेशनल डिग्री दिलाने का उद्देश्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं। वो ऐसी पढ़ाई का विकास कराना चाहते हैं जिसे पढ़ने से छात्र-छात्राओं को रोजगार मिल सके। उनके अनुसार कई सारे सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई है कि जो नौकरियां आज से 20 साल बाद सृजित होंगी, उसके लिए आज हम अभ्यर्थी तैयार ही नहीं कर कर रहे हैं।
विनय लांबा के अनुसार, भारत की मौजूदा हालत ये है कि वो ई-लर्निंग के लिए अभी तक खुद को तैयार नहीं कर पाए हैं। अभी भारत में पढ़ने वाले अरबों छात्र-छात्राओं के पास लैपटॉप नहीं है। एक सर्वे में बताया कि देश में दूर-दराज की कई ऐसी जगहें जहां औसतन दिनभर में 5 घंटा बिजली भी नहीं पहुंच पा रही है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र अब भी इंटरनेट की बैंडविथ की भारी समस्या से गुजर रहे हैं। अगर इस समय पर पढ़ाई पर खास ध्यान नहीं दिया गया तो चाइल्ड लेबर में भी इजाफा होगा, जो एक बड़ी त्रासदी का रूप धारण कर सकता है।
विनय ने फीस को लेकर कहा, "मैंने भी संघर्ष किया है। मेरा ऑफिस गुड़गांव और बैंगलोर में है। हर छह महीने में इंडिया आता हूं। यहां पर फीस वाकई बहुत ज्यादा है। मुझे नहीं पता क्यों ले रहे हैं। स्टेटस सिंबल है बस। लड़की की शादी, एजुकेशन ही आम आदमी की सारी सेविंग ले जाते हैं। इसीलिए वो इंटरनेशनल स्कूल में चार-पांच लाख में ग्लोबल एमबीए कराते हैं। साढ़े लाख के अंदर। इंडिया की मेट्रो सिटी की यूनिवर्सिटी 10 लाख से ज्यादा ले रहे हैं। एजुकेशन अब बिजनेस है। इससे उबरने के लिए हम लोग 100 फीसदी बैकवर्ड स्कॉलरशिप रखे हुए हैं। साथ ही। आर्मी 50 फीसदी तक की स्कॉलरशिप देते हैं।
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