IIM कैंपस का निर्माण लटका, दूसरी पीढ़ी के 6 प्रभावित संस्थानों में रोहतक और रायपुर भी हैं शामिल

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के दो विभागों के आपसी मतभेदों की वजह से दूसरी पीढ़ी के छह भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) के स्थायी कैंपस का निर्माण कार्य अधर में लटकता हुआ नजर आ रहा है। क्योंकि वर्ष 2008-09 में कैबिनेट से इनके स्थायी कैंपस के निर्माण की स्वीकृति के साथ ही जारी की गई 330 करोड़ रुपए की धनराशि से अब तक केवल 50 से 55 फीसदी काम ही पूरा हो सका है।
बाकी के लिए संस्थानों के पास फंड नहीं है। लेकिन आज भी वह आखिरी उम्मीद के तौर पर मंत्रालय की ओर ही टकटकी लगाए देख रहे हैं। जबकि इस पूरी गुथमगुथा का सबसे ज्यादा प्रभाव छात्रों पर पड़ रहा है। दूसरी पीढ़ी के संस्थानों में आईआईएम रोहतक, रायपुर, उदयपुर, काशीपुर, त्रिरूचेरापल्ली और रांची शामिल हैं। इसमें आईआईएम रांची का निर्माण कार्य तो अभी शुरुआती दौर में ही है।
विभागीय मतभेद
मंत्रालय के विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि इस मामले पर बीते कई महीनों से एमएचआरडी के वित्त और प्रशासनिक विभाग के बीच जबरर्दस्त मतभेद उभरकर सामने आ गए हैं। जिसमें वित्त विभाग इन छह संस्थानों को भविष्य में एक रूपया भी न देने का तर्क देते हुए कह रहा है कि पूर्व कैबिनेट निर्णय के हिसाब से स्थायी कैंपस के निर्माण के लिए जितनी धनराशि निधार्रित की गई थी। वह देने के बाद अब इन्हें कुछ भी नहीं दिया जाना चाहिए। हमने इन्हें 1170 छात्रों के हिसाब से 330 करोड़ रुपए दिए थे।
लेकिन यह केवल 500 से 600 छात्रों का ही दाखिला कर पाए हैं। ऐसे में बाकी बचे हुए कैंपस का निर्माण कार्य करने के लिए धन की व्यवस्था भी इन्हें स्वयं ही करनी चाहिए। जबकि दूसरी ओर प्रशासनिक विभाग संस्थानों को यूं अधर में छोड़ने के पक्ष में नहीं है और कोई बीच का रास्ता निकालने की वकालत कर रहा है, जिससे संस्थानों को कुछ और वित्तीय मदद दी जा सके। फिलहाल मंत्रालय में इस पर हुई कई दौर की बैठकों के बाद भी कोई अंतिम निर्णय नहीं निकला है।
संस्थानों की पीड़ा
आईआईएम रायपुर के निदेशक प्रो़ भारत भास्कर ने हरिभूमि से बातचीत में कहा कि मंत्रालय ने हमें 2008-09 कैबिनेट निर्णय के हिसाब से 330 करोड़ रुपए जारी किए थे। लेकिन आईआईएम रायपुर के स्थायी कैंपस का निर्माण कार्य शुरु हुआ वर्ष 2016 में। इस दौरान बाजार मंहगाई की दर लगातार बढ़ी जिससे निर्माण पर आने वाली लागत में भी कई गुना इजाफा हुआ। अभी हमारे संस्थान में कुल 500 छात्रों के पढ़ने और रहने की व्यवस्था ही है।
हम अपनी क्षमता को 1170 छात्रों के हिसाब से पूरा करना चाहते हैं। लेकिन जब हमारे पास उन्हें रखने के लिए कैंपस (छात्रावास, कक्षाएं) ही तैयार नहीं होगा तो हम दाखिला कैसे करेंगे और 1170 के मंत्रालय के लक्ष्य को कैसे हासिल करेंगे? उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र की ओर से पहली पीढ़ी के आईआईएम संस्थानों को करीब 40 वर्षों तक मदद दी गई थी। तब जाकर कहीं वह अपने पैरों पर पूरी तरह से खड़े हो सके और स्वायत्त बने हैं। तो फिर हमारे साथ यह अलग व्यवहार क्यों? इन तमाम प्रश्नों के बावजूद मुझे मंत्रालय से उम्मीद है कि वो हमारी मदद करेंगे।
आईआईएम उदयपुर के निदेशक प्रो़ जनकशाह ने कहा कि 2012-2013 और 2015-16 में मंत्रालय की ही एक आतंरिक रिपोर्ट में इन संस्थानों के निर्माण पर कुल करीब 600 करोड़ रुपए का खर्च आने की बात कही गई थी। आज उसका कहीं कोई जिक्र नहीं हो रहा है। अभी हमारा 55 फीसदी काम ही पूरा हुआ है। जबकि बीते दो साल से बाकी बचे हुए निर्माण कार्य के लिए मंत्रालय से कोई वित्तीय मदद नहीं मिली है। आज आईआईएम उदयपुर में 600 छात्र पढ़ रहे हैं। इसे हम 1170 करना चाहते हैं। लेकिन अगर मंत्रालय ही इसमें असमंजस की स्थिति में रहेगा तो बतौर संस्थान हमें निराशा ही हाथ लगेगी और देश में प्रबंधन के क्षेत्र के शीर्ष संस्थानों का निर्माण भी प्रभावित होगा।
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