सरकारी वादा तोड़कर नहीं मिलेगी आईआईएम संस्थानों को मदद

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और तीसरी पीढ़ी के भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) के बीच बीते कुछ दिनों से एक विचित्र किस्म की रसाकस्सी चल रही है। जिसमें आईआईएम संस्थान मांग कर रहे हैं कि उन्हें मंत्रालय की तरफ से प्रति छात्र दी जाने वाली 5 लाख रुपए की सालाना धनराशि को दोगुना कर 10 लाख रुपए दिए जाएं। क्योंकि संस्थानों को विश्वस्तरीय मानकों के परिदृश्य को केंद्र में रखकर चलाने की वजह से उनका खर्च लगातार बढ़ रहा है।
लेकिन इसकी जगह पर राजस्व में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है और वह लगातार घटता जा रहा है। इस अंतर को भरने के लिए मंत्रालय से अतिरिक्त धनराशि की दरकार है। एमएचआरडी मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि आईआईएम की इस मांग को मंत्रालय ने नकारते हुए फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है। इन संस्थानों में आईआईएम सिरमौर, अमृतसर, विशाखापट्टन, बोधगया, जम्मू, संबलपुर और नागपुर शामिल है।
कैबिनेट नोट की दिलाई याद
सूत्रों ने यह भी बताया कि इस विषय को लेकर बीते दिनों तीसरी पीढ़ी में शामिल हिमाचल-प्रदेश स्थित आईआईएम सिरमौर के बोर्ड ऑफ गवर्नर (बीओजी) अध्यक्ष अजय.एस.श्रीराम, आईआईएम जम्मू के बीओजी अध्यक्ष मिलिंद.पी.कांबले, और आईआईएम विशाखापट्टनम के बीओजी अध्यक्ष हरि.एस.भरतिया जैसी अत्यधिक प्रतिष्ठित सामाजिक क्षेत्र की हस्तियों ने समान सोच के तहत पत्र लिखकर प्रति छात्र सालाना 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपए की धनराशि देने की मांग की थी।
संस्थानों के लिए यह रिकरिंग ग्रांट है, जिसका उपयोग संस्थान उनके विकास से जुड़ी हुई तमाम गतिविधियों (बिल्डिंग बनाने, क्लासरूम मेंनटेन करने, लाइब्रेरी सब्सक्रिप्शन, स्टॉफ की सैलरी) को पूरा करने के लिए करते हैं। मंत्रालय ने कुछ दिनों तक आंतरिक स्तर पर इस प्रस्ताव पर विचार किया। लेकिन अंत में अब उसने अपने करीब चार वर्ष पुराने कैबिनेट के उस फैसले के प्रति ही निष्ठा और प्रतिबद्धता बनाए रखने का मन बनाया है।
जिसमें इन आईआईएम संस्थानों को स्थापित करने की स्वीकृति लेते वक्त प्रति छात्र केवल 5 लाख रुपए जारी करने के कैबिनेट नोट पर ही मंजूरी ली गई थी और अब वह अपने उस वादे को तोड़ने के पक्ष में नहीं है। विभाग के इस कदम से आईआईएम संस्थानों का मौजूदा प्रस्ताव फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है।
आईआईएम को नसीहत
मंत्रालय जल्द ही अपने इस फैसले से उक्त आईआईएम को अवगत कराएगा। लेकिन मौजूदा संवाद के दौरान उसने संस्थानों को यह नसीहत दी है कि आईआईएम अपना राजस्व बढ़ाने के लिए कैबिनेट के पुराने फैसले में तय की गई 340 छात्रों को दाखिला देने की सीमा की शत-प्रतिशत अनुपालना करें। जबकि उन्होंने अभी तक केवल करीब 200 छात्रों को ही दाखिला दिया है। बाकी सीटें खाली पड़ी हुई हैं। मंत्रालय एक संस्थान को 5 साल में अधिकतम 90 करोड़ रुपए देगा। गौरतलब है कि कुछ वक्त पहले दूसरी पीढ़ी के आईआईएम संस्थानों ने भी मंत्रालय ने अतिरिक्त फंड देने की मांग की थी।
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