NCTE के निर्णय से अंधकारमय होता 15 लाख प्रशिक्षु शिक्षकों का भविष्य!

NCTE के निर्णय से अंधकारमय होता 15 लाख प्रशिक्षु शिक्षकों का भविष्य!
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राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के एक ताजा फैसले से 15 लाख प्रशिक्षु शिक्षकों का भविष्य अंधकार के गर्त में पहुंचता हुआ नजर आ रहा है। परिषद ने बिहार प्रशासन की ओर से मांगे गए एक स्पष्टीकरण के जवाब में बीते 6 सितंबर को कहा है कि पहली से आठवीं तक प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में बतौर शिक्षक पढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए जरुरी योग्यता दो साल का डिप्लोमा इन इलीमेंट्री एजुकेशन पाठ्यक्रम ही होगा।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के एक ताजा फैसले से 15 लाख प्रशिक्षु शिक्षकों का भविष्य अंधकार के गर्त में पहुंचता हुआ नजर आ रहा है। परिषद ने बिहार प्रशासन की ओर से मांगे गए एक स्पष्टीकरण के जवाब में बीते 6 सितंबर को कहा है कि पहली से आठवीं तक प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में बतौर शिक्षक पढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए जरुरी योग्यता दो साल का डिप्लोमा इन इलीमेंट्री एजुकेशन पाठ्यक्रम ही होगा।

जबकि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) का 18 महीने का डीएलएड पाठ्यक्रम सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के उन अप्रशिक्षित शिक्षकों पर ही लागू होगा। जिनकी नियुक्ति संबंधित स्कूल में 10 अगस्त 2017 से पहले की गई होगी। लेकिन शिक्षक के पद पर की जानी वाली नई नियुक्तियों के मामले में एनआईओएस का यह पाठ्यक्रम मान्य नहीं होगा। इस पर बिहार में शिक्षकों के विरोध का बिगुल बज उठा है।

आगामी 10 सितंबर को सूबे के तमाम निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले करीब ढाई लाख प्रशिक्षु शिक्षकों ने गांधी मैदान से परिषद के निर्णय के विरोध में आवाज उठाने का फैसला लिया है। यहां बता दें कि एनसीटीई के बिहार शासन को भेजे गए उक्त निर्णय की एक प्रति हरिभूमि के पास मौजूद है।

एनआईओएस ने कहा असंवैधानिक

एनआईओएस के अध्यक्ष प्रो़ सी़ बी़ शर्मा ने हरिभूमि से बातचीत में कहा कि एनसीटीई का यह निर्णय बिलकुल गलत और पूरी तरह से असंवैधानिक है। इसका सीधा प्रभाव देश के अलग-अलग राज्यों में मौजूद उन कुल करीब 15 लाख अप्रशिक्षु शिक्षकों के भविष्य पर पड़ेगा। जिन्होंने एनआईओएस द्वारा तैयार किए गए डीएलएड पाठ्यक्रम के जरिए बीते मार्च महीने के अंत में ही परीक्षा पास करके प्रशिक्षण प्राप्त किया है और अब वह निजी से सरकारी या सरकारी से किसी अन्य स्कूल में शिक्षक के तौर पर पढ़ाने के लिए योग्य हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि संस्थान ने डीएलएड के जरिए मार्च 2019 में पास हुए 12 लाख 11 हजार 750 शिक्षकों को किसी भी बच्चे को किसी भी स्कूल में पढ़ाने के लिए पूर्ण प्रशिक्षित किया है। वह कोई बंधुवा मजदूर नहीं हैं, जो सारी जिंदगी केवल एक ही स्कूल में पढ़ाएंगे। यह पाठ्यक्रम संस्थान द्वारा रातोंरात नहीं बनाया गया है। इसकी शुरुआत करने से पहले सरकार ने संसद से मंजूरी ली है।

उन्होंने आगे कहा कि इतना ही नहीं वर्ष 2017 में जब इस पाठ्यक्रम और उसके क्रियान्वयन पर तत्कालीन केंद्रीय एचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के कक्ष में चर्चा हो रही थी। तब एनसीटीई की तत्कालीन अध्यक्ष अनीता करवल और सदस्य सचिव संजय अवस्थी ने भी इसे अपनी हरीझंडी प्रदान की थी।

उन्होंने कहा कि अगर यह वैधानिक नहीं था तो उस वक्त परिषद द्वारा इसे स्वीकृति क्यों दी गई और आज विरोध क्यों? प्रो़ शर्मा ने एनसीटीई द्वारा बिना केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एनआईओएस से विचार-विमर्श किए हुए इस संबंध में यह निर्णय लेने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

एनसीटीई का पक्ष

एनसीटीई की अध्यक्ष डा़ सतबीर बेदी ने हरिभूमि से बातचीत में कहा कि वह इस संबंध में तत्काल कोई टिप्पणी नहीं कर सकती हैं। पहले वह इससे संबंधित फाइल को अपने कार्यालय में जाकर देखेंगी और उसके बाद ही कोई प्रतिक्रिया देंगी। लेकिन परिषद के सदस्य सचिव संजय अवस्थी ने कहा कि बिहार सरकार को भेजे गए पत्र के साथ में हमने छह-सात पेज का गैजेट नोटिफिकेशन भी लगाकर दिया है। 2011 के शिक्षक बनने के मानकों को एनसीटीई ने ही राजपत्र में अधिसूचित किया है। इसी से यह तय होता है कि कौन सा शिक्षक किस कक्षा को पढ़ाने के लिए योग्य होगा।

उन्होंने कहा कि यह कानूनी व्यवस्था है। इसमें यह स्पष्ट है कि पहली से पांचवीं तक पढ़ाने वाले शिक्षक को दो साल का डीएलएड कोर्स किया हुआ होना चाहिए। लेकिन जहां तक प्रश्न एनआईओएस के 18 महीने के डीएलएड पाठ्यक्रम का है तो इसके लिए एनसीटीई को 2017 में मान्यता देने के लिए केंद्रीय एमएचआरडी मंत्रालय ने ही एक कानूनी निर्देश दिया था। जिसके बाद हमें उसे लागू करना पड़ा।

एनआईओएस के पाठ्यक्रम का मकसद केवल यही था कि वर्तमान में स्कूलों में पढ़ा रहे अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर एक शिक्षक के लिए जरुरी मानकों की शर्त को पूरा कर दिया जाए। लेकिन उसके बाद अगर कोई यह समझेगा कि वह किसी सरकारी नौकरी या विदेश में जाकर पढ़ा सकता है। तो यह उस पर कतई लागू नहीं होगा।

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