ऑनलाइन पढ़ाई से मानसिक तौर पर बीमार हो रहे बच्चे, इस तरह की हो रही परेशानियां

संक्रमण के फैलते ही ऑनलाइन कक्षाओं का चलन तेजी से बढ़ने लगा है। वर्तमान में सभी क्षेत्र के कार्य इसी माध्यम से किए जा रहे हैं। यह कई लोगों के लिए अच्छा साबित हो रहा है तो कुछ लाेगों के लिए मुसीबत। स्कूली बच्चों के नए सत्र की पढ़ाई ऑनलाइन माध्यम से शुरू होने से उनके सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा है। लंबे समय से फोन व लैपटॉप के स्क्रीन पर बने रहे रहने से बच्चों में चिड़चिड़ापन, तनाव, सिरदर्द की समस्या बढ़ने लगी है।
ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के बाद से बीते दो महीनों में मनोचिकित्सक के पास 10 से 20 उम्र तक के स्टूडेंट्स की समस्या बढ़ गई है। पालकों का कहना है, ऑनलाइन पढ़ाई के कारण बच्चे अधिक समय फोन में बिता रहे हैं, जिससे वे फोन के भी आदी होने लगे हैं। मनोचिकित्सक बच्चों को फोन का कम उपयोग करने की सलाह दे रहे हैं। पढ़ते वक्त तनाव की समस्या होने पर आंख में चश्मा लगने के संभावना बढ़ जाती है।
जल्द समझ नहीं आने की भी शिकायत
वर्तमान में बच्चे टेक्नोलॉजी से भरे माहौल में बड़े हो रहे हैं। ऐसे में उनके लिए ऑनलाइन पढ़ाई करना कठिन कार्य नहीं। मनोचिकित्सक डॉ. मनोज साहू का कहना है, 15 साल तक के बच्चे या उनके पालक चिड़चिड़ेपन की समस्या दूर करने सलाह ले रहे हैं। इसकी मुख्य वजह लगातार ऑनलाइन पढ़ाई करना है। फोन, लैपटॉप में अधिक समय तक बने रहने से आंखों में जलन होने लगती है। इससे तनाव पैदा होता है।
कुछ लोगों को यह समस्या भी आ रही है। ऑनलाइन माध्यम में पढ़ने से उन्हें जल्दी समझ नहीं आ रहा है, जबकि वे पढ़ाई में तेज हैं। ऐसे छात्रों का कहना है, ऑनलाइन पढ़ाई पहली बार कर रहे हैं। थोड़ा समय लगेगा इस माध्यम में अच्छे से पढ़ने में। लंबे समय तक इस माध्यम से पढ़ना सही नहीं। विद्यार्थी को भविष्य में कई समस्याएं हो सकती हैं, जिसमें तनाव मुख्य हैं। केवल कक्षएं हीऑनलाइन करें। पढ़ाई के समय कोशिश करें इसका उपयोग कम हो। अधिक उपयोग होने पर किसी विषय पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल होगा।
एक माह में 100 से अधिक केस
छात्रों की जीवनशैली भी इससे प्रभावित हुई है। मनोचिकित्सक सोनिया परियल का कहना है, इन दिनाें बच्चों में तनाव की समस्या बढ़ी है। फोन के आदी होने की समस्या अपेक्षाकृत कम मिल रही है। 1 माह में 100 से अधिक लोगों ने ऑनलाइन पढ़ाई से होने वाले तनाव को दूर करने सलाह ली है। उनका कहना है, छात्रों की दिनचर्या पहले की तरह नहीं रही है। देर रात सोना और सुबह लेट उठना फिर समय पर खाना नहीं भी तनाव का कारण है। लोगों को समय के साथ काम करने की सलाह दे रहे हैं। तभी कार्य करने के लिए मानसिक रूप से मजबूत होंगे। उनका कहना है, कम उम्र के बच्चों को अगर तनाव की समस्या होती है, तो उसे तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। तनाव के साथ जीने से समस्या भविष्य में और बढ़ सकती है। लंबे समय तक पढ़ने से बचें। होमवर्क के लिए भी मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।
विद्यार्थी को लग रहे चश्मे
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक मेहरा का कहना है कि अगर छात्र मोबाइल से पढ़ाई करते हैं, तो ऐसे में चश्मा लगने के चांस बढ़ जाते हैं। अभिभावकों को ध्यान रखना होगा। बच्चे काे समय के अनुसार मोबाइल उपयोग करने को दें। एक माह में 80 से अधिक पढ़ने वाले बच्चों ने चश्मा लगाया है। इसमें स्कूल व कॉलेज दोनों के छात्र शामिल हैं। बच्चों के लिए सलाह है कि ऑनलाइन पढ़ाई करते वक्त लगातार मोबाइल की तरफ न देखें, बीच-बीच में पलकें झपकाते रहें। ऑनलाइन स्टडी के अलावा छात्रों के पास अब कोई और अवसर नहीं बचा है। उजाले में पढ़ाई करें। फोन की जगह लैपटॉप का उपयोग करें।
फोन की जगह टीवी स्क्रीन का विकल्प
लंबे समय तक ऑनलाइन पढ़ाई करते रहने से बच्चे मोबाइल के आदी ना हो जाए, इस बात का भय भी पालकों को सता रहा है। श्वेता मारू बताती हैं, उनका बेटा इस वर्ष कक्षा 12वीं की पढ़ाई कर रहा है। ऑनलाइन क्लास के लिए फोन को स्मार्ट टीवी से जोड़कर बेटा पढ़ता है। इससे आंखें खराब होने का खतरा नहीं होगा। पढ़ाई के लिए भी यही तरीका अपना रहे हैं। छोटे स्क्रीन देखकर पढ़ने से जल्दी नींद व भूख नहीं लगने की समस्या भी आने लगी थी।
प्रिंट आउट की मदद
अभिभावक विकास चावडा का कहना है, घर में दो बच्चे हैं। जो 9वीं व 12वी कक्षा में पढ़ते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई की उन्हें आदत नहीं है। इसलिए उपयोग के अनुसार उन्हें फोन दिया जाता है। बच्चे किताब से अधिक पढ़ें, यह कोशिश रहती है। नोट्स के प्रिंट आउट करवा रहे हैं। छोटी स्क्रीन में देखकर लिखने से आंखों में दबाव पैदा होता है।
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