जनहित याचिका में दावा, सरकारी स्कूलों में कक्षा 10वीं और 12वीं के छात्र सीबीएसएई परीक्षा फीस वहन नहीं कर सकते

नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को उस जनहित याचिका पर केन्द्र ,केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और आप सरकार से जवाब मांगा जिसमें कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में कक्षा 10वीं और 12वीं में पढ़ने वाले गरीब बच्चे बोर्ड परीक्षा फीस वहन नहीं कर पाएंगे।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की एक पीठ ने शिक्षा मंत्रालय, सीबीएसई और दिल्ली सरकार को एक सोसाइटी द्वारा दायर एक अर्जी पर नोटिस जारी किया और उनका जवाब मांगा। अर्जी में दलील दी गई है कि बोर्ड ने 2019-2020 में परीक्षा फीस ''मनमाने ढंग से'' से बढ़ा दी थी और वह वही इस बार भी ले रहा है जब सभी महामारी के चलते वित्तीय तौर पर प्रभावित हैं।
अभिभावकों और शिक्षाविदों की एक पंजीकृत सोसाइटी 'पैरेंट्स फोरम फॉर मीनिंगफुल एजुकेशन' की ओर से दायर अर्जी में कहा गया है कि 2019-20 में दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों में 10 वीं और 12 वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों का परीक्षा शुल्क वहन किया था और अभिभावकों को आश्वासन दिया कि भविष्य के लिए इस मामले को सुलझाया जाएगा।
बोर्ड परीक्षा फीस माफ करने के लिए एक एनजीओ द्वारा इसी तरह एक अन्य जनहित याचिका में दिल्ली सरकार ने 28 सितम्बर को अदालत को बताया था कि वह इस वर्ष परीक्षा फीस वहन नहीं कर सकती जैसा उसने पिछले वर्ष किया था क्योंकि राशि 100 करोड़ रुपये से अधिक है।
अधिवक्ताओं पी एस शारदा और क्षितिज शारदा के माध्यम से दायर की गई वर्तमान अर्जी में सोसाइटी ने कहा है कि सीबीएसई 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा शुल्क के रूप में 1,500 रुपये ले रहा था और विज्ञान वर्ग के छात्रों के लिए यह राशि 2,400 रुपये तक जाती है, क्योंकि उनमें प्रैक्टिकल भी हैं।
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक हो सकता है कि एक बार में इतनी राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं हों।
याचिका में दावा किया गया, ''यह बात सामने आयी है कि प्रतिवादी नम्बर 2 (दिल्ली सरकार) न केवल पिछले वर्ष के वादे के अनुसार इस मामले को सुलझाने में विफल रही है, बल्कि इस साल इस फीस दायित्व को पूरा करने से इनकार कर दिया और ऐसा करके उसने अपने स्कूलों में 10वीं और 12वीं कक्षा के लाखों बच्चों को छोड़ दिया।''
इसमें दलील दी गई है कि दिल्ली सरकार इस वर्ष मामले को सुलझाने में विफल रहने पर ''पीछे हटते हुए बच्चों को मंझधार में नहीं छोड़ सकती क्योंकि पिछले साल 24 मार्च से लॉकडाउन होने से इस साल पिछले साल की तुलना में जमीनी स्थिति और खराब है।''
सुनवाई के दौरान, सोसाइटी के वकील ने पीठ से कहा कि अगर दिल्ली सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए पानी के बिल माफ कर सकती है, तो वह उस वर्ग से आने वाले छात्रों की परीक्षा फीस के भुगतान के लिए कुछ कर सकती है।
याचिका में आग्रह किया गया है कि दिल्ली सरकार को इस मुद्दे को ''स्थायी रूप से हल करने'' और उन छात्रों के हितों की भी रक्षा करने के लिए निर्देशित किया जाए जो बोर्ड परीक्षा देने के योग्य हैं, लेकिन इसके लिए शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ हैं।
साथ ही याचिका में दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में छात्रों के लिए सीबीएसई द्वारा परीक्षा शुल्क के निर्धारण की जांच पड़ताल करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने का भी अनुरोध किया गया ताकि ऐसे बच्चों को ''सीखने का न्यूनतम माहौल और बोर्ड परीक्षा में सफलता के लिए समान अवसर मिले।''
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