Success Story: कभी पैसों की किल्लत की वजह से इस IAS ऑफिसर ने चलाया था रिक्शा, प्रेरणादायक है इनकी कहानी

Success Story: एक ऑटो रिक्शा चालक (Auto Rickshaws driver) के बेटे आईएएस गोविंद जायसवाल (IAS Govind Jaiswal ) कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं, क्योंकि आज वे जिन ऊंचाईयों पर हैं। वहां पहुंचना लाखों युवाओं का सपना होता है। उन्होंने इस मुकाम को हासिल करने के लिए बहुत संघर्ष किया है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी निवासी गोविंद जायसवाल वर्तमान में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग (Health and Family Welfare Department) में निदेशक के पद पर तैनात हैं। एक मामूली रिक्शा चालक के बेटे ने वो कर दिखाया, जो बड़े घरों के बच्चे भी नहीं कर पाते हैं।
पिता और बहनों को मिला साथ
जीवन में इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए गोविंद के पिता (Father) और उनकी बहनों (Sister) का बहुत बड़ा योगदान रहा है। गोविंद की पढ़ाई पूरी करने के लिए उनके पिता नारायण जायसवाल ने हर मोड़ पर बेटे का साथ दिया।
ब्रेन हेमरेज से पीड़ित थी मां
वर्ष 2005 में आईएएस गोविंद जायसवाल की मां इंदु का ब्रेन हेमरेज (Brain Hemorrhage) से निधन हो गया था। उनके मां की इलाज के दौरान घर की सारी जमा-पूंजी उनपर खर्च हो गई थी। बदलाह उनकी मां तब भी बच नहीं पाई। गोविंद के पिता जिनके पास 35 रिक्शा वाली एक रिक्शा कंपनी (Riksha Company) थी, उन्हें अपनी पत्नी के इलाज के लिए अपनी कंपनी बेचनी पड़ी। पत्नी के इलाज में उनके अधिकांश रिक्शा बिक गए और परिवार आर्थिक रूप से अस्थिर (financially unstable) हो गया। उस समय गोविंद सातवीं में थे।
उस समय काशी (Kashi) के अलीपुरा (Alipura) में गोविंद का पूरा परिवार एक कोठरी में रहता था। उन दिनों कई बार गोविंद, उनकी तीन बहनें और उनके पिता केवल सूखी रोटी खाकर अपना दिन बिताते थे। हालाँकि, गोविंद के पिता ने अपने बच्चों को उचित शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी बेटियों की पढ़ाई पूरी करने के बाद, गोविंद के पिता ने अपनी तीनों बेटियों की शादी के लिए अपने बचे हुए रिक्शा भी बेच दिए।
कभी पैसे बचाने के लिए पढ़ाया था ट्यूशन
गोविंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उस्मानपुरा स्थित एक सरकारी स्कूल से पूरी की। उसके बाद उन्होंने वाराणसी स्थित हरिश्चंद्र विश्वविद्यालय से मैथ्स में ग्रेजुएशन किया। साल 2006 में गोविंद यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) की तैयारी के लिए दिल्ली आए। गोविंद ने कुछ पैसे कमाने के लिए अपने पिता के साथ रिक्शा चलाना शुरू किया।
दिल्ली आने के बाद गोविंद ने ट्यूशन (Tuition Classes) लेना शुरू कर दिया। इसके बाद भी वह पर्याप्त बचत नहीं कर पाते थे। इसलिए पैसे बचाने के लिए उन्होंने एक बार का टिफिन और चाय बंद कर दिया। आखिरकार तमाम संघर्षों के बाद साल 2007 में उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में 48वां रैंक हासिल किया।
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