Teacher's Day Inspiring Story: भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन थी, जानें उनके संघर्ष की कहानी

Teacher's Day Inspiring Story: भारत में आज धूमधाम से शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। स्कूलों और कॉलेेजों में स्टूडेंट्स की ओर से अपने शिक्षकों के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी लोग अपने गुरुओं को याद करके बीते दिनों को याद कर रहा है। क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले शिक्षक दिवस मनाया गया था और इसके पीछे का उद्देश्य क्या था। तो चलिये बताते हैं कि भारत में पहली बार शिक्षक दिवस 5 सितंबर 1962 को मनाया गया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन के अवसर पर इस विशेष दिन को मनाया जाता है। उन्हें तो सभी को इस विशेष दिन के अवसर पर याद करते हैं, लेकिन आज हम आपको भारत की पहली महिला शिक्षिका की कहानी बताने जा रहे हैंं, जिससे आप उन पर गर्व महसूस करेंगे।
कौन थी भारत की पहली महिला शिक्षिका
आजादी से पहले, जब महिलाओं को हमारे समाज में कोई अधिकार नहीं दिया गया था, यहां तक की उनके शिक्षा पर पाबन्दी लगा दी गई थी, उस समाज में रह कर सावित्रीबाई फुले ने 19वीं सदी की सभी पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ कर अपनी शिक्षा पूरी की और भारत की पहली महिला शिक्षिका बनी। शिक्षिका बनने के बाद भी उस समय उन्हें हमारे समज में पूरी तरह एक शिक्षिका के रूप में सम्मान नहीं दिया जाता था। मुश्किलों का सामना करते हुए भी उन्होंने कभी हर नहीं मानी और एक शिक्षिका के रूप में एक मिसाल कायम की।
सावित्रीबाई को कहा जाता है आधुनिक बालिका शिक्षा की जननी
सावित्रीबाई फुले के सीखने की प्यास से प्रभावित होकर, सावित्रीबाई के पति ज्योतिबा फुले ने उन्हें पढ़ाया लिखाया और शिक्षित बनाया। पढ़ाने का शौक होने के कारण, सावित्रीबाई ने अहमदनगर में और पुणे में अपनी शिक्षा प्राप्त की और पहली महिला शिक्षिका बनी। साथ ही उन्होंने अपने समय की युवा लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित भी किया। आजादी के समय में जब महिलाओं के अधिकार लगभग न के बराबर होते थे, तब उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर पुणे के भिडे वाडा में पहला महिला स्कूल शुरू किया। सन 1848 में उनके महिला विद्यालय में विभिन्न जातियों की केवल आठ लड़कियां थीं। उस समय लड़कियों के लिए शिक्षा को पाप माना जाता था और स्कूल जाते समय सावित्रीबाई फुले को रूढ़िवादी पुरुषों द्वारा नियमित रूप से परेशान किया जाता था, जो उन पर पत्थर, कीचड़, सड़े हुए अंडे, टमाटर, गाय का गोबर और गंदगी फेंकते थे।
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उसी वर्ष, उन्होंने महिलाओं के लिए अन्य स्कूलों की भी स्थापना की क्योंकि उनके लिए, शिक्षा केवल वर्णानुक्रमिक शिक्षा नहीं थी, बल्कि मन का विकास भी था। उनके शिक्षण के नवीन तरीकों ने धीरे-धीरे आम लोगों को आकर्षित करने लगा, क्योंकि 1849-50 के दौरान लड़कियों की संख्या 25 से बढ़कर 70 हो गई। 1851 तक, वह लगभग 150 महिला छात्रों के साथ तीन स्कूल चला रही थीं। बच्चों को स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए, सावित्रीबाई ने उन्हें वजीफा देने की पेशकश की। सावित्रीबाई फुले ही थीं, जिसके चलते बच्चियों की शिक्षा के प्रति समाज में जागरुकता आई। आज शिक्षक दिवस पर सावित्रीबाई फुले को भी हमारी ओर से सलाम...
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