छत्तीसगढ़ : आंगनबाड़ी कर्मचारी बड़े आंदोलन की तैयारी में, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप

रायपुर। प्रदेश के लाखों आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एक बार फिर अपनी पुरानी मांगों को लेकर आंदोलन के मूड में दिख रहे हैं। दरअसल, दो साल पहले प्रदेशभर के आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने ईदगाह भाठा मैदान में लगातार 50 दिनों तक आंदोलन किया था। वह आंदोलन तब समाप्त हुआ था, जब महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव ने प्रतिनिधि मंडल को लिखित आश्वासन दिया था।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के अनुसार, उन पुरानी मांगों को दूर करना तो दूर, वर्तमान मानदेय को ही सरकार सही समय पर नहीं दे रही है, जिसके कारण कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के सामने गुजारे का संकट आ गया है।
प्रदेश में ऐसे कई जिले हैं, जिसके परियोजना कार्यालयों ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भुगतान नहीं किया है। कई कार्यालयों ने अपने वरिष्ठ कार्यालयों को वित्तीय जरूरतों की जानकारी नहीं दी है, जबकि कुछ परियोजना कार्यालय रूपए उपलब्ध होने के बावजूद मानेदय भुगतान में देरी कर रहे हैं।
रायपुर, बेमेतरा, दुर्ग, मुंगेली, कोरबा, रायगढ़, बिलासपुर और कोरिया आदि कई ऐसे जिले हैं, जहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका कई माह से अपने मानदेय के लिए भटक रहे हैं। उनके आगे गुजारे की दिक्कतें पैदा हो गई हैं।
पद्मावती साहू, प्रांताध्यक्ष, छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ
छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ की प्रांताध्यक्ष पद्मावती साहू ने कहा है कि कांग्रेस कई नेता और स्वयं मुख्यमंत्री दो साल पहले आंदोलनस्थल पर आते थे और आंदोलन के मंच से मांगों पर समर्थन व्यक्त करते हुए निराकरण कराने का वादा करते थे, लेकिन आज वे सत्ता में होने के बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। प्रांताध्यक्ष साहू ने कहा, कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी छत्तीसगढ़ की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए रू-ब-रू होते हुए मानदेय बढ़ाने का वादा किया था, लेकिन वह वादा भी आज तक वादा ही रहा।
ये वही लिखित आश्वासन है, जिसको पढ़ने और सुनने के बाद आंगनबाड़ी कर्मियों ने अपने लंबे आंदोलन को खत्म कर दिया था। आरोप है, आज तक इन मांगों पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया।
गौरतलब है कि मार्च-अप्रैल 2018 में जब राजधानी के ईदगाहभाठा में प्रदेशभर के समस्त अनियमित और संविदा कर्मचारियों ने लंबा और ऐतिहासिक आंदोलन किया था, तो उस आंदोलन को सफल बनाने में स्वास्थ्य संयोजकों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भी बड़ी भूमिका थी। इस बीच कई जिलों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को थोक में बर्खास्त किया गया, क्योंकि वे अपनी मांगों को लेकर ड्यूटी से नदारद रहते हुए आंदोलन कर रहे थे। बर्खास्त हो चुकी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को परियोजना कार्यालय से लेकर हाईकोर्ट तक चप्पल घिसना पड़ा। कई कार्यकर्ताओं का पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
इन तमाम घटनाक्रमों के बाद जब आंगनबाड़ी कर्मचारियों की मांगों पर वार्ता हुई, तो वहां कर्मचारी और अधिकारी संघों के प्रतिनिधियों के साथ महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिवालय के भी बड़े-बड़े अधिकारी मौजूद थे।
उन अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित लिखित आश्वासन को आज दो साल हो गए, लेकिन अब भी आंगनबाड़ीकर्मियों के मुताबिक उनकी मांगों की तरफ सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है। लिहाजा, आंगनबाड़ीकर्मी अब फिर आंदोलन का मूड बना रहे हैं।
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