कागजों में सिमट गई रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना, वहीं कलेक्टर ने फोड़ा जनता के सिर ठीकरा

बिलासपुर। बारिश के पानी को सुरक्षित करने और इस्तेमाल करने के लिए सरकार की और से भवन और घरों में वॉटर हार्वेस्टिंग बनाने के लिए तमाम आदेश पारित किए गए हैं। इसके अलावा नए भवन व मकानों के नक्शे में वॉटर हार्वेस्टिंग निर्माण हेतु अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। लेकिन इसका पालन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी केवल कागजों में ही कर रहें है।
दरअसल भीषण गर्मी के चलते तेजी से नीचे जा रहें वॉटर लेबल अब डेंजर जोन के नजदीक पहुंच चुका है। जिसकी चिंता अब लोगों को सताने लगी है। इसके लिए हाल ही में नगरीय प्रशासन व विकास विभाग की विशेष सचिव अलरमेलमंगई डी. ने गत 21 मई को प्रदेशभर के समस्त कलेक्टर्स, नगर निगम आयुक्त, नगर पालिका व नगर पंचायत को पत्र लिखकर सभी शासकीय, अर्द्धशासकीय व निजी भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग का कार्य अनिवार्य रूप से किए जाने के संबंध में आदेश दिया था। जिसकी अंतिम तारीख 15 जून मुकर्र की गई है। लेकिन इस आदेश का पालन बिलासपुर में होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है।
कलेक्टर जनता के सिर फोड़ रहे ठीकरा
इतना ही नहीं जब इस आदेश के सन्दर्भ में बिलासपुर कलेक्टर से सवाल किया गया तो उनका जवाब सुनकर आप हैरान हो जायेंगे। उनका जवाब है कि इसके लिए जनता जिम्मेदार है। इसकी शुरुआत जनता से होनी चाहिए।
वहीँ इस सवाल को दोबारा कलेक्टर से पूछा गया कि शासकीय कार्यालय में वॉटर हार्वेस्टिंग लगाने का जिम्मा तो विभाग का होता है...??? उसे सिरे से इंकार कर इसका ठीकरा जनता पर फोड़ते रहे और इसके लिए जनता को ही जिम्मेदार ठहराते हुए दम भर रहें हैं।
कलेक्टर अपने पुरे इंटरव्यू में केवल जनता से अपील की दुहाई दे रहें है। ऐसे में आप साफ़ तौर पर अंदाजा लगा सकते है कि बिलासपुर कलेक्टर डॉ. संजय अलंग वाटर हार्वेस्टिंग को अमलीजामा पहनाने में कितना चिंतित है।
अरपा नदी का अस्तित्व भी खतरे में
गौरतलब है कि बिलासपुर की जीवनदायनी अरपा नदी पिछले कुछ सालों से सूखती चली जा रही है! जिससे अब अरपा नदी का अस्तित्व खतरे में नज़र आ रहा है। यही वजह है कि बिलासपुर का वॉटर लेबल जो 30 से 40 फीट में हुआ करता था। तब लोग चार मजूदरों के भरोसे हाथों से बोरिंग की खुदाई कराया करते थे। लेकिन अब उसी बिलासपुर का वाटर लेबल 150 से 170 के करीब जा पहुंचा है। जिससे अब बिलासपुर में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है।
ऐसे में वॉटर हार्वेस्टिंग के जरिए वॉटर रिचार्ज करना ही एक मात्र स्रोत है, ताकि इस्तेमाल किए गए जल को संरक्षित किया जा सके। लेकिन ऐसा होता हुआ कहीं नज़र नहीं आ रहा है। वहीँ दूसरी तरफ बिलासपुर शहर व जिलेभर में हरे-भरे पेड़ों ने वॉटर लेबल को बचाने में अहम् भूमिका अब तक निभाई है। वहीँ विभाग के अधिकारियों ने सड़क निर्माण व विकास का हवाला देकर सरकारी विभागों ने उन सभी हरे-भरे पेड़ों की बलि चढ़ा दी। इस संबंध में पर्यावरण जानकारों की माने तो इन दोनों कारणों को ही पानी की कमी होना करार दे रहें है।
निगम खुद अपनी बिल्डिंग में पहले वॉटर हार्वेस्टिंग कराए — शैलेश पांडेय
इस संबंध में बिलासपुर विधायक शैलेश पाण्डेय ने INH न्यूज़ से बातचीत में पूर्व भाजपा सरकार व नगर निगम के बेलगाम अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए नज़र आए, उन्होंने कहा कि हमें जल संरक्षण करने के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग निर्माण को प्राथमिकता से करना होगा। लेकिन नगर निगम के वर्तमान अधिकारी भाजपा माइंड सेट से बाहर नहीं निकल पा रहें हैं और विधायक के आदेशों को भी हलके में लेकर दरकिनार कर रहें हैं। लेकिन मैं नगर निगम के अधिकारियों को वॉटर हार्वेस्टिंग निर्माण कड़ाई से पालन कराने के निर्देश दूंगा। निगम खुद अपनी बिल्डिंग में पहले वॉटर हार्वेस्टिंग का निर्माण करें तो ज्यादा बेहतर है। ये जनता के बीच एक मिसाल साबित होगी।
सरकारी इमारतों वॉटर हार्वेस्टिग बेहाल
बहरहाल बिलासपुर के सरकारी इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तो लगाया गया है, लेकिन उनकी कनेक्टिविटी ही फेल है। जिसके चलते जो बारिश का पानी जमीन के अंदर जाना चाहिए, वो ऊपर ही बहकर बर्बाद हेा रहा है। ऐसे ही एक मामला बिलासपुर के नगर निगम के टाउनहाल की है। जहां वॉटर हार्वेस्टिंग कनेक्टिंग के लिए पाइप लाइन का विस्तार अधूरा किया गया है और टंकी कचरे से पटा हुआ है। जो कि दिया तले अधेरा की उपमा बन बैठा है।
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