कांग्रेस ने निकाली रिपोर्ट, की थी सुपेबेड़ा को राजकीय आपदा घोषित करने की मांग

रायपुर। सुपेबेड़ा में किडनी फेल होने से पिछले साल से हो रही मौतों को लेकर कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए यहां की स्थिति का आकलन किया था। इस दौरान कांग्रेस ने इसे राजकीय आपदा घोषित करने की मांग की थी। प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष भूपेश बघेल के साथ एक टीम ने सुपेबेड़ा का दौरा 18 जून 2018 को किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरियाबंद ब्लॉक के सुपेबेड़ा में दूषित पानी से लोगों की मौतें हो रही हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार क़रीब 1500 की आबादी वाले गांव में 64 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह आंकड़ा 170 से अधिक हो चुका है। यहां पर हर घर में एक न एक विधवा है और पिछले पांच वर्षों से वहां लड़कों की शादी रुकी हुई है, क्योंकि वहां कोई लड़की ही नहीं देना चाहता। गांव के लोग बताते हैं कि सुपेबेड़ा के अलावा निदितगुड़ा, सेंदमुड़ा, परेवापाली, मोटरापारा, सागौनबाड़ी, खम्हारगुड़ा, खोक्सरा, बिरलीगुड़ा और झिरिपानी जैसे एक दर्जन गावों में भी किडनी की समस्याएं सामने आई हैं और वहां भी कई लोगों की मौतें हो चुकी हैं।
इलाज के लिए लोग ज़मीन बेचकर और गहने गिरवी रखकर इलाल करा रहे हैं। सुपेबेड़ा में यह समस्या वर्ष 2005 से है। धीरे धीरे यह समस्या बढ़ती गई। ग्रामीणों के अनुसार सरकार को करीब 10 साल से इस समस्या का पता है। मीडिया में आने पर पिछले एक डेढ़ साल में ही कदम उठाए गए। बीमारी को लेकर ग्रामीण पूरे देवभोग को छत्तीसगढ़ राज्य से काटकर ओडिशा को देने की मांग भी कर चुके हैं।
पानी में हैवी मेटल्स
सुपेबेड़ा गांव में पानी की समस्या से को देखते हुए सरकार ने गांव से दो किलोमीटर दूर एक बोर कराया है, जिसका पानी पाइप के ज़रिए गांव में आता है। पानी की जो वैकल्पिक व्यवस्था की गई है, वह भी अनियमित है। कभी सोलर पंप नहीं चलता तो कभी कोई और परेशानी रहती है। गरियाबंद ब्लॉक में जगह-जगह पानी में हेवी मेटल्स की उपस्थिति ख़तरनाक स्तर तक पाई गई है। सरकार ने 221 स्कूलों में हैंडपंप के पानी की जांच कराई, इनमें से 64 की रिपोर्ट आई है और इसमें से 40 जगहों पर पानी में भारी तत्व हैं। कई स्कूलों में तो भारी तत्वों की मात्रा सुपेबेड़ा से भी अधिक है।
चिकित्सा का अभाव
ग्रामीणों देवभोग में पदस्थ डॉ. मार्कंडेय के इलाज से प्रभावित थे, पर उनका तबादला कर दिया गया। मरीजों का इलाज संजीवनी चिकित्सा कोष से किया जा रहा है, लेकिन पहले जो सुविधा एक निजी अस्पताल में थी, उसे बदलकर मेकाहारा कर दिया गया।
यहां के इलाज से मरीज असंतुष्ट हैं। ग्रामीणों के अनुसार नेफ़्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. पुनीत गुप्ता ऐसी दवाइयां लिखते हैं, जो अस्पताल में नहीं मिलतीं, बाहर भी मुश्किल से मिलती हैं और बहुत महंगी हैं। ग्रामीण इलाज के लिए मेकाहारा के बजाय अपने खर्च पर इलाज कराने के लिए वॉल्टेयर के अस्पताल में जाने लगे हैं। गांव में एक अस्थाई क्लिनिक है, लेकिन वहां काम की दवाइयां नहीं मिलतीं।
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