पैसे नहीं थे तो साइकिल से दिल्ली गईं, हिमालय से 500 किलो कचरा लेकर लौटी, IIIT स्टूडेंट्स के बीच पहुंची एवरेस्ट फतह करने वाली प्रथम महिला

पैसे नहीं थे तो साइकिल से दिल्ली गईं, हिमालय से 500 किलो कचरा लेकर लौटी, IIIT स्टूडेंट्स के बीच पहुंची एवरेस्ट फतह करने वाली प्रथम महिला
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जीवन में पहली बार एवरेस्ट की तस्वीर मैंने शिवजी की तस्वीर के पीछे पहाड़ में देखी थी। उस समय सोचा करती थी कि ऐसा भी कुछ होता है क्या? यहीं से मुझे पहाड़ों से लगाव हो गया। एवरेस्ट फतह की कभी नहीं सोची।

रायपुर। जीवन में पहली बार एवरेस्ट की तस्वीर मैंने शिवजी की तस्वीर के पीछे पहाड़ में देखी थी। उस समय सोचा करती थी कि ऐसा भी कुछ होता है क्या? यहीं से मुझे पहाड़ों से लगाव हो गया। एवरेस्ट फतह की कभी नहीं सोची। बस ख्वाब था कि हिमालय को देखूं। यह कहना हैए तीन बार एवरेस्ट में फतह हासिल करने वाली विश्व की पहली महिला व पद्मश्री संतोष यादव का। वे शनिवार को ट्रिपलआईटी में मोटिवेशनल कार्यक्रम में शामिल होने नया रायपुर पहुंची हुई थी। गौरतलब है कीए पद्मश्री संतोष पहली बार मई 1992 और उसके बाद मई 1993 में एक बार फिर एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक पहुंची। उन्हें 2000 में पद्मश्री दिया गया। वे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में इंस्पेक्टर के पद में भी रह चुकी हैं।

जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लगाया फोन

संतोष ने बताया, एवरेस्ट में चढ़ने से पहले मेरी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हुई थी। उन्होंने मुझे फोन दिया। कहा, मैं आपसे बात करूंगा। जब मैं एवरेस्ट पर थी तभी नीचे से वाकीटाकी में अधिकारी ने कहाए प्रधानमंत्री का लगातार फोन आ रहा वे आपसे बात करना चाहते हैं, लेकिन आपका फोन बंद है। मैंने कहा, पीएम सर से कहना 15 मिनट का इंतजार करे। मैं तुरंत कैंप में गई और फोन को हाथ में कुछ समय तक रखा। गर्म होने से फोन कुछ चार्ज हो गया, फिर मैंने प्रधानमंत्री से 20 मिनट तक बात की।

अरावली की पहाड़ियों पर पेंटिंग से खुला रास्ता

वे बताती हैं, सफलता के लिए जुनून जरूरी है। मुझे जयपुर से दिल्ली पढ़ाई के लिए जाना था। ऑटो में पैसे अधिक खर्च होंगे इसलिए मैंने अपने साथ साइकिल रख ली और सुबह बस स्टेशन पहुंच गई। बस वाले ने कहा, साइकिल के पैसे लगेंगे। मेरे पास नहीं थे। मैं अगले दिन सुबह 4 बजे साइकिल से दिल्ली के लिए निकल पड़ी। एवरेस्ट से मुश्किल तो समाज की बंदिशों का पहाड़ है। मुझे जब कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला तो वहां अरावली की पहाड़ियों पर पेंटिंग करने जाया करती थी। इसके बाद ही मुझे हिमालय पर जाने का मौका मिला। सुनकर दुख होता है कि ग्लेसयर 5 किमी दूर चला गया है। मैं दो बार हिमालय से 500 किलो कचरा लेकर आई थी।

इन बिंदुओं से समझिए सफलता का सार

- बकौल संतोष, मैं केवल वही चीजें इस्तेमाल करती हूं, जो बहुत जरूरी हैं। चढ़ाई के दौरान ब्लाउज सूख नहीं पाया था तो मैंने टीशर्ट पहन ली। इससे पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और हम अपने घर.जीवन को अनावश्यक कचरे से दूर रख पाएंगे।

- उन्होंने छात्रों को मोटिवेट करते हुए कहा, नौकरी में बंधन महसूस होता था। इसलिए नौकरी छोड़ दी। एक स्त्री यदि अपने बच्चों को संयम, सादगी और ईमानदारी से पालना चाहती है तो यही उसके लिए फुल टाइम जॉब है।

- मैं फूल नहीं लेतीं, स्वागत में मालाएं पहनने से बचती हूं। बेहतर है कि फल उगाए जाएं, फल ही दिए जाएं। प्रतिभाशाली बच्चों को स्मृति चिन्ह देने की बजाय कापियां बांटी जाएं।

- जब भी हिमालय जाए कोल्डिंग, पान, शराब से दूरी बनाएं। सत्तु खाएं। चाय और कॉफी भी घातक है।

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