पूर्व कुलपति डॉ. मिश्र के खिलाफ जांच रिपोर्ट में कई खुलासे, सेवा समाप्त होने से पहले तीन माह में 28 करोड़ के टेंडर

पूर्व कुलपति डॉ. मिश्र के खिलाफ जांच रिपोर्ट में कई खुलासे, सेवा समाप्त होने से पहले तीन माह में 28 करोड़ के टेंडर
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छत्तीसगढ़ के कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा दुर्ग में तत्कालीन कुलपति उमेश कुमार मिश्रा के कार्यकाल में 36.6 करोड़ रुपए के निर्माण कार्यों में वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है।

रायपुर। छत्तीसगढ़ के कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा दुर्ग में तत्कालीन कुलपति उमेश कुमार मिश्रा के कार्यकाल में 36.6 करोड़ रुपए के निर्माण कार्यों में वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है। इस मामले की जांच पांच सदस्यों की एक कमेटी ने की है। जांच रिपोर्ट में कई प्रकार की गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है।

ये है मामला

कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा जिला दुर्ग में चल रहे विभिन्न निर्माण कार्यों में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई थीं। कुल मिलाकर ये निर्माण कार्य 36 करोड़ 6 लाख रुपए के हैं। इन कार्यों के लिए निविदा प्रक्रिया में गड़बड़ी व वित्तीय अनियमितताओं के आरोप विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. उमेश कुमार मिश्रा पर लगे थे। विश्वविद्यालय ने मामले की जांच के लिए पांच सदस्यों का दल गठित किया था। इस कमेटी के अध्यक्ष डॉ. एसपी तिवारी ने 8 पेज की एक जांच रिपोर्ट पेश की है।

कई तरह की गड़बड़ियां

यह बात शिकायत के रूप में सामने आई थी कि कुलपति डॉ. मिश्र ने वित्तीय वर्ष 2016-17 की अंतिम तिमाही में जब कुलपति के रूप में उनका कार्यकाल समाप्ति की ओर था, कुल करीब 36.06 करोड़ रुपए के निर्माण कार्यों के कार्यादेश जारी किए गए। ये सभी अनुमानित लागत राशि से मात्र 2 से 4 प्रतिशत कम थे। इस शिकायत की जांच के बाद ये तथ्य सामने आया है कि 2016-17 की अंतिम तिमाही में 26 करोड़ 65 हजार के कार्यादेश जारी किए गए थे। जो कि एसओआर से 2.01 से 4.51 प्रतिशत तक कम (बिलो) की राशि पर जारी किए गए थे। जांच में पाया गया है कि यह टेंडर प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी। क्योंकि ई-टेंडर के माध्यम से टेंडरिंग नहीं की गई थी। टेंडर डाक्यूमेंट में टेंडर समिति के सदस्यों व अध्यक्ष के हस्ताक्षर नहीं थे। टेंडर आमंत्रित किए जाने एवं खोले जाने की तिथियों को बार-बार बिना स्पष्ट एवं यथोचित कारणों से बदला गया।

बिना जरूरत भवन निर्माण

विश्वविद्यालय ने दो ऐेसे भवन बनाए, जिनके निर्माण की कोई तात्कालिक आवश्यकता नहीं थी। इस शिकायत पर जांच में यह बात सामने आई कि शासन से कुल 6 भवनों के निर्माण की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। इसमें से एक भवन, जिसे अधोसंरचना भवन नाम दिया गया था, इसकी लागत 9 करोड़ 7 लाख रुपए थी। इस निर्माण का कोई औचित्य नहीं दर्शाया गया है। साथ ही इस निर्माण की आवश्यकता किस अधिकारी या किस विभाग द्वारा प्रस्तावित की गई थी, यह भी साफ नहीं है।

गलत निविदा, चहेते ठेकेदारों को काम

इस जांच रिपोर्ट में एक हिस्से में कुलपति डॉ. मिश्र कार्यपालन अभियंता संतोष कुमार अग्रवाल, प्रभारी कार्यपालन अभियंता पीसी शर्मा, सहायक अभियंता उल्लास अरविंद देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार करने स्वार्थपूर्ति के लिए शासकीय नियमों का उल्लंघन कर करोड़ों के कार्यों की निविदा गलत तरीके से मैन्युअली आमंत्रित कर षडयंंत्रपूर्वक चहेते ठेकेदार को काम देने के आरोप पर अभिमत दिया गया है।

जांंच रिपोर्ट में आया निष्कर्ष

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि शासन के नियमानुसार 20 लाख से अधिक राशि के टेंडर ई-टेंडर पद्धति द्वारा किए जाने थे, जिसका पालन नहीं किया गया है। प्राप्त निविदाओं में टेंडर समिति के हस्ताक्षर नहीं पाए गए। इसलिए टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह दोषपूर्ण है। निविदा को आमंत्रित करने एवं निविदा खुलने की तिथियों में बिना स्पष्ट एवं यथोचित कारण बार-बार संशोधन करना प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण बनाता है। 2015-16 एवं 2016-17 के समस्त कार्यों के लिए एसओआर से 16 से 30 प्रतिशत बिलो लागत पर कार्य आदेश जारी किए गए, लेकिन 2016-17 के अंतिम तीन महीनों में जो भी निर्माण कार्य नाबार्ड से मिले आर्थिक ऋण से कराए गए, वे 2.01 से 4.51 प्रतिशत बिलो लागत पर कराए गए। ऐसी स्थिति बनने के पीछे वजह ये है कि टेंडर प्रक्रिया को दोषपूर्ण तरीके से संचालित किया गया। निविदाएं पंजीकृत डाक या स्पीड पोस्ट से ली जानी थी, लेकिन इसकी जगह ड्राॅप बाॅक्स का उपयोग कर निविदाएं हाथों-हाथ स्वीकार की गईं। ऐसा करना भी गलत है। निविदा प्रक्रिया में अलग-अलग स्तरों पर लापरवाही व अनियमितताएं पाई गई हैं।

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