मातृ दिवस विशेष : गर्भ में बच्चे के साथ छोड़ा पति ने, लकड़ी-महुआ बिनकर बनाया बच्चों को काबिल

मातृ दिवस विशेष : गर्भ में बच्चे के साथ छोड़ा पति ने, लकड़ी-महुआ बिनकर बनाया बच्चों को काबिल
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संघर्ष कर बेटी को पढ़ाया, बेटी टीचर बनकर फैला रही ज्ञान का उजियारा। पढ़िए पूरी खबर-

कोरिया। आज पूरे विश्व में मदर्स डे मनाया जा रहा है। इस मौके पर हम आपको एक ऐसी माँ की दास्ताँ बताने जा रहे हैं, जिसने गर्भ में बच्चे के साथ पति के छोड़कर जाने के बाद सुदूर वनाचंल में रहते हुए बच्चों का पालन पोषण किया और समाज में सिर उठाकर जीने के काबिल भी बनाया।

जनकपुर में रहने वाली निर्मला घोष ने संघर्षों के साये में रहकर बच्चों को वो मुकाम दिया, जो हर माँ अपने बच्चे को देना चाहती है। शादी के 7 साल बाद जब दूसरा बच्चा जब गर्भ में था तो पति ने दूसरी महिला से शादी कर निर्मला का साथ छोड़ दिया। गर्भ में बच्चा और पति का साथ न होना निर्मला के लिए जीवन में किसी जंग से कम नहीं था। इन संघर्षों के बीच निर्मला ने बेटे को जन्म दिया।

लेकिन निर्मला का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ। गाँव मे लकड़ी-महुआ बिनकर उसने बेटी को गाँव के ही सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया फिर घर में ही कपड़ो की सिलाई, बुनाई कर कुछ दिन गुजर बसर किया और खुद निर्मला नौकरी की तलाश में लग गई। निर्मला की नौकरी की तलाश आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर खत्म हुई। लेकिन उस समय कम वेतन होने की वजह से निर्मला अपनी बेटी को सिर्फ 12वीं तक ही शिक्षा दिला पाई।

इस बीच अब निर्मला का बेटा भी बड़ा हो गया। निर्मला के ऊपर अब 2 बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी। लेकिन निर्मला घोष ने हिम्मत नहीं हारी और दोनों बच्चों की बेहतर परवरिश की कवायद में जुटी रही। निर्मला घोष की बेटी जया घोष पढ़ने में तेज थी 12वीं में उसके अच्छे नम्बर होने की वजह से उसका चयन शिक्षाकर्मी के पद हो गया। जया घोष का पढ़ाई के प्रति जज्बा शादी होने और नौकरी में आने के बाद भी कम नहीं हुआ। नौकरी करते हुए उसने डिस्टेंस एजुकेशन से ग्रेजुएशन किया फिर हिंदी और अंग्रेजी में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की। अब निर्मला घोष की बेटी जया घोष जनकपुर के कन्या माध्यमिक शाला में शिक्षिका के पद पर पदस्थ होकर ग्रामीण अंचल में ज्ञान का उजियारा फैला रही है।

निर्मला घोष कोलकाता से शादी के बाद जनकपुर आईं थी। नौकरी की तलाश में निर्मला को भाषा की दिक्कत से होकर भी गुजरना पड़ा। फिर निर्मला ने अपनी यहां रहकर पहले हिंदी सीखी और फिर 11वीं तक की शिक्षा हासिल करने के बाद उसकी नौकरी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर लगी।

बेटे को भी बनाया काबिल

58 वर्षीय निर्मला घोष का बेटा सुभाष घोष ग्रेजुएट है। सुभाष ने कई बार सेना की भर्ती की परीक्षा दी लेकिन माँ से दूर होने का डर सताने लगा तो वह इंटरव्यू में नहीं गया। 34 वर्षीय सुभाष घोष आज खुद का बिज़नेस कर अपनी माँ के साथ है।

निर्मला घोष कहती है कि-'पति के साथ छोड़ने के बाद उनके सामने बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी। घर में राशन के लिए पैसे नहीं होते थे तो मैं राशन के लिए पैसे जुटाने गाँव की ओर महुआ, लकड़ी व डोरी बीनने चली जाती थी और महुआ डोरी बेचकर जो पैसे मिलते थे। उससे घर का राशन लाती थी, यह उनकी रोज की दिनचर्या में शामिल था।

निर्मला ने बताया कि बच्चे कपड़े की जिद्द करते थे तो लोगो से मांगकर बच्चों को कपड़े पहना पाती थी। कभी-कभी तो ऐसे दिन भी आये की दोनों बच्चों के साथ मैं पूरा दिन भूखे भी रही। पर हौसला नहीं हारी।

मदर्स के डे के मौके पर निर्मला घोष ने कहा कि- 'माँ अपने बच्चों के लिए दुनिया में हर किसी से लड़ती है। माँ की इज्जत करना हर बच्चे का फर्ज है।'

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