अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार,... अब हमारा राजगीत, शासकीय कार्यक्रमों में गाया जाएगा

अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार,... अब हमारा राजगीत, शासकीय कार्यक्रमों में गाया जाएगा
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राज्य का राजगीत अब तय हो गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्योत्सव में अरपा पैरी के धार, महानदी है अपार...जैसे इस लोकप्रिय गीत को राज्य का राजगीत घोषित किया।

रायपुर। राज्य का राजगीत अब तय हो गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्योत्सव में अरपा पैरी के धार, महानदी है अपार...जैसे इस लोकप्रिय गीत को राज्य का राजगीत घोषित किया। अब इस गीत को शासकीय कार्यक्रमों और प्रमुख आयोजनों में गाया जाएगा। इस गीत को छग के साहित्यकार व भाषाविद डॉ. नरेंद्र देव वर्मा ने लिखा है। गौरतलब है, प्रमुख छत्तीसगढ़ी आयोजनों में इस सुप्रसिद्ध गीत को गाया जाता है।

सांस्कृतिक आयोजनों में इसे प्राथमिकता के साथ स्थान मिलता रहा है और अब इसे राजगीत घोषित कर दिया। इस गीत के रचियता डॉ. नरेंद्र देव के जन्म दिन से पूर्व संध्या इसका ऐलान किया गया। सांइस कॉलेज मैदान पर आयोजित राज्योत्सव के तीसरे दिन समारोह में पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जैसे ही मंच से इसका ऐलान किया, तालियां बज उठी। यहां यह बताना लाजिमी है कि राज्य गठन के 19 सालों में विविध क्षेत्रों में प्रतीकों को चिन्हांकित किया जा चुका है, लेकिन राजगीत का चयन नहीं हो सका था।

डॉ. वर्मा हैं रचयिता

अरपा पैरी के धार... गीत के रचयिता साहित्यकार एवं भाषाविद डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा का जन्म सेवाग्राम वर्धा में 4 नंवबर 1939 को हुआ था। 8 सितंबर 1979 को उनका रायपुर में निधन हुआ। डॉ. नरेंद्र देव वर्मा, वस्तुतः छत्तीसगढ़ी भाषा-अस्मिता की पहचान बनाने वाले गंभीर कवि थे। हिन्दी साहित्य के गहन अध्येता होने के साथ ही, कुशल वक्ता गंभीर प्राध्यापक, भाषाविद तथा संगीत मर्मज्ञ गायक भी थे। उनके बड़े भाई ब्रम्हालीन स्वामी आत्मानंदजी का प्रभाव उनके जीवन पर बहुत अधिक पड़ा था।

उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य का उद्भव विकास में रविशंकर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य में कालक्रमानुसार विकास का महान कार्य किया। वे कवि, नाटकार, उपन्यासकार, कथाकार, समीक्षक एवं भाषाविद थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह अपूर्वा की रचान की। इसके अलावा सुबह की तलाश (हिन्दी उपन्यास) छत्तीसगढ़ी भाषा उद्विकास, हिन्दी स्वछंदवाद प्रयोगवादी, नयी कविता सिद्धांत एवं सृजन, हिन्दी नव स्वछंदवाद आदि ग्रंथ लिखे।

उनके द्वारा लिखित मोला गरू बनई लेते छत्तीसगढ़ी प्रहसन अत्यंत लोकप्रिय है। डॉ. नरेंद्र देव वर्मा छत्तीसगढ़ के पहले बड़े लेखक हैं जो हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लिखकर मूल्यवान थाती सौंप गए। वे चाहते तो केवल हिन्दी में लिखकर यश प्राप्त कर लेते। लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ी की समृद्धि के लिए खुद को खपा दिया। डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने सागर विश्वविद्यालय से एम.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1966 में उन्हें प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिंतन शोध प्रबंध के लिए पी.एच.डी की उपाधि मिली। उन्होंने 1973 में पंडित रविशंकर विवि से भाषा विज्ञान में एम.ए की दूसरी परीक्षा उत्तीर्ण की तथा इसी वर्ष छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्भव विकास विषय पर शोध प्रबंध के आधार पर उन्हें भाषा विज्ञान में भी पी.एच.डी की उपाधि दी गई।

ये है राज्यगीत

अरपा पैरी के धार, महानदी है अपार इंदरावती हर पखारयतौर पईयां महूं विनती करव तौर भुंइया जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया (अरपा पैरी के धार महानदी है अपार इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां महूं विनती करव तोर भुंइया जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया) अरपा पैरी के धार महानदी है अपार इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां (मंहू विनती करव तोर भुंइया जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया) सोहय बिंदया सही, घाट डांगरी पहार चंदा सुरूज बने तोरे नैना सोनहा धान अइसे अंग, लुगरा हरियर हे रंग (सोनहा धाने के अंग, लुगरा हरियर हे रंग) तोर बोली हवे जइसे मैना अंचरा तोर डोलावय पुरवईया (महूं विनती करव तजोर भुंइया जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया) सरगुजा हे सुग्घ्ज्ञर, तोरे मउर मुकुट (सरगुजा हे सुग्धर जईसे मउर मुकुट)


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