जिस शाहीन बाग में हो रहा है प्रदर्शन, बगावत के नाम पर ही हुई थी उसकी स्थापना

दिल्ली का शाहीन बाग पिछले काफी दिनों से लगातार सुर्खियों में छाया है। 40 दिनों से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लोग धरने पर बैठे हुए हैं। शाहीन बाग में यह धरना-प्रदर्शन अपने इतिहास को पहली दफा दोहरा रहा है।
1980 के दशक में स्थापित शाहीन बाग की स्थापना में ही बगावत की सोच है। जिसे शाहीन बाग और वहां के लोग सार्थक कर रहे हैं। शाहीन बाग की स्थापना शारिक अंसारुल्लाह ने 1980 के दशक में की थी। उस वक्त अल्लामा इकबाल की कविता से एक शब्द लेकर कॉलोनी को शाहीन बाग नाम दिया गया। शाहीन बाग से जुड़े तथ्यों के बारे में खुद संस्थापक शारिक अंसारुल्लाह ने ये बातें बतायी हैं।
80 बीघा जमीन खरीदी
61 साल के शारिक अंसारुल्लाह ने हाल ही में बताया कि साल 1979 में वे यूपी के रामपुर से जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्ययन करने के लिए आए थे। जहां उन्होंने परिवार की मदद से साल 1984 में जसोला गांव में 80 बीघा जमीन खरीदी थी। वह इस कॉलोनी का नाम कुछ अलग सा रखना चाहते थे।
शाहीन का अर्थ होता है बाज
जिसके लिए उन्होंने अल्लामा इकबाल की एक प्रसिद्ध कविता 'तू शाहिन है, परवाज है काम तेरा, तेरे सामने असमान और भी हैं' से प्रेरित होकर कॉलोनी का नाम शाहीन बाग रखा। इकबाल ने अपनी कई गजलों और कविताओं में शाहीन शब्द का इस्तेमाल किया था, जो आज़ादी के बाद के युग में युवाओं को प्रेरित करने के लिए लिखे गए थे। शाहीन एक फारसी शब्द है। जिसका अर्थ होता है बाज।
शाहीन बाग अपने नाम को जी रही है
वहीं अंसारुल्लाह का कहना है कि यह छोटी सी कॉलोनी 36 साल बाद इतनी लोकप्रियता हासिल करेगी, उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें खुशी है कि शाहीन बाग अपने नाम पर जी रही है। शाहीन बाग के लोगों की हिम्मत बाज़ों के साथ मेल खा रही है।
कॉलोनी दो व्यक्तियों ने बसाई
अंसारुल्लाह एक लड़कियों के लिए और दूसरा लड़कों के लिए शाहीन पब्लिक स्कूल के नाम से दो स्कूल चलाते हैं। वहीं शाहीन बाग RWA के कोषाध्यक्ष ने बताया कि शुरु में कॉलोनी दो व्यक्तियों ने विकसित की थी। एक परिवार और था जिसने अपनी कॉलोनी का नाम निशात बाग रखा था और अंसारुल्लाह ने शाहीन बाग। दोनों ही कॉलोनी एग्रीकल्चरल लैंड पर बनी हैं।
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