Birthday Special Satyajit Ray: एकमात्र भारतीय डायरेक्टर जिसने जीता ऑस्कर अवॉर्ड, विदेशों मे दिलाई भारत को पहचान

सत्यजीत रे(Satyajit Ray) भारतीय फिल्म जगत का अभिन्न हिस्सा है। या यूं कहे विदेशों में भारतीय फिल्मों को पहचान दिलाने वाला नाम सत्यजीत रे है। कोलकाता में 1948 में फ़िल्म सोसायटी की शुरुआत करने वाले सत्यजित रे पहले फ़िल्मकार थे। सत्यजीत रे ने देश की वास्तविक तस्वीर और कड़वे सच को बग़ैर किसी मिर्च मसाले के ज्यों का त्यों अपनी फिल्मों में दिखाया है। दादा साहेब फाल्के के बाद इंडियन सिनेमा में सबसे बड़ा नाम सत्यजीत रे का है। सत्यजीत रे की गिनती उन सितारों में होती है जिन्होंने विदेश में भी भारतीय सिनेमा का परचम बुलंद किया। उन्होंने भारत में रहकर आर्ट फिल्में बनाई जो देश और दुनियाभर में बहुत पसंद की गयी। आइये आज उनकी जन्मतिथी पर हम उनकी कुछ ख़ास फिल्मों के बारें में बात करते हैं।
सत्यजीत रे ने 'शतरंज के खिलाड़ी', 'अपू ट्रायोलॉजी', 'महानगर', 'आंगतुक', 'देवी' और 'चारुलता' जैसी कुछ बहुत ही बेहतरीन फिल्में बनाई हैं।
फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' मे सत्यजीत रे ने आखरी मुगल 'वाजिद अली शाह' और उनके मंत्रियों की कहानी दिखाई थी। जिनको शतरंज खेलने की जिद रहती है और वो इसे आनंदित हो कर खेलने के लिए महफूज जगाहों की तलाश करते रहा करते थे। फिल्म में अहम किरदार अमजद खान, संजीव कुमार और सहीद जाफरी ने निभाया था।
'अपू ट्रायोलॉजी' को तीन हिस्सो में बनाया गया था। इसका पहला भाग 'पाथेर पांचाली' दूसरा भाग 'अपराजितो' और तीसरा भाग 'द वर्ल्ड ऑफ अपू' था। बताया जाता है कि यह फिल्म काफी मुश्किल से बनी थी। 'पाथेर पांचाली' बनाने के लिए सत्यजीत रे अपनी बीवी की गहने तक गिरवी रख दिए थे। भारत में इस फिल्म की काफी आलोचना हुई क्योंकि इसमें भारत की गरीबी का बखान था। फिल्म में खास तौर से पश्चिम बंगाल के हालात को खुल कर पेश किया था।
फिल्म 'महानगर' की बात करें तो जैसा कि फिल्म के नाम से पता चलता है महानगर फिल्म में सत्यजीत रे ने बड़े शहरों में रहने वाले लोगों के तौर-तरीकों और उनके जीवन के उतार चढ़ाव को दिखाया था। इसके साथ ही फिल्म में बाहर काम-काज पर जाने वाली महिलाओं की जिंदगी के बारें में भी बताया था कि कैसे बड़े शहर में रहने वाली महिलाएं ऑफिस में काम करने के साथ घर के काम भी बड़ी सहजता से करने में सक्षम होती हैं।
जहां एक ओर फिल्म 'देवी' में एक 17 साल की लड़की की कहानी को दिखाया गया है कि कैसे उसे देवी मानकर लोग उसकी पूजा करने लगते है। खुद के देवी माने जाने पर कैसे वह बिल्कुल लाचार महसूस करती है क्योंकि आम लड़कियों की तरह सामान्य जीवन नहीं जी पाती है। तो वहीं दूसरी ओर फिल्म 'चारूलता' में महिला के व्यभिचार और अकेलेपन को बहुत सहजता से बताती है। फिल्म में एक महिला के अकेलेपन को दिखाया गया है। फिल्म की कहानी ये है कि एक महिला अपने मेंटर से प्रेम में पड़ जाती है और मेंटर उनके पति का चचेरा भाई होता है। इस फिल्म को अपने समय से आगे की फिल्म माना जाता है।
'आंगतुक' की बात करें तो यह फिल्म सत्यजीत रे की आखिरी फीचर फिल्म थी। फिल्म की स्क्रिप्ट, डायलॉग और सीन्स बहुत ही शानदार थे, इसी के साथ उत्पल दत्त के बेहतरीन अभिनय ने फिल्म में चार चांद लगा दिए थे।
सत्यजीत रे ने अपनी फिल्मो से कई बड़े पुरूस्कार अपने नाम किये थे। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से पद्म विभूषण से सम्मानित भी किया था। इसके अलावा उन्होंने ऑस्कर अवॉर्ड(Oscar Award) के साथ- साथ दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड(Dada Saheb Phalke) भी अपने नाम किया। सत्यजीत रे को साल 1992 में ऑस्कर का ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट दिया गया था। ये अवॉर्ड सेरेमनी 30 मार्च 1992 को आयोजित की गई थी। 23 अप्रैल 1992 में दिल का दौरा पड़ने से सत्यजीत रे का निधन हो गया वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 1992 में सत्यजीत रे को भारत रत्न(Bharat Ratna) से सम्मानित किया गया था। वहीं भारत सरकार द्वारा सत्यजीत रे को 32 राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
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