महाभारत : नितीश भारद्वाज ने दिया शांतनु को ऑडिशन, मिला श्रीकृष्ण का रोल

बीआर चोपड़ा के धारावाहिक महाभारत के सबसे आकर्षित और चर्चित कलाकारों में पहला नाम है, नितीश भारद्वाज का। जिन्होंने महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण के रोल को पर्दे पर जीवंत किया। लेकिन खास बात यह है कि उन्होंने इस सीरियल के लिए जिस किरदार का ऑडिशन दिया था, वह श्रीकृष्ण का नहीं बल्कि राजा शांतनु का था। महाभारत के ऑडिशन के दिनों को याद करते हुए नितीश बताते हैं, 'यह 1986 की बात है, जब ऑडिशन हुए थे। बी.आर. चोपड़ा साब ने टाइम्स ऑफ इंडिया समेत तमाम बड़े अखबारों में क्वार्टर पेज का ऐड दिया था कि मैं महाभारत बनाने जा रहा हूं और पूरे देश से ऐक्टर्स को आमंत्रित करता हूं। अपना-अपना सीवी, बायोडेटा भेजें। हमने भी भेज दिया था उसमें। तब मैं मुंबई में था। थियेटर करता था।' नितीश भारद्वाज के अनुसार, उस साल फिल्मालय स्टूडियो में कुछ नहीं तो 2000 ऐक्टर्स का ऑडिशन हुआ था। तब उन्होंने भी ऑडिशन दिया।
नितीश कहत है, 'मुझे आज भी याद है, जो शांतनु-गंगा का सीन है। देवी तुम कौन हो…? वह सीन मुझे करने के लिए दिया गया था और मैंने शांतनु किया उसमें। एकाध और सीन भी बाद में दिया गया। उस ऑडिशन के समय एक नाटक के लिए मैंने मूंछें बढ़ा रखी थीं, तो पूरे माइथोलॉजिकल गेट-अप में मॉडर्न मूंछ के साथ वो ऑडिशन दिया था। उसके बाद मैं इसे भूल गया था।' इस बीच बीआर चोपड़ा की टीम की ओर से उन्हें कभी विदुर तो कभी नकुल-सहदेव के रोल ऑफर किए किए। विदुर के लिए नीतिश राजी थे परंतु वह रोल फिर वीरेंद्र राजदान को चला गया। कभी हां कभी ना वाली स्थितियों में नीतिश अंततः अभिमन्यु का रोल भी करना चाहते थे, मगर वह भी उन्हें नहीं मिला। फिर नितीश भारद्वाज महाभारत को भूल कर एक मराठी फिल्म की शूटिंग मे लग गए। परंतु 'समय' उन्हें नहीं भूला।
हजारों ऑडिशन के बाद भी बीआर चोपड़ा की श्रीकृष्ण की तलाश खत्म नहीं हुई और एक दिन अचानक नितीश भारद्वाज को बुलावा भेजा गया। नितीश पिछले अनुभवों को देखते हुए बहुत उत्साहित नहीं थे और उन्हें विश्वास भी नहीं था कि कृष्ण जैसे किरदार में उतर पाएंगे। काफी बुलावों के बाद जैसे-तैसे ऑडिशन के ले गए। इस ऑडिशन में सीरीयल से जुड़े तमाम दिग्गज बैठे थे, बीआर चोपड़ा के बड़े केबिन में। स्वयं बीआर चोपड़ा, उनके बेटे रवि चोपड़ा, गूफी पेंटल, सतीश भटनागर, राही मासूम रजा, पंडित नरेंद्र शर्मा, भृंग तुपकरी और इनके दो-चार मित्र। नितीश याद करते हैं, '1988 में रवि चोपड़ा ने मुझे विशेष रूप से बुला कर श्रीकृष्ण के लिए ऑडिशन लिया। मुझे छोटा-सा संवाद दिया गया था और बेसिक कॉस्ट्यूम और मेकअप की सुविधा थी। ऑडिशन उनके खार ऑफिस में हुआ।'
नितीश बताते हैं, 'ऑडिशन की सारी तैयारी के बाद मैं दिए गए संवाद से संतुष्ट नहीं था क्योंकि बचपन से मैंने कृष्ण को बहुत पढ़ा है। महाभारत को पढ़ा है। कृष्ण और महाभारत के ऊपर जितना समीक्षात्मक लेखन हुआ है मराठी में, वह मैंने पढ़ा है क्योंकि ये तमाम किताबें घर में मेरी माताजी की लाइब्रेरी में थीं। इनके साथ मैं बड़ा हुआ हूं। कुछ हद तक गीता भी मुझे मुखाग्र थी। इसलिए मैंने उनसे कहा कि यह संवाद पर्याप्त नहीं हैं, मुझे दस मिनिट दीजिए। मैं जो श्लोक मुझे याद हैं उन्हें डालता हूं, उनका जो अर्थ है उसे डालता हूं। ऐसा करके मैंने अपना ही एक डायलॉग बना लिया। वह लंबा बन गया। डेढ़-दो पेज का। लेकिन वह जो मेरे भीतर से आया, मुझे जो लगा कि कृष्ण को गीता में से कर्मयोग पर अवश्य बोलना चाहिए या भगवान के रूप में भगवान उवाच जैसा कुछ बोलना चाहिए और अठारहवें अध्याय में से कुछ बोलना चाहिए। मैंने पांच-छह श्लोक डाल कर उसे विस्तृत बनाया और मैंने उसको बोला। चूंकि मेरी समझ कृष्ण की कुछ अलग थी, मैंने उसी तरह से ऑडिशन दिया। ऑडिशन करके मैं दूसरे कमरे में चला गया मेकअप उतारने के लिए। तभी मेरा मेक-अप मैन चमन भागा-भागा आया कि आपका तो हो गया… आपका तो हो गया… आपको कर लिया कास्ट। अरे! मैंने कहा कि कर लिया वो तो ठीक है मगर मैं अभी अनश्योर हूं। मुझे नहीं पता, करना है कि नहीं।' सोचिए, ऑडिशन में पास होने के बावजूद नितीश भारद्वाज यह तय नहीं कर सके थे कि उन्हें यह रोल निभाना है या नहीं! इसकी भी वजह थी। नितीश बताते हैं, 'उन लोगों ने मुझे बुलाया कि इस रोल के लिए मुझे चुन लिया गया है। मगर मैंने अपनी बात रखी कि आप कहोगे, भगवान हो तो मुस्कराते रहो। जबकि कृष्ण जो हैं, बहुत कुछ करते हैं। हमेशा मुस्कराते भर नहीं हैं। तब पंडित नरेंद्र शर्मा ने कहा बेटा तुम जो समझ रहे हो, वो सब होगा इसमें।' तब जाकर नितीज भारद्वाज ने रोल को हां कहा। वह और पूरी दुनिया आज इसे उनका लाइफटाइम रोल मानती है।
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