रक्ताचंल वेब सीरीज रिव्यूः खामोश, खून-खराबा जारी है

रक्ताचंल वेब सीरीज रिव्यूः खामोश, खून-खराबा जारी है
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मूल रूप से रक्तांचल उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल कहे जाने वाले क्षेत्र में कच्ची शराब से लेकर कोयला खदानों तक टेंडरों से जुड़े माफिया और राजनीतिक चक्रों-कुचक्रों की बात करती है।

रक्तांचल पुराने भारत की तस्वीर पेश करती है। जहां लाइसेंसी राज/टेंडर और ठेकेदारी प्रथा से व्यवस्था चलती थी। कंप्यूटर और मोबाइल नहीं आए थे। इंटरनेट की तो कल्पना ही नहीं थी। देसी कट्टे अभी आधुनिक पिस्तौलों और मशीनगनों में नहीं बदले थे। बैलेट का नतीजा बुलैट की ताकत से बदल दिया जाता था। जब लोकतंत्र में माफिया राज की बड़ी धमक हुआ करती थी। यह 1980 के दशक का वह दौर दिखाती है, जो शहरी होकर भी देहाती लगता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि उस दशक में जो रक्तपात था, 2020 में नहीं हो रहा। हो रहा है, मगर इतने महीन अंदाज में कि किसी के मत्थे इल्जाम मढ़ा ही नहीं जा सकता। खैर, यहां बात है रक्तांचल की। निर्देशक रितम श्रीवास्तव की यह वेब सीरीज अपने परिदृश्य के साथ तो न्याय करती है परंतु कथानक में कई जगहों पर बुरी तरह से लड़खड़ा जाती है। जिससे दर्शक का मन वेबसीरीज को बीच में ही छोड़ देने होने लगता है। कहानी के पुराने फार्मूलों को अपनाते हुए रक्तांचल के लेखकों और निर्देशक ने एक बड़ा जोखिम उठाया है। वह यह कि यहां दो मुख्य किरदारों (क्रांति प्रकाश झा और निकितिन धीर) के साथ नायिकाओं का कोई ट्रेक लगभग नहीं है। जिससे कहानी भावनात्मक स्तर पर बहुत ड्राई है। करीब आधी गुजर चुकी कहानी में सनकी (विक्रम कोचर) और शोभा (रंजनी चक्रवर्ती) के प्रेम का छल-छद्म से भरा ट्रेक नहीं आता तो रक्तांचल के बीच में ही धंस जाने का खतरा था। सनकी और शोभा रक्तांचल को काफी हद तक बचा ले जाते हैं।

मूल रूप से रक्तांचल उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल कहे जाने वाले क्षेत्र में कच्ची शराब से लेकर कोयला खदानों तक टेंडरों से जुड़े माफिया और राजनीतिक चक्रों-कुचक्रों की बात करती है। टेंडर की सूचना निकलती तो हर आम-ओ-खास कारोबारी के लिए थी, मगर मिलती माफियाओं को थी। जिनकी पीठ पर राजनेताओं का हाथ रहा करता। यह वह दौर था जब बाहुबली नेता नहीं बने थे, लेकिन वे समझ चुके थे कि एक कदम बढ़ा कर कुर्सी पाई जा सकती है। बाद की कहानियां इन माफियाओं और बाहुबलियों के राजनेता बनने की है।

रक्तांचल में पूर्वांचल के टेंडर माफिया वसीम खान का राज है। वह टेंडर निकालने वालों को बोरियों में भर कर नोट भेजता है और कारोबारियों को सरकारी अधिकारी अब अगले साल मिलने को कह देते हैं। इसी वसीम खान (निकितिन धीर) को चुनौती देता है कभी आईएएस बनने का ख्वाब देखने वाला विजय सिंह (क्रांति प्रकाश झा)। पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अपराध की दुनिया में उतरा विजय अपनी ताकत बढ़ाते हुए वसीम खान के गढ़ में सेंध लगाता है। उसके सिर पर नेता साहिब सिंह का हाथ है। मगर अव्वल तो साहिब सिंह की हत्या हो जाती है और फिर वसीम पर हाथ रखने वाला नेता करन सिंह विजय को तमाम मामलों में फंसा कर पुलिस वारंट निकलवा देता है। कई केसों में फंसा देता है। विजय सिंह के लिए सारे मामले अस्तित्व की लड़ाई में बदल जाते हैं। वसीम खान और विजय सिंह की लड़ाई में आप यहां कुछ नया नहीं पाते। उनका अंदाज भी विशेष नहीं है। इसी दौरान सनकी पांडे और शोभा की एंट्री होती है और ढलती हुई कहानी नई जवानी पाती है। रक्तांचल में आपको गैंग्स ऑफ वासेपुर का हैंगओवर नजर आए तो बहुत आश्चर्य बात नहीं है।

रक्तांचल की सबसे बड़ी समस्या निकितिन धीर हैं। वह रक्तांचल के पूरे परिदृश्य में आउट ऑफ फ्रेम हैं। उनकी कद-काठी, बोलने-चलने का अंदाज, चेहरे के हाव-भाव पूर्वांचल वालों जैसे नहीं दिखते। वहीं निर्देशक पता नहीं क्यों विजय सिंह को आधे दृश्यों में मफलर से मुंह ढंकाए रहते हैं। विजय का हीरोइज्म कहानी में उभर नहीं पाता तो इसकी वजह उन्हें लेकर शूट किए गए दृश्य भी हैं। इसमें संदेह नहीं कि क्रांति प्रकाश झा निकितिन धीर से कहीं बेहतर लगे हैं। इसके बावजूद यहां याद रख जाने वाले दो ही किरदार हैं, सनकी और शोभा। वेब सीरीज के बढ़ते हुए एपिसोड्स में कुछ जरूरी बदलाव नहीं लाए गए होते, तो जो बचा है वह भी नहीं बचता। इस लिहाज से मूल कहानी को विस्तार देने वाले संजीव के रजत, सर्वेश उपाध्याय और शशांक राय की मेहनत यहां साफ नजर आती है। फार्मूला कथानक को एक क्षेत्र विशेष की समझ के साथ इन्होंने अच्छे ढंग से गढ़ा है।

रक्तांचल के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्मों को यह समझ लेने की जरूरत है कि पुरानी बोतलों में बार-बार नई शराब भरते रहेंगे तो जल्द ही आकर्षण खो बैठेगे। खून-खराबे, बदले, माफियाओं की मार-धाड़ और गोला-बारूद पहले भी बहुत बिखरती रही है। इसमें ज्यादा कुछ कहने को नहीं है। एमएक्स प्लेयर का सौभाग्य है कि रक्तांचल आकर्षण खोने की कगार से बमुश्किल बच पाई है। जिसके लिए लेखकों का आभार प्रकट किया जाना चाहिए। ओटीटी नए विषयों और नई कहानियों के लिए है। इसी में इसकी सार्थकता भी है।

रिव्यू/वेब सीरीज/रक्तांचल

प्लेटफॉर्मः एमएक्स प्लेयर

जॉनरः एक्शन-क्राइम-थ्रिलर

अवधिः नौ एपिसोड

निर्माताः जतिन सेठी, पियूष गुप्ता, शशांक राय, प्रदीप गुप्ता, महिमा गुप्ता

निर्देशकः रितम श्रीवास्तव

सितारेः क्रांति प्रकाश झा, निकितिन धीर, विक्रम कोचर, रंजनी चक्रवर्ती

रेटिंग **1/2

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