जानिए कौन हैं 'तानाजी मालुसरे', जिनके ऊपर अजय देवगन ने बनाई ये शानदार फिल्म

बॉलीवुड में बायोपिक और हिस्टोरिकल मूवी का दौर चल रहा हैं। अर्जुन कपूर और कृति सेनन की फिल्म पानीपत के बाद अब अजय देवगन, सैफ अली खान और काजोल की फिल्म 'तानाजी: द अनसंग वॉरियर' बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही हैं। फिल्म ने महज तीन दिनों में 35 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया हैं।
फिल्म में अजय देवगन ने अपनी मेहनत और एक्टिंग के दम पर तानाजी के किरदार में जान डाल दी हैं। ऐसे में लोग तानाजी के बारे में और भी बारिकियों को जानना चाहते हैं। तो चलिए हम आपको तानाजी के जीवन और उनसे जुड़ी बातों को बारिकियों से बताते हैं।
दरअसल, तानाजी का पूरा नाम तानाजी मालुसरे हैं.. तानाजी और छत्रपति शिवाजी महाराज के दोस्ती बेहद गहरी थीं। छत्रपति शिवाजी महाराज तानाजी को इसलिए भी बहुत मानते थे, क्योकिं वो एक वीर मराठा थे और साम्राज्य के लिए जान भी दांव लगाने से पीछे नहीं हटे।
तानाजी मराठा साम्राज्य में छत्रपति शिवाजी महाराज के सुभेदार भी थे। 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई में तानाजी ने अपने नाम लोहा मनवाया और दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। इसलिए तानाजी को 'सिंह' नाम से भी जाना जाता हैं। तानाजी का जन्म 17वां शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण के पास उमरथे में हुआ था।
वो बचपन से ही छत्रपति शिवाजी के साथ रहे और साथ खेले भी। तानाजी, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में उनके सुरक्षा के लिए खड़े होते थे। इतिहास के पन्नों को खंगालो तो, उसमें एक किस्सा शामिल हैं, जब तानाजी और छत्रपति शिवाजी दोनों ही औरंगजेब से मिलने आगरा गए थे।
लेकिन इस दौरान औरंगजेब ने उन्हें कपट के जरिए बंदी बना लिया। इस पर तानाजी ने एक योजना बनाई और मिठाई के बड़े बड़े पिटारे में छिपकर वो और छत्रपति शिवाजी को लेकर बाहर निकल आए।
ऐसा ही एक और किस्सा हैं, इतिहास से संबंधित किताबों के मुताबिक, एक दिन शिवाजी महाराज की राजमाता जीजाबाई महल से कोंडाना किले को एक टक देखी जी रही थीं। ये देख शिवाजी ने अपनी माता से पूछा कि वो एक नजर किले को क्यों देख रहीं हैं, तो इसपर राजमाता जीजाबाई ने बताया कि इस किले पर लगा हरा रंग का झंडा उनके मन को कष्ट दे रहा हैं, वहां मैं भगवा रंग का झंडा देखना चाहती हूं।
इस पर शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सिपाहियों को बुलाया और कहा कि कोंडाना किला जीतने के लिए अब युद्ध की तैयारी करें... इस युद्ध में कौन-कौन शामिल होगा... इन सिपाहियों के बीच एक सुर तेजी से कानों पर पड़ा 'मैं जीतकर लाऊंगा कोंडान किले को'... ये आवाज किसी और की नहीं बल्कि तानाजी की थीं।
इस किस्से में भी एक और किस्सा छिपा हुआ हैं। दरअसल, शिवाजी महाराज नहीं चाहते थें कि कोंडाना किले को जीतने के लिए होने वाली युद्ध में तानाजी को पता ना लगे, क्योंकि उस वक्त तानाजी अपने बेटे रायबा की शादी में व्यस्त थे।
इसलिए शिवादी महाराज उन्हें युद्ध की खबर देकर परेशान नहीं करना चाहता। लेकिन जब इस बात का पता तानाजी को चला तो वो तुरंत शिवाजी महाराज का साथ देने पहुंच गए। उन्होंने अपने बेटे की शादी से ज्यादा शिवाजी महाराज के साथ इस युद्ध में शामिल होने को ज्यादा महत्वपूर्ण समझा।
तानाजी अपने भाई सूर्याजी मालुसरे और 732 सैनिकों के साथ कोंडाना के लिए निकल पड़े। उस वक्त तानाजी शरीर से काफी दुरुस्त और शक्तिशाली थे। वहीं कोंडाना किला की ओर जाना आसान नहीं था। इस किले की सुरक्षा से लेकर तमाम व्यवस्था उद्यभान राठौड़ देखते थे।
उद्यभान राजकुमार जय सिंह के खासमखास थे। कई मुश्किलों को पार कर तानाजी और उनके सैनिकों किले पर चढ़ पाने में सफल रहे। जैसे ही तानाजी सैनिकों समेत कोंडाणा किले पहुंचे तो उनपर मुगलों ने हमला कर दिया।
एक तरफ तानाजी और उनकी 732 सैनिक थे तो दूसरी तरफ उद्यभान राठौड़ और उसकी 5 हजार मुगल सैनिक मौजूद थे। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन युद्ध जीतने के बाद ही तानाजी ने अपनी सांसे बंद की।
तानाजी के के वीरगति को प्राप्त होने की खबर ने शिवाजी महाराज को तगड़ा झटका दिया। उन्होंने कहा- 'हमने गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मैनें मेरा 'सिंह' खो दिया...' छत्रपति शिवाजी महाराज ने तानाजी की याद में कोंडाना का नाम बदलकर 'सिंहगढ़' रख दिया। यही नहीं, पुणे नगर के 'वाकडेवाडी' का नाम भी बदलकर 'नरबीर तानाजी वाडी' रख दिया।
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