जब एक पार्ट टाइमर के पैरों की धूल माथे पर लगा ली गुरु दत्त ने, जानिए कौन था वह

यह बात 1954-1955 के करीब की है। निर्माता-निर्देशक-अभिनेता गुरुदत्त फिल्म इंडस्ट्री की पहली सिनेमास्कोप फिल्म कागज के फूल बना रहे थे। एक सीन में उन्हें एक्स्ट्रा कलाकारों की जरूरत पड़ी। एक्टर सप्लायर ने तुरंत कई एक्टर पेश कर दिए। गुरुदत्त हर काम बारीकी से करते थे। फिल्म की कथावस्तु, पृष्ठभूमि, संगीत और पात्रों से लेकर एक्टर तक खुद फाइनल करते। उन्होंने कलाकारों को परखना शुरू किया। अचानक उनकी निगाहें एक चेहरे पर ठहर गईं। वह उसके नजदीक गए और एकटक देखने लगे। चेहरा उन्हें जाना-पहचाना लगा। उस चेहरे की रंगत ढली हुई और आंखें बुझी थी। अचानक गुरुदत्त झुके और उस एक्टर के चरणों की धूल अपने माथे पर लगा ली।
सैट पर उपस्थित लोग हैरानी से देखते रहे। किसी को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। वह व्यक्ति कौन है और गुरुदत्त यह क्या कर रहे हैं। फिर पता चल कि वह एक्स्ट्रेस अपने वक्त के मशहूर अदाकार मास्टर निसार थे। जिन्हें फटेहाल देख कर भी गुरुदत्त की आंखों ने धोखा नहीं खाया। मास्टर निसार भी गुरुदत्त की इस हरकत पर हैरान रह गए। उनका गला भर आया। आंखों में आंसू तैर गए। शब्द होठों पर रुक गए। उन्होंने गुरुदत्त को सीने से लगा लिया। दोनों को गले मिलते देख कर पूरे सैट पर सन्नाटा छाया था। गुरुदत्त ने मास्टर निसार से कहा कि मैं आपको कभी भूल नहीं सकता। एक समय फिल्म इंडस्ट्री में आपका एकछत्र राज था। आपकी जगह एक्स्ट्रा कलाकारों में नहीं बल्कि इस कुर्सी पर है। कहते हुए गुरुदत्त ने उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठा दिया। गुरुदत्त यहीं नहीं रुके और कहा कि मेरी जगह आपके चरणों में है। आप इस कुर्सी पर बैठिए। रोज आइए और यहीं बैठिए। जब तक फिल्म पूरी नहीं होती।
मास्टर निसार धर्मसंकट में थे। वह गुरुदत्त के व्यवहार से निराश हो गए क्योंकि वह अब फिल्म इंडस्ट्री के सितारे नहीं बल्कि साधारण व्यक्ति थे, जिसके पास पैसे नहीं थे। उन्हें काम चाहिए था। वह घोर गरीबी और आर्थिक संकट में जी रहे थे। सम्मान से पेट तो नहीं भर सकता था। उन्होंने गुरुदत्त से कहा कि मेरे लायक कोई दूसरा काम दे दो। मगर गुरुदत्त ने कहा कि दूसरा काम तो है नहीं परंतु मैं आपको एक्स्ट्रा की भीड़ में खड़ा करने का पाप नहीं कर सकता। आप मेरी फिल्म के सैट पर रोज आएंगे तो मुझे आपसे आशीर्वाद मिलेगा। प्रेरणा मिलेगी। आपके सुझाव मेरा मार्गदर्शन करेंगे। आप रोज आएं और शूटिंग होने तक रहें। जब तक फिल्म पूरी नहीं हो जाती, पारिश्रमिक लेकर जाएं। यह सुन कर मास्टर निसार फूट-फूट कर रोने लगे। वह गुरुदत्त के पैरों में गिर पड़ना चाहते मगर गुरुदत्त ने उन्हें संभाल लिया।
उल्लेखनीय है कि मास्टर निसार आलम आरा से शुरू हुए बोलती फिल्मों के दौर के पहले सुपर स्टार थे। जो के.एल. सहगल के उभरने से पहले 1930-40 के दशक में करिअर के शिखर पर थे। उनकी एक झलक पाने को हजारों की भीड़ स्टूडियोज के सामने जुटा करती थी। वह अपने जमाने के जुबली स्टार और सबसे महंगे सितारे थे। उन्होंने चार शादियां की और उनके रोमांस के किस्से भी चर्चित हुआ करते थे। अच्छे दिनों में वह पूरी शानो-शौकत से रहते थे। नतीजा यह कि जब फिल्में मिलनी बंद हुईं तो बुरे दिन आ गए। 1940 के आखिरी दिनों में वह चरित्र भूमिकाएं करने लगे और वक्त के साथ एक्स्ट्रा के रोल ढूंढने लगे। हालांकि बीच-बीच में इंडस्ट्री के कई दिग्गज मास्टर निसार को भूमिकाएं दे कर उनकी मदद करते परंतु ऐसे बुरे दिन भी आए कि उन्हें भीख मांग कर जीवन गुजारना पड़ा। जुलाई 1980 में मास्टर निसार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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