रामानंद चोपड़ा ने अपना नाम बदलकर क्यों रख लिया रामानंद सागर

रामानंद चोपड़ा ने अपना नाम बदलकर क्यों रख लिया रामानंद सागर
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कभी रामानंद चोपड़ा, कभी रामानंद बेदी तो कभी रामानंद कश्मीरी के नाम से। लेकिन जिस नाम से वह अमर हुए वह है, रामानंद सागर। यह रोचक कहानी है कि उन्होंने लगभग मध्य आयु में न केवल अपना नाम रामानंद सागर रखा बल्कि अपने पांच बेटों के नाम से भी कुल नाम चोपड़ा हटा कर सागर लगा दिया।

कहते हैं कि रामकथा सबसे पहले भगवान शिव ने पार्वती को सुनाई थी। फिर त्रेता युग में वाल्मिकी ने रामायण लिखी। कलयुग में तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में इसे जन-जन तक पहुंचाया और नई दृश्य-श्रव्य तकनीक वाले आधुनिक युग में इसे रामानंद सागर ने पर्दे पर रचा। कुल लोग उन्हें हमारे समय का तुलसी कहते हैं। रामानंद सागर वास्तविक नाम रामानंद चोपड़ा था। 27 दिसंबर 1917 को उनका जन्म अपने नाना के घर में हुआ। नाना ने उन्हें नाम दिया, चंद्रमौली। रामानंद सागर मूलतः संवेदनशील लेखक थे। उन्होंने उपन्यास लिखे। कहानियां लिखीं। अखबारों में लेख लिखे। कभी रामानंद चोपड़ा, कभी रामानंद बेदी तो कभी रामानंद कश्मीरी के नाम से। लेकिन जिस नाम से वह अमर हुए वह है, रामानंद सागर। यह रोचक कहानी है कि उन्होंने लगभग मध्य आयु में न केवल अपना नाम रामानंद सागर रखा बल्कि अपने पांच बेटों के नाम से भी कुल नाम चोपड़ा हटा कर सागर लगा दिया।

फिल्म प्रचार डॉट कॉम के मुताबिक, 1947 में हिंदुस्तान विभाजन के बाद कई मुश्किले झेलता सागर परिवार कश्मीर से दिल्ली और फिर मुंबई आया। रामानंद सागर पर पत्नी और पांच बच्चों (चार बेटे, एक बेटी) समेत, मां, सास, सालों और उनकी पत्नियों समेत 13 लोगों की जिम्मेदारी थी। भारत आने के बाद उनके घर में एक और बेटा हुआ। इस संपन्न परिवार के पास कुछ नहीं बचा था। मुंबई में जमने से पहले रामानंद सागर ने पत्रकारिता की, सड़कों पर साबुन बेचे, चपरासी बने, मुनीमगिरी की। रामानंद साहित्यिक रुझान के व्यक्ति थे। अविभाजित भारत में उन्होंने लाहौर की फिल्म इंडस्ट्री में लेखन से अभिनय तक किया था। भारत में वह फिल्मों में काम की तलाश में मुंबई पहुंचे। उन्होंने पहले कभी समुंदर नहीं देखा था। एक सुबह वह चौपाटी चले गए और समुद्र को देखते रहे।

आज क्वींस नेकलेस कहे जाने वाले इलाके में उन्होंने समुद्र देव से प्रार्थना की कि वह उन्हें अपनी इस सपनों और अवसरों की नगरी में स्वीकार करें। तभी समुद्र से तेज लहर उठी और उन्हें लगभग भिगोती हुई किनारे की तरफ बढ़ गई। रामानंद सागर ने महसूस किया कि समुद्र ने उन्हें आशीर्वाद दिया है और उसकी लहरों से ओम की तरंगें उठ रही है। उन्हें विश्वास हो गया कि समुद्र देवता के आशीर्वाद से मुंबई नगरी ने स्वीकार कर लिया है। वह अभिभूत हो गए। तभी उन्होंने तय किया कि वह अपना पारिवारिक नाम चोपड़ा नहीं लिख कर सागर रख लेंगे। तब उन्होंने न केवल अपना नाम रामानंद सागर रखा बल्कि बेटों के नाम भी सुभाष सागर, शांति सागर, आनंद सागर, प्रेम सागर और मोती सागर कर दिए।

इसे चमत्कार कहिए या उन्हें सागर से सचमुच मिला आशीर्वाद, नाम बदलने के बाद सफलता उनसे दूर नहीं रही। विभाजन की त्रासदी पर लिखे उनके उपन्यास और इंसान मर गया ने उन्हें साहित्यिक संसार में खूब सम्मान दिलाया। नाम बदलने के बाद उन्होंने राज कपूर के लिए फिल्म लिखी, बरसात। 1949 में रिलीज हुई इस फिल्म की हिंदी सिनेमा के इतिहास में खास जगह है। इसने आरके बैनर्स को इंडस्ट्री में जमा दिया। संगीतकार शंकर-जयकिशन, गीतकार शैलेंद्र और हसरत जयपुरी, अभिनेत्री निम्मी और अभिनेता प्रेमनाथ की यह पहली फिल्म थी। सभी आगे चलकर हिंदी सिनेमा के दिग्गजों में शुमार हो गए।

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