पानीपत के एक्सपोर्टरों के 3000 करोड़ के टेक्सटाइल उत्पाद शिपमेंट में अटके

विकास चौधरी : पानीपत
Panipat Textiles एक्सपोर्टरों की हालात सन् 1973 में प्रदर्शित हिंदी फिल्म धुंध में हीरोइन जीनत अमान पर फिल्माए गए गाने उलझन सुलझे ना, रस्ता सूझे ना, जाऊं कहां, जैसी हो गई है। लॉक डाउन के कारण 3000 करोड रुपये के टेक्सटाइल उत्पाद निर्यात के आर्डर गंवा चुके पानीपत के एक्सपोर्टरों का करीब तीन हजार करोड रूपये कीमत के टेक्सटाइल उत्पाद शिपमेंट (एक्सपोर्ट हाउस से माल का कंटेनर में लदान कर बंदरगाह पर खडे सुमंद्री जहाज में लाद कर रवाना करना) में अटका हुआ है।
वहीं यदि टेक्सटाइल उत्पादों की जल्द ही रवानगी नहीं हुई तो एक्सपोर्टरों का मोटी रकम का नुकसान होना तय है और साथ ही यह भी तय है कि जब तक लॉक डाउन नहीं खुलेगा और हालात पूरी तरह से सामान्य नहीं हो जाएंगे तब तक माल की विदेशों में रवानी यानि निर्यात मुश्किल है।
समुंदी मार्ग से निर्यात होता है टेक्सटाइल उत्पाद
पानीपत से दुनिया के अधिकतर देशों को टेक्सटाइल उत्पादों का निर्यात होता है, वहीं पानीपत में तैयार होने वाला टेक्सटाइल उत्पाद, बॉयरों (विदेशी इंपोटर) के एजेंटों की निगरानी में पैंकिंग कर कंटेनर में लदवाया जाता है और कंटेनर को ट्रक पर लाद कर गुजरात या फिर महाराष्ट्र के बंदरगाहों पर भिजवाया जाता है, यहां पर कागजी कार्यवाही के बाद टेक्सटाइल उत्पाद से लदे कंटेनर को विदेश में निर्यात करने के लिए समुंद्री जहाज पर लाद दिया जाता है, करीब एक से डेढ माह के सफर के बाद पानीपत से निर्यात किए गए टेक्सटाइल उत्पाद अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है। एक्सपोर्ट, बॉयर, ट्रांसपोर्टर की भाषा में इसे शिपमेंट कहते है।
सामान्य हालात में 50 कंटेनर माल हर रोज निर्यात होता था
पानीपत विश्व प्रसिद्ध टेक्सटाइल हब है और सामान्य हालात के दौर में पानीपत से प्रति दिन औसतन 50 कंटेनर माल प्रति दिन गोदी (बंदरगाहों) के लिए रवाना होता था। वहीं लॉक डाउन के चलते माल का आवागमन पूरी तरह से ठप है। पानीपत ट्रांसपोर्टर यूनियन के चेयरमैन चौ.धर्मवीर मलिक ने कहा कि कोरोना के प्रकोप के चलते लॉक डाउन में ट्रांसपोर्ट उद्योग 95 प्रतिशत तक ठप है। वहीं लॉक डाउन से पहले पानीपत के एक्सपोर्ट हाउसों से प्रति दिन औसतन 50 कंटेनर मॉल गुजरात व महाराष्ट्र के बंदरगाहों तक भिजवाया जाता था।
कंटेनरों में लदे माल के खराब होने की आशंका
कारपेट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के चेयरमैन चौ. जितेंद्र मलिक ने बताया कि विदेशी बॉयरों के साथ तय मापदंडों के अनुसार विदेश में निर्यात होने वाले माल की पैकिंग होती है, वहीं पैंकिंग से पहले माल का ट्रीमेंट किया जाता है ताकि माल जब विदेश में शोरूम में खोला जाए तो वह फ्रैश नजर आए। उन्होंने बताया कि माल यदि लंबे समय कंटेनर या फिर पेटियों में पैक रह जाए तो इसका दुष्प्रभाव माल की गुणवत्ता पर पडता है, जैसे भारत में अधिकतर दिन माल पैक रह जाए तो उसके अंदर सीलन की महक आने लगती है। वहीं जो करोडों खर्च करेगा वह माल की गुणवत्ता वाला ही लेगा, ऐसा भी अनेक बार हुआ है कि लंबे समय पैंकिंग में रहे माल को बॉयर वापस कर देते है और माल का आवागमन के खर्च समेत तामा लागत एक्सपोर्टर की जेब से निकलती है। इधर, एक्सपोर्टर अरूण मलिक, आदित्य गुप्ता, सुरेश मित्तल ने बताया कि पेकिंग में रखे माल की गुणवत्ता को लेकर वे बहुत ही चिंतित है।
हालात दिन प्रति दिन खराब होते जा रहे है
पानीपत एक्सपोर्टर एसोसिएशन के चेयरमैन ललित गोयल ने बताया कि कोरोना का प्रकोप व लॉक डाउन के कारण पानीपत टेक्सटाइल उद्योग का नुकसान लगातार बढता जा रहा है। वहीं हजारों करोड का माल शिपमेंट में अटका हुआ है। लॉक डाउन के कारण किसी एक्सपोर्टर के कागजात पूरे नहीं हुए तो किसी का कोरियर नहीं गया, अनेकों एक्सपोर्टरों का माल बंदरगाहों पर कागजातों की या फिर कागजाती कमियों के कारण फंसा हुआ है। उन्होंने चिंता जताई कि यदि माल की जल्द ही विदेशों में रवानगी शुरू नहीं हुई तो बहुत ही मोटी रकम का नुकसान हो सकता है।
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