पति-पत्नी दोनों दिव्यांग, फिर भी जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे खाना

भिवानी। आदमी जो आदमी के वक्त पे काम आएगा, रजो गम तब आदमी का कमतर होता जाएगा, तू भी किसी के पांव तले रख दे अपनी जमीं, फिर तू भी नजर में गैर के आसमां हो जाएगा। किसी शायर की ये पंक्तियां हालु बाजार निवासी सतबीर पर खरी उतर रही हैं, जो न केवल स्वयं आसानी से चल-फिर पाता है, बल्कि उनकी धर्मपत्नी लाजवंती तो 100 प्रतिशत दिव्यांग है। सतबीर रेडक्रॉस से खाना लेकर जरूरतमंदों को बांट रहे है, वहीं उनकी पत्नी इसमेें उनका पूरा सहयोग करती है। उनकी यह सोच सामान्यजन के लिए एक नजीर है। यह बिल्कुल सच है कि मदद करने के लिए केवल अपने पास धन का होना ही जरूरी नहीं होता ,बल्कि उसके लिए मन में सेवाभाव और जज्बा भी जरूरी है।
कोरोना महामारी के चलते लागू किए लॉक डाउन के दौरान करीब 55 वर्षीय सतबीर इसी सेवाभाव और जज्बे का एक प्रमाण है। सतबीर की पत्नी लाजवंती 100 प्रतिशत दिव्यांग हैं जो चलने-फिरने में लाचार है, वहीं सतबीर 70 प्रतिशत दिव्यांग है, जो आसानी से नहीं चल सकता है। लाजवंती को रेडक्रॉस के माध्यम से बैट्री वाली साईिकल मिली है, जो उनके पति का भी सहारा बनी है।
लॉकडाउन में कर रहे सेवा
सतबीर लॉक डाउन शुरु होने केसमय से ही जनसेवा में लगा है। वह रेडक्रॉस से न केवल अपने व पत्नी के लिए भोजन लेकर जाता है, बल्कि अपने-आसपास के उन लोगों के लिए भोजन लेकर जाता है, जो जरूरतमंद है। वह अपनी ट्राइसाइकिल को लेकर अपने आसपास क्षेत्र में चक्कर लगाते हैं और जरूरतमंदों को खाना बांटते है।
पत्नी का पूरा सहयोग
लाजवंती भी सोच भी उसके पति सतबीर जैसी है। लाजवंती ने बताया कि भले ही संकट का समय है, लेकिन यह भी जरूर कटेगा। भगवान सब की सुनता है और एक दिन भगवान जरूर सुनेगा। उन्होंने बताया कि वे तो शुरु दिन से भगवान से इस बीमारी को समाप्त होने की दुआ कर रही हैं। पति-पत्नी दोनों का मानना है कि हमें अपनी क्षमता के अनुरूप जरूर सेवा करनी चाहिए चाहे वह शारीरिक रूप से हो आर्थिक रूप से हो। इंसान की सोच का सही होनी जरूरी है। सभी मिलकर प्रयास करेंगेे तो ही परेशानी दूर होगी।
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