Uchana Vidhan Sabha: बीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवार के बीच होगी प्रतिष्ठा की लड़ाई, दुष्यंत चौटाला के चुनाव लड़ने पर होगी कड़ी टक्कर

Uchana Vidhan Sabha: बीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवार के बीच होगी प्रतिष्ठा की लड़ाई, दुष्यंत चौटाला के चुनाव लड़ने पर होगी कड़ी टक्कर
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हरियाणा विधानसभा चुनावों (Haryana Assembly Elections 2019) में उचाना विधानसभा सीट (Uchana Vidhan Sabha) पर हर बार वर्चस्व को लेकर लड़ाई हुई है। जींद जिला स्थित उचाना कलां विधानसभा सीट पर कभी बीरेंद्र सिंह तो कभी चौटाला परिवार का कब्जा रहा है। ओम प्रकाश चौटाला ने 2009 में बीरेंद्र सिंह (Birender Singh) को हराकर बादशाहत कायम की थी। इस बार दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) इस सीट से खड़े होकर वर्चस्व की लड़ाई लड़ते हुए नजर आ सकते हैं।

जींद जिले में बांगर की धरती से विख्यात उचाना कलां विधानसभा 1977 में अस्तित्व में आने के बाद से सुर्खियों में रही है। प्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान उचाना हलके पर सबकी नजर रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण यहां से बीते कुछ चुनाव से बीरेंद्र सिंह एवं चौटाला परिवार के बीच चुनाव होना। यहां पर मुख्य रूप से मुकाबला हर बार बीरेंद्र सिंह और दूसरी पार्टियों के उम्मीदवार का रहा है। चाहे वह कांग्रेस हो या इंडियन नेशनल लोकदल।

उचाना विधानसभा की राजनीति पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के ईद गिर्द घूमती रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में जिले में कमल खिलाने का श्रेय बीरेंद्र सिंह को जाता है। 1985 को छोड़कर आठ विस चुनाव बीरेंद्र सिंह ने और एक चुनाव उनकी पत्नी प्रेमलता ने लड़ा है। बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस और भाजपा में रहते हुए साबित किया है कि उनका खुद का वोट बैंक यहां पर है। जब वो कांग्रेस में थे तो यहां से कांग्रेस के विधायक बने। इसके बाद जब तिवारी कांग्रेस में गए तो पूरे प्रदेश में गिनती के विधायक तिवारी कांग्रेस के आए थे उनमें से बीरेंद्र सिंह एक थे। वहीं भाजपा की बात करें तो पहली बार 2014 में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला को हराकर कमल खिलाया। जिले की पांच सीटों में से सिर्फ उचाना कलां को ही भाजपा जीत सकी थी। इसके अलावा लोस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी एवं बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह ने जीत हासिल की थी।

ओमप्रकाश चौटाला को दी थी कड़ी टक्कर

वर्ष 2009 में बीरेंद्र सिंह का मुकाबला इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला से हुआ था। जिसमें ओमप्रकाश चौटाला ने कड़े मुकाबले में बीरेंद्र सिंह को 621 मतों से हराया था। इसके अलावा रोचक बात यह भी है उचाना विधानसभा में सबसे कम वोटों से हारने का रिकार्ड भी बीरेंद्र सिंह के नाम। वर्ष 2014 विस चुनाव हुए उस समय सिर्फ एक ही जिले में भाजपा को सीट मिली वो उचाना हलके की थी।

सरकार में हुआ खूब विकास





विकास के मामले में पिछड़े हलके में भाजपा के शासनकाल में विकास खूब हुआ है। विधायक प्रेमलता ने यहां पर विकास कार्यों में रुचि लेते हुए तहसील को उपमंडल का दर्जा दिलाने का काम किया। अस्पताल की नई बिल्डिंग, केंद्रीय विद्यालय बुडायन, अलेवा में बस स्टैंड, सीएचसी, अलेवा को तहसील, बड़ौदा में रेलवे हॉल्ट, कई गांवों में बिजली, जल घर, अनेकों गांव में सिरसा ब्रांच नहर से जल घरों में सीधा पानी, गांव को गांव से जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण, नई विस्तार मंडी का निर्माण सहित ऐसे अनेकों काम हुए है। विधायक प्रेमलता ने कहा कि हलके की जनता को बुनियादी सुविधाओं तथा उनकी समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर निपटा रही हूं। उनका फोक्स रोजगार की तरफ है। जिससे स्थानीय युवकों को रोजगार मिल सके। वे जनता के बीच रहकर उनके सुख दुख के भागीदार बनते हैं। उनका प्रमुख उद्देश्य उचाना का विकास है और उसके लिए वे हरसंभव प्रयास कर रही हैं।

दुष्यंत चौटाला के खड़े होने पर कड़ा मुकाबला

उचाना विधानसभा भाजपा आसानी से जीत जाएगी। अगर दुष्यंत चौटाला को जेजेपी अपना विस चुनाव में उम्मीदवार बनाती है तो यहां पर कड़ा मुकाबला हो सकता है। कांग्रेस का यहां पर किसी तरह का वजूद नजर नहीं आ रहा है। बीते विस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को महज दो हजार से कम मत मिले थे। लोकसभा चुनाव में इनेलो को यहां पर पांच हजार से कम मत मिले थे। ऐसे में इनेलो भी आपसी फूट के चलते यहां पर कमजोर हो गई है। यहां पर दुष्यंत चौटाला के उम्मीदवार बनने के बाद ही जेजेपी, भाजपा का मुकाबला होगा।

ये बने हैं अभी तक विधायक

1977

बीरेंद्र सिंह

कांग्रेस

1982

बीरेंद्र सिंह

कांग्रेस

1985

सूबे सिंह पूनिया

कांग्रेस

1987

देशराज

नेशनल लोकदल

1991

बीरेंद्र सिंह

कांग्रेस

1996

बीरेंद्र सिंह

तिवारी कांग्रेस

2000

भाग सिंह

इनेलो

2005

बीरेंद्र सिंह

कांग्रेस

2009

ओमप्रकाश चौटाला

इनेलो

2014

प्रेमलता सिंह

भाजपा

बीरेंद्र सिंह पांच बार बने विधायक






1977 में उचाना हलका बनने के बाद यहां से सबसे पहले विधायक बीरेंद्र सिंह बने थे। 1977 में जब पूरे प्रदेश में कांग्रेस की पांच सीट आई थी तो बीरेंद्र सिंह ने यहां से जीत कर अपने आप को साबित करने का काम किया था। इस जीत ने बीरेंद्र सिंह की पहचान को कांग्रेस हाईकमान में बढ़ाने का काम किया था। यहां पर एक उप चुनाव सहित 10 विस चुनाव हो चुके हैं। सबसे अधिक बार बीरेंद्र सिंह यहां से पांच बार विधायक बने है। बीरेंद्र सिंह को छोड़ कर कोई भी दूसरी बार विधायक नहीं बन पाया है। सबसे अधिक सात बार विस चुनाव भी बीरेंद्र सिंह ने हलके से लड़े हैं।

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