Haryana Assembly Election: भाजपा तोड़ सकती है 1987 का रिकार्ड, ये बन रहे हैं समीकरण

Haryana Assembly Election: भाजपा तोड़ सकती है 1987 का रिकार्ड, ये बन रहे हैं समीकरण
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हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा 1987 का रिकार्ड तोड़ सकती है। उस वक्त चौधरी देवीलाल ने गठबंधन के साथ 78 सीटें जीती थीं।

हरियाणा विधानसभा चुनावों में 75 पार सीटें जीतने के नारे के साथ रण में भाजपा अपनी परीक्षा दे चुकी है। भाजपा 1987 में चौधरी देवीलाल के मोर्च का रिकॉर्ड तोडना चाहती है। 1987 में चौधरी देवीलाल ने कांग्रेस से लडने के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाया था। इस मोर्चे ने 78 सीटें जीती जबकि इसमें शामिल भाजपा को 16 सीटों पर जीत मिली। ऐसे में यदि भाजपा 75 पार के नारे में कामयाब होकर 1987 के रिकार्ड को तोड़ देती है तो ये अपने आप में इतिहास होगा।

दूसरी तरफ भाजपा के पक्ष में इसको लेकर कई समीकरण हैं। 2019 में मतदान प्रतिशत 68.47 फीसदी रहा है। जबकि 1987 में इसके आसपास ही 71 फीसदी मतदान हुआ था। इसके अलावा कांग्रेस, इनेलो, बसपा, जेजेपी सब अकेले ही मैदान में हैं। इनेलो सबसे खराब दौर में गुजर रही है। ऐसे में भाजपा के पक्ष में सभी समीकरण बन रहे हैं।

1967 में मतदाताओं का मिजाज

1967: पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा में पहले आम चुनाव 1967 में हुए तो लोगों में अलग हरियाणा बनने की खुशी थी। लोगों ने बंफर वोटिंग की और मतदान का प्रतिशत 72.65 प्रतिशत हुआ। पहले से ही बनी कांग्रेस के मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा ने दूसरी बार शपथ ली। कांग्रेस ने 81 में से से 48 सीटें जीती थी लेकिन दलबदल ने हरियाणा की राजनीति को बदनाम कर दिया और मुख्यमंत्री भी बदले गए। हरियाणा की राजनीति में आयाराम गयाराम का कलंकित दौर उसी समय आया था। इसे देखते हुए एक तरह से लोगों का मन ही राजनीति से खट्टा हो गया। नवंबर 1967 में राष्ट्रपति शासन ही लगाना पडा।

जब लोगों ने नहीं दिखाई रूचि

1968 में आयाराम गयाराम के दौर से दुखी हरियाणा में 1968 में चुनाव हुए तो लोगों ने मतदान करने में ही रुचि नहीं दिखाई और मुश्किल से 57.26 प्रतिशत मतदान का आंकडा पहुंचा। कांग्रेस ने 81 में से 48 सीटें जीती। कांग्रेस ने चौंकाते हुए बिल्कुल ही नए चेहरे चौधरी बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि उन्होंने थोडे ही समय में जनता के दिल में जगह बनाते हुए बिजली, सिंचाई और आधारभूत ढांचे को मजबूत करते विकास पुरुष की छवि हासिल कर ली।

बंसीलाल को सत्ता सौंपने को बढ़ा प्रतिशत

1972 में जनता चौधरी बंसीलाल के कामों से खुश थी। दोबारा उन्हें सत्ता में देखना चाहती थी इसलिए 1972 के चुनाव में 70.46 प्रतिशत लोगों ने अपने मत का प्रयोग करते हुए दोबारा से सत्ता चौधरी बंसीलाल को सौंप दी। कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीती थी।

आपातकाल का कांग्रेस पर गुस्सा

1975 में आपातकाल का दमनचक्र चला। जिसके कारण 1977 में जनता कांग्रेस के प्रति गुस्से में थी। हरियाणा में भी ये गुस्सा साफ झलक रहा था। आपातकाल के खलनायकों में चौधरी बंसीलाल का भी नाम लिया जा रहा था। चुनाव में चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी ने 75 सीटें जीती थी और चौधरी देवीलाल। मतदान 64.46 प्रतिशत रहा। इसके बाद हरियाणा की राजनीति फिर दलबदल के खेल से गुजरी और 1979 में भजनलाल चौधरी देवीलाल से कुर्सी हथियाने में सफल रहे। चौधरी बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह उनके मंत्रीमंडल में मुख्य संसदीय सचिव बने थे।

दलबदल से दुखी थे लोग

1982 में दलबदल से दुखी थी, कोई एक मन को जच नहीं रहा था। मतदान प्रतिशत रहा 69.87 प्रतिशत। खंडित जनादेश मिला। कांग्रेस 36, देवीलाल की लोकदल 31, भाजपा 6 और जनता पार्टी को एक सीट मिली। जोड जुगाड से सत्ता चौधरी भजनलाल हथियाने में सफल रहे। सर्वाधिक 16 निर्दलीय चुनाव जीते थे तब। तब चौधरी देवीलाल सरकार बनाना चाहते थे लेकिन राज्यपाल तपासे ने चौधरी भजनलाल की सरकार बनवा दी। ये प्रकरण भी हरियाणा की राजनीति में चटखारे लेकर सुनाया जाता है। 1986 में भजनलाल की जगह मुख्यमंत्री बन चुके थे बंसीलाल।

देवीलाल की लहर में 78 सीटें

1987 में चौधरी देवीलाल की लहर फिर से चली। उनकी पार्टी लोकदल ने भाजपा, सीपीआई और सीपीआईएम के साथ मिलकर चुनाव लडा और इस मोर्चे ने 78 सीटें जीती। मतदान रहा था 71. 24 प्रतिशत। लोकदल की इसमें साठ और भाजपा की 16 सीटें थी। सीपीआई और सीपीआईएम ने भी प्रदेश में खाता खोलकर एक एक सीटें जीती थी। 1987 के दौर को हरियाणा में दोहराने के लिए 2019 में भाजपा ने 2019 में 75 पार सीटें ले जाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि इसके बाद चौधरी देवीलाल उप प्रधानमंत्री भी बने और हरियाणा की राजनीति ने एक के बाद एक कई मुख्यमंत्री देखे।

देवीलाल सरकार से मोह हो गया भंग

1991 में 65.86 प्रतिशत मतदान रहा। चौधरी देवीलाल से लोगों को मोहभंग हो चुका था। कांग्रेस ने 51 सीटें जीती, देवीलाल की समाजवादी जनता पार्टी 16 पर अटक गई और बंसीलाल की हविपा 12 पर। चौधरी भजनलाल फिर से मुख्यमंत्री बने और पांच साल हरियाणा में राज किया।

ओमप्रकाश चौटाला का दबदबा

1996 में चौधरी बंसीलाल की शराबबंदी का नारा चल चुका था। खास महिला मतदाता सरकार को बदलकर चौधरी बंसीलाल को सत्ता में देखना चाहती थी। चुनाव में मतदान रहा 70.54 प्रतिशत। भाजपा के साथ गठबंधन कर हविपा ने चुनाव लडा। हविपा को 31 और भाजपा को 11 सीट मिली। कांग्रेस 9 पर तो ओमप्रकाश चौटाला की समता पार्टी के 24 विधायक बने। 1999 में चौधरी बंसीलाल की सरकार भाजपा के समर्थन लेने के बाद गिर गई। हविपा के टूटे हुए विधायकों को साथ जोडकर 24 जुलाई 1999 को मुख्यमंत्री बने ओमप्रकाश चौटाला।

इनेलो को मिला जब पूर्ण बहुमत

2000 में चुनाव में मतदान प्रतिशत रहा 69.01 प्रतिशत। ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलाे को 47 सीटें मिली और गठबंधन सहयोगी भाजपा को 6 सीटें मिली। कांग्रेस के 21 और हविवा के केवल दो विधायक बने थे। ओमप्रकाश चौटाला ने पांच साल तक शासन किया। 2004 में हविपा ने अपना विलय कांग्रेस में कर दिया था।

कांग्रेस सरकार पर किया भरोसा

2005 के चुनाव आते आते ओमप्रकाश चौटाला की सरकार से लोगों का मोहभंग हो चुका था इसलिए नई सरकार के लिए 71.96 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। कांग्रेस को 67 सीटें मिली, इनेलो 9 पर अटक गई तो भाजपा को भी दो ही सीटें मिली। 10 निर्दलीय जीते। चौधरी भजनलाल को झटका देते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।

कांग्रेस लौटी लेकिन बहुमत से दूर

2009 में फिर से चुनाव हुए। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के प्रति गुस्सा तो था लेकिन मजबूत विपक्ष का अभाव था। मतदान प्रतिशत रहा 72.29 प्रतिशत। कांग्रेस को 40 सीटें मिली लेकिन बहुमत के जादुई आंकडे से दूर थी। अकेले लडी भाजपा को केवल दो सीटें मिली थी। भजनलाल की हजकां को 6 सीटें मिली थी। इनमें से पांच विधायकों को तोडकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार बनाने में सफल रहे। 2014 आते आते ये विधायक अयोग्य घोषित हो गए लेकिन तक सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी थी।

भाजपा को सौंपी सत्ता की चाबी

2014 में हरियाणा की राजनीति में जनता बदलाव चाहती थी। पहली बार प्रदेश में भाजपा को सत्ता की चाबी सौंपते हुए 76.20 प्रतिशत मतदान किया। भाजपा को 47 पूर्ण बहुमत और कांग्रेस को केवल 15 व इनेलो को 20 सीटें मिली। मनोहर लाल के रूप में हरियाणा को चौथा लाल मुख्यमंत्री भी मिला

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