हरियाणा : हर चुनाव में बदली प्रदेश की सियासत, जो कभी रहा हीरो वो अगले ही चुनाव में हो गया जीरो

हरियाणा और महाराष्ट्र में शनिवार को विधानसभा चुनाव (Assembly Election) तारीखों का ऐलान हो गया। शनिवार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुनील अरोड़ा (Sunil Arora) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की। 27 सितंबर से शुरू होने वाली चुनावी प्रक्रिया 24 तारीख की मतगणना के साथ खत्म होगी। इसबार हरियाणा में सियासी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है।
साल 2000 से हरियाणा से लेकर अबतक प्रदेश की सत्ता कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल व भाजपा के पास रही है। लेकिन इस बार मुकाबला एकदम बदल गया है। सियासी मैदान में भारतीय जनता पार्टी इस समय सबसे आगे नजर आ रही है। प्रदेश में विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। अंतिम समय पर खेमें को एकजुट करने की कोशिश की गई है पर वह कितना कामयाब हो पाएगे यह चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।
कभी प्रदेश में एक बड़ी पार्टी के रुप में अपनी पहचान स्थापित करने वाली इनेलो आज परिवारिक अन्तर्कलह से जूझ रही है। एकता का मिसाल कायम करने वाला चौटाला परिवार दो पार्टियों में बंट गया। खाप पंचायतों ने एक करने की तमाम कोशिश की पर कामयाबी हाथ न लगी और जननायक जनता दल के नेता दुष्यंत चौटाला ने प्रदेश के सात विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी भी घोषित कर दिए।
भारतीय जनता पार्टी का हरियाणा में पुराना इतिहास बेहद खराब रहा है। सन 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 6 सीटें आई, इसके बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी केवल 2 विधायकों तक ही सीमित रह गई। साल 2009 में भी प्रदर्शन में किसी तरह का कोई सुधार नहीं हुआ और पार्टी 4 सीटों पर सिमट गई। इस दौरान इनेलो और कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में रही।
साल 2014 में प्रदेश की सियासत पूरी तरह से बदल गई, इसके पीछे मोदी लहर का भी खासा योगदान रहा। भाजपा ने न सिर्फ पहली बार दहाई का आंकड़ा पार किया बल्कि बहुमत के लिए जरूरी सीटें भी जीतकर प्रदेश की सियासत में अपने नाम की एक कील ठोक दी। 2014 में पार्टी के हिस्से 47 सीटे आई और मनोहर लाल खट्टर प्रदेश में भाजपा की तरफ से पहले मुख्यमंत्री बने।
पिछले 4 विधानसभा चुनाव के मत प्रतिशत को देखे तो सबसे ज्यादा इजाफा भाजपा के मत प्रतिशत में हुआ है। सन 2000 में पार्टी के खाते में महज 8.94 प्रतिशत वोट पड़े, 2005 में 10.36 फीसदी और 2009 में महज 9.04 फीसदी वोट ही पार्टी के खाते में दर्ज किए गए। लेकिन 2014 के विधानसभा में प्रदेश की हवा बदली और पार्टी के खाते में सर्वाधिक 33.20 फीसदी वोट मिले।
साल 2000 में कांग्रेस के खाते में 31.22 फीसदी वोट मिले, ये आंकड़ा अगले दो चुनाव में भी शानदार रहा और क्रमशः 42.46 व 35.08 प्रतिशत मत मिले पर 2014 के चुनाव में पार्टी का वोट बैंक बिखर गया और 20.58 फीसदी वोट ही मिल सका। तीसरी पार्टी के रुप में स्थापित इनेलो का वोटबैंक पिछले चार विधानसभा चुनाव में स्थिर रहा है।
2000 में जब पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई तो उन्हें 29.61 फीसदी वोट मिले, अगले ही चुनाव में पार्टी अर्श से फर्श पर आ गई और महज 9 सीट ही जीत पाई पर वोट बैंक में विशेष गिरावट नहीं दर्ज की गई उस साल भी पार्टी ने 26.77 फीसदी वोट हासिल कर लिया। 2009 में पार्टी ने सीट में तो इजाफा करते हुए 31 जीत लिए पर वोट प्रतिशत 25.79 रह गया। 2014 में पार्टी के खाते में 24.11 फीसदी वोट मिले।
इस बार चुनाव पूरी तरह से बदला बदला नजर आ रहा है। भाजपा प्रदेश में अबकी बार पचहत्तर पार के नारे के साथ चुनाव लड़ रही है। वहीं इनेलो और जजपा आपसी संतुलन ही बनाने में लगे हैं। कांग्रेस अन्तर्कलह से खुद को निकालने की बात कह रही है। वहीं बाकी छोटी पार्टियां बसपा, आप सहयोगी दल खोज रहे हैं। फिलहाल ऊंट किस करवट बैठेगा ये चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।
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