हरियाणा चुनाव : गठबंधन हमेशा बना मायावती के गले की फांस, इसलिए इसबार नहीं किसी का साथ

हरियाणा चुनाव : गठबंधन हमेशा बना मायावती के गले की फांस, इसलिए इसबार नहीं किसी का साथ
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हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections) की घोषणा कभी भी हो सकती है। कई पर्टियों के साथ गठबंधन कर चुकी बसपा (BSP) ने इस बार अकेले ही चुनाव लड़ने (Contest Elections Alone) का फैंसला किया है। बसपा का गठबंधन पहले कभी लंबे समय तक किसी पार्टी के साथ टिक नहीं पाया।

हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election) में ज्यादा से ज्यादा सीटें सुनिश्चित करने के लिए सभी दल रणनीति तैयार कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां सीट जीतने वाले उम्मीदवारों की परख करने में लगी हुई हैं। सभी भाजपा (BJP) के खाते से सीटों को कम करने की कोशिश में सही गठबंधन (Alliance) के साथी की खोज कर रहे हैं। लेकिन ऐसे में हरियाणा विधानसभा चुनाव के इतिहास में एक से ज्यादा सीट नहीं जीत पाने वाली बसपा (BSP) ने किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया है। 2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव बसपा अकेले के दम पर ही लड़ने जा रही है।

1996 छोड़कर हर एक चुनाव में एक सीट जीती बसपा

वर्ष 1991 में हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections) में पहली बार बसपा (BSP) ने प्रवेश किया था। 1991 से लेकर 2014 विधानसभा चुनाव तक 1996 के अलावा हर एक चुनाव में मायावती की पार्टी बसपा एक सीट जीतती आई है। मायावती का प्रदेश में एक अच्छा वोट बैंक है लेकिन वो भी उन्हें चुनाव में सीटें नहीं जिता पाता। हरियाणा प्रदेश में बसपा का करीब 19 प्रतिशत वोटबैंक है। लेकिन उसके बाद भी 2014 विधानसभा चुनाव में बसपा 4.4 प्रतिशत मत हासिल करने में कामयाब हुई थी।

2019 विधानसभा चुनाव में बसपा की निगाहें आरक्षित श्रेणी की 17 सीटों पर रहेंगी। लेकिन विधानसभा की सभी 90 सीटों पर बाकी दलों के उम्मीदवारों की हार जीत में बसपा की बड़ी भूमिका रहेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि बसपा विधानसभा की सारी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है। भले ही बसपा अपने वोट बैंक की बदौलत चुनाव में सीटें न जीत पाती हो लेकिन बसपा अपने वोटबैंक की वजह से बाकी दलों के उम्मीदवारों का वोट प्रतिशत गिरा सकती है।

टिक नहीं पाया किसी दल के साथ गठबंधन

बसपा ने पहले भी कई पार्टियों के साथ गठबंधन किए हैं। लेकिन किसी अन्य पार्टी के साथ हाथी की बन नहीं पाई। वर्ष 1998 में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया था जो कि बाद में टूट गया। कुलदीप बिश्नोई की अध्यक्षता वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ भी 2009 में गठबंधन किया लेकिन अधिक समय तक नहीं चल पाया।

2018 में बसपा ने एक बार फिर पुरानी साथी रह चुकी इनेलो के साथ गठबंधन किया, जो कि पहले के तरफ ही विफल रहा। फरवरी 2019 में चार महीने के लिेए बसपा का गठबंधन राजकुमार सैनी की लोकतांत्रित सुरक्षा पार्टी के साथ हुआ था। विगत अगस्त में जजपा के साथ किया हुआ गठबंधन पूरे महीने भी नहीं चल पाया।

देखना ये होगा कि इस चुनाव में बसपा अपने दम पर कितनी सीटें जीत पाने में सक्षम होती है। और अगर सीटें जीत भी जाती है तो कितने विधायक विधाऩसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व करते रहेंगे। 2014 विधानसभा चुनाव में बसपा के एकलौते विधायक टेकचंद शर्मा ने भी भाजपा का दामन थाम लिया था, जिस वजह से पार्टी को उन्हें निष्कासित करना पड़ा था।

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