चौधरी बीरेंद्र सिंह: हरियाणा राजनीति के वो ट्रेजडी किंग जिनके निडर होने के कारण उन्हें बब्बर शेर कहा जाता है

हरियाणा के भाजपा नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह एक प्रमुख जाट नेता हैं जो 2014 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। इससे पहले वह कांग्रेस में थे और मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान कैबिनेट मंत्री बनने के करीब थे। लेकिन अंतिम समय में यूपीए-2 कैबिनेट में उन्हें शामिल नहीं किया गया। तभी से राजनीतिक गलियारों में उन्हें ट्रेजेडी किंग के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्हें लंबे समय तक मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्रिमंडल से वंचित रखा गया था।
हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में 2014 में केंद्रीय ग्रामीण विकास, पंचायती राज, स्वच्छता और पेयजल मंत्री के रूप में शामिल किया। चौधरी बीरेंद्र सिंह ने 5 जुलाई, 2016 को कैबिनेट फेरबदल में इस्पात मंत्री के रूप में पदभार संभाला। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीरेंद्र सिंह ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा ने इनके बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया।
शुरुआती जीवन
बीरेंद्र सिंह का जन्म 25 मार्च 1946 को हरियाणा के जींद जिले के डुमरखान कला गांव में हुआ था। विभाजन से पहले उनके पिता नेकी राम अविभाजित पंजाब के एक बड़े नेता थे और इनके दादा छोटू राम हरियाणा के प्रसिद्ध किसान नेता थे।
बीरेंद्र सिंह ने रोहतक के सरकारी स्कूल से स्नातक किया और चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की। उनकी खेलों में शुरू से ही दिलचस्पी थी। बीरेंद्र सिंह 1964 से 1967 तक क्रिकेट कप्तान रहे और 1969 से 1970 तक पंजाब विश्वविद्यालय के लिए भी खेले।
वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ वह एक शिक्षाविद् रहे हैं। उन्होंने हरियाणा में तकनीकि के साथ-साथ उच्च शिक्षा के शिक्षण संस्थान खुलवानें में कड़ी मेहनत की। वह हरियाणा के बांगर एजुकेशन ट्रस्ट के संस्थापक रहे हैं। 1974 से 1977 तक वह हरियाणा हरिजन सेवक संघ के सदस्य थे।
राजनैतिक सफर
वीरेंद्र सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में की, उन्हें एक सच्चे और निडर राजनेता के रूप में जाना जाता है इसलिए कुछ लोग उन्हें 'बब्बर शेर' भी कहते हैं। अपने आदर्शों में उन्होंने हमेशा समावेशी राजनीति, लोगों की भागीदारी, ईमानदारी और सुशासन को शामिल किया है। उनकी वाकपटुता, जमीनी स्तर पर लोगों से संपर्क और जनता की समस्याओं को सुनने की कला की हमेशा तारीफ की जाती है।
बीरेंद्र सिंह ने पहली बार 1972 चुनाव में अपनी जगह , जिसके बाद वे उचाना ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने। वह 1972 से 1977 तक उस पद पर बने रहे। वह हमेशा जनता के बीच लोकप्रिय रहे हैं और जमीनी स्तर पर उनके लगातार संपर्क के कारण वह पांच बार उचाना विधानसभा सीट जीतने में सफल रहे हैं। उनका विधायक के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1977 से 1982 तक था। अपने पांच कार्यकालों के दौरान वह तीन बार हरियाणा के कैबिनेट मंत्री बनें।
उन्होंने सरकारी आश्वासन समिति और प्राक्कलन समिति सहित कई समितियों का नेतृत्व किया। 1984 में उन्हें एक सांसद के रूप में चुना गया और उन्होंने 1989 में कार्यकाल पूरा किया। इस कार्यकाल के दौरान वह कई समितियों के सदस्य भी बने, जिनमें एस्टिमेट्स, रक्षा मंत्रालय की सलाहकार समिति और ऊर्जा मंत्रालय की सलाहकार समिति शामिल हैं।
आखिरी वक्त में मंत्रिमंडल में नहीं शामिल किया गया
बीरेंद्र सिंह का स्पष्ट वक्ता होना आगे चलकर पार्टी के कई लोगों के लिए मुसीबत बन गया। इनके और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच सत्ता के टकराव से कांग्रेस के भीतर समस्याएं पैदा होने लगीं।। चूंकि हरियाणा में कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बीच मतभेद सार्वजनिक होने लगा, इसलिए कांग्रेस ने उन्हें वर्ष 2010 में राज्यसभा भेज दिया। वह पूर्ववर्ती यूपीए -2 सरकार में मंत्री बनने के लिए तैयार थे। लेकिन आखिरी वक्त में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।
कांग्रेस में रहते बीरेंद्र सिंह की हरियाणा का सीएम व केंद्रीय मंत्री बनने की हसरत पूरी नहीं हो सकी। बीरेंद्र सिंह वैसे तो रिश्ते में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के भाई हैं। लेकिन दोनों में छत्तीस का राजनीतिक आंकड़ा रहा है। हुड्डा विरोध के चलते ही उन्होंने 2014 में भाजपा का दामन थामा।
बीरेंद्र सिंह तत्कालीन यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री बनते-बनते रह गए थे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने शपथ लेने के लिए न्योता तक दे दिया था। लेकिन अंतिम समय में उनका पत्ता कट गया और चंडीगढ़ से सांसद पवन बंसल रेल मंत्री बन गए थे। बीरेंद्र सिंह आज तक इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जिम्मेदार ठहराते हैं।
कांग्रेस ने उन्हें कार्यकारिणी समिति में शामिल करके और उन्हें स्थायी सदस्य बनाकर पद से हटाने की कोशिश की। यह वही समय था जब हरियाणा में भाजपा एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में उतरने लगी थी। वीरेंद्र सिंह ने इस अवसर का लाभ उठाया और भाजपा में शामिल हो गए। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा के जीतने के बाद उन्हें नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में कैबिनेट में पेश किए जाने के माध्यम से पुरस्कृत किया गया था।
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