आस्ट्रेलिया में सगनदीप ने मदद कर जीता हिंदुस्तानियों का दिल

आस्ट्रेलिया में सगनदीप ने मदद कर जीता हिंदुस्तानियों का दिल
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ऑस्ट्रेलिया में फंसे भारतीय छात्रों की तारणहार बनीं करनाल की बेटी सगनदीप कौर ने बताया कि कोरोना का संकट इतना बडा है कि यहां के प्रधानमंत्री ने भी विदेशी छात्रों की मदद करने में हाथ खडे कर दिए थे तब उसे आगे आना पडा।

धर्मेंद्र खुराना। करनाल

सत श्री अकाल मेरे हरियाणा के निवासियों। मेरा नाम सगनदीप कौर है और मैं करनाल के निसिंग की रहने वाली हूं। आप सबको पता है कि पूरी दुनिया इस समय कोरोना महामारी की चपेट में है। इस महामारी के कारण जहां पूरे विश्व में लाखों लोगों की जान जा चुकी है वहीं कई लाख लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। अलग अलग देशों की सरकारें इस बीमारी से जूझने का प्रयास कर रही हैं। इस बीच कई समाजसेवी संस्थाएँ व सेवाभावी लोग भी मदद के हाथ आगे बढ़ा रहे हैं। इन सब के बीच एक बेटी कोशिश मेरी भी है जो ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों की मदद कर पा रही हूं।

दरअसल मैं ताे यहां पढाई के लिए आई थी लेकिन आस्ट्रेलिया की सरकार ने बीमारी के बीच फंसे विदेशियों की मदद करने से हाथ खड़े कर दिये थे। जब मुझे इसकी जानकारी मिली और आसपास भारतीयों के निराश चेहरे देखे तो वाहे गुरु का ध्यान कर मदद करने निकल पडी। सबसे पहले तो एक व्हाट्सअप ग्रुप बनाया और उसमें लोग जुडते चले गए। व्हाट्स एप ग्रुप हेल्पिंग एट रिस्क स्टूडेंट्स से हमें जरूरतमंद की जानकारी तत्काल मिलने लगी। इसके माध्यम से परिचितों और अन्य लोगों से मदद की जाने लगी वहीं मदद करने वाले लोग भी मिलते चले गए।



ऑस्ट्रेलिया में कोरोना संकट के चलते ऐसे हजारों विदेशी विद्यार्थी बेरोजगार हैं, जो हाउस कीपिंग या होटल आदि में काम करके रोजी-रोटी से लेकर फीस तक का इंतजाम करते थे। इनमें छात्राओं की भी अच्छी-खासी संख्या है। उसकी इस मुहिम से अब वहां फंसे लोगों युवाओं तक पैसा खाना और जरूरत की चीजें मुहैया हो रही है। मालिक का शुक्र है कि अब तक जितने भी भाई-बहनों ने मदद मांगी है सब तक हम पहुंचे हैं। मैं करनाल के कस्बे निसिंग की रहने वाली हूं। 17 महीने पहले ही ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में पढ़ने के लिए गई थी। मेरा पूरा परिवार नानकसर सिंघड़ा गुरुद्वारे में सेवा का काम करता है। आ

स्ट्रेलिया में जो कुछ कर पा रही हूं उसकी शिक्षा परिवार के सेवा भाव से ही मिली है। सिख धर्म में लंगर और मिल बांटकर खाने की शिक्षा के कारण ही आस्ट्रेलिया में ये काम हो पाया है। मैंने केंद्रीय विद्यालय करनाल से बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई की और बस्ताडा के एक कॉलेज मे नसिंर्ग का कोर्स किया था लेकिन हरियाणा सरकार ने नसिंर्ग की परीक्षाएं कैंसल कर दी थी। उसके बाद मैं वीजा लेकर सिडनी चली गई। अब मैं सिडनी के आस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोरमेशन टेक्नॉलोजी में अध्ययनत हूं।

मेरे पिता त्रिलोक सिंह चीमा नानकसर सिंघड़ा गुरूद्वारे में सेवा करते है। वह खुद गाड़ी चलाकर संगत को लंगर व जरूरी सामान पहुंचाते है। उन्हें ज्यादा फोन चलाना भी नहीं आता बस मेरा फोन सुनने के लिए ही उन्होंने फोन रखा हुआ है। मेरी माता जिंदर कौर गृहणी है वह भी सेवाभवी है और गुरुद्वारे में सेवा करती है। मेरी दो छोटी बहनें और एक भाई है। मुझे सबसे अच्छा तब लगा जब मेरे काम के बारे में मेरे पिता को पता चला और उन्होंने कहा कि मुझ पर उन्हें गर्व है। मेरी मां जिंदर कौर तो हमेशा ही कहती हैं कि हे रब्ब, एक बेटी तो तूं सबको ही बख्शना। बेटी के बिना कैसा घर।


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