संदीप पूनिया : कुश्ती में बनाना चाहते थे कैरियर, अचानक आए परिवर्तन से बन गए पैदाल चाल के स्टार

देश दुनिया में तमाम ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जो बनना कुछ और चाहते थे पर एकबारगी ऐसा परिवर्तन आया कि वह कुछ और बन गए। बाद में जो बने उसमें इतना सफल हुए दुनिया ने सलामी ठोकी। कुछ ऐसी ही कहानी पैदल चाल में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाले संदीप पूनिया (Sandeep Poonia) का है।
महेंद्रगढ़ (Mahendragarh) के सुरहेती गांव के संदीप पुनिया को बचपन में कुश्ती (Wrestling) में अपना कैरियर बनाना चाहते थे। इसके लिए वह अभ्यास भी करने लगे थे पर साल 2008 उनके जीवन में परिवर्तन लेकर आया और उन्होंने पैदल चाल के कैरियर बनाने की ठानी।
पैदल चाल की जोरदार प्रैक्टिस शुरू की। शुरूआत में परेशानियां आई पर उन्होंने पीछे मुड़कर लौटना पसंद नहीं किया। 2014 में एशियाय खेलों में वह न सिर्फ सलेक्ट हुए बल्कि भारत के लिए कांस्य पदक भी जीता। उन्होंने 50 किलोमीटर की दूरी को 3 घंटे 50 सेकण्ड में पूरा किया था।
संदीप पुनिया ने बताया कि जब 2006 में जाट रेजिमेंट (Jat Regiment) में भर्ती हुआ था तो मुझे पैदल चाल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी इसके बारे में कैप्टन सीताराम ने सबकुछ बताया और वहीं गुरू बन गए। वह अपनी सफलता के पीछे सीताराम के योगदानों को प्रमुख मानते हैं।
एशियाड में पदक जीतने के बाद उन्होंने रियो ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। पर यहां वह पदक जीतने में कामयाब नहीं हो पाए। पिछले साल एशियन खेलों में भी संदीप मेडल से चूक गए थे। हरियाणा सरकार ने 2017 में संदीप को भीम अवॉर्ड (Bheem award) प्रदान किया था।
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