कोरोना काल में बेरोजगार अगर पौधारोपण का करें कारोबार तो भविष्य में हरियाली होगी सदाबहार: पीपल बाबा

हमारा देश कृषि प्रधान देश हैं। आजादी के समय हमारे देश की अर्थव्यवस्था 87% से ज्यादा कृषि पर आधारित थी। साल 1991 में लाये गए एल पी जी (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण ) की नीतियों की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान कम होता गया था। हमारी जो चीजें (लघु व कुटीर उधोग-जो कृषि से जुड़े हुए थे) अपनी मानी जाती थीं उसे हमने दरकिनार कर दिया। अनेक बदलाव हुए लेकिन जिस देश की आत्मा हरियाली थी, वो भी कहीं पीछे छूट गई। बड़े पैमाने पर गावों से लोग शहर में कारोबार करने गए। मध्यम और निम्नवर्गीय लोग मध्य एशिया के देशों में भी नौकरी करने गए। जिन लोगों के जीवन के अभिन्न हिस्सा पेड़-पौधे थे, वे शहर में आकर कंक्रीट के जंगल में बस गए। यह देश के विकास के लिए अच्छा भी रहा था। लेकिन कोरोना जैसी विश्विक बीमारी ने एक बार फिर से विकास के इन रास्तों की कलई खोल दी है।
हमारी अर्थव्यवस्था फिर से बंद अर्थव्यवस्था के स्वरूप में आ गई है। इसके अपने फायदे और नुकसान दोनों हैं। कृषि पर निर्भरता और कृषि के क्षेत्र में लोगों के द्वारा जुड़नें की रफ्तार को देखने के लिहाज से ऐसा लगता है कि कृषि में उत्पादन खूब बढे़गा। लेकिन यहां पर मार्केट का डिमांड-सप्लाई का नियम भी चलेगा। अगर ज्यादा माल आया तो स्वाभाविक तौर पर फिर से अनाज की कीमतें घटेंगी और खेती घाटे का सौदा हो जाएगी। इन सब चीजों को अगर नियोजित तरीके से किया जाय तो खेती किसानी से जुड़ने वाले लोगों के इस लॉकडाउन में किये गए कार्य से भविष्य में काफी लाभ कमाया जा सकता है। किसान खेती के कार्य के साथ-साथ अपने खेतों के किनारे पेड़ लगायें या फिर पेड़ों के बागीचे लगायें जिससे कोरोना के बाद इन पेड़ों के तैयार होने से काफी फायदा होगा। ये आज की गई मेहनत की डिपोजिट (फिक्स जमा) से आने वाले समय में करोड़ों के पेड़ और फल तैयार होंगे उससे देश को शुद्ध हवा, किसानों के लिए आय का जरिया विकसित होगा।
कोरोना परिदृश्य
भारत में कोरोना संकट के कारण करोड़ों मजदूर बेरोजगार हुए हैं, वहीं निजी प्राइवेट नौकरी करने वाले लोगों के सामने भी रोजगार बचाने का गम्भीर संकट है। इस परिदृश्य में शहरों से निराश लौट चुके लोग अपने रोजी के रास्ते को अपने गांवों में तलाश रहे हैं। लॉकडाउन में हुई असुविधाओं और दूसरे सरकारों द्वारा कमजोर प्लानिंग की वजह से खड़ी होने वाली दिक्कतों की वजह से बहुत से लोगों ने यह मन बना लिया है कि वो लौटकर वापस शहर नहीं जायेंगे। कोरोना काल में कृषि से जुड़ने वाले लोगों की तादाद काफी रही है इनमें भी युवाओं की संख्या काफी है। जो लोग शहरों में रोजगार कर रहे थे वो गावों में आकर खेती में लग गए हैं। नतीजतन खेती में उत्पादन के बढने के काफी आसार हैं। इस परिस्थिति में हमे बड़े बाजार की जरूरत होगी अगर हमारे उत्पादन को खरीदने के लिए निर्यात संवर्धन इकाइयों का विकास नहीं किया जाएगा तब तक इस बढे उत्पादन से किसानी के कार्य में लगे लोगों को कोई फायदा नहीं होगा। बाजार की अनुपलब्धता की वजह से दाम गिरेंगे। खेती के लागत और खेती से मिलने वाली रकम में ज्यादे अंतर नहीं होगा। या सच कहें तो खेती घाटे का सौदा हो जायेगी। इस परिस्थिति में किसान अगर अपनी सोच को प्रगतिशील करते हुए खेती के साथ साथ पौधारोपड़ का कार्य करे तो खेती जहां पर तात्कालिक तौर पर जीविका का साधन बनेगी। इसके लिए किसान खेती के साथ-साथ अपने खेतों के किनारे पर पेड़ (सागौन, शीशम, पोपुलर, सफेदा ) लगायें या फलों (आम, अमरुद, केला, नीबू और मौशामी ..) आदि के बगीचे लगायें। आज उनके द्वारा की गई फिक्स डिपोजिट आने वाले 15 से 20 वे साल में मिलेगा। जबतक रोजगार नहीं है तब तक लोगों को कृषि के साथ साथ कीमती लकड़ियों व फलदार वृक्षों की खेती करनी चाहिए।
पलायन के कारण शहरों में काम कर रहे युवाओं का झुकाव भी खेती की तरफ बढ़ा है
हालिया दिनों में देश के युवाओं में कृषि कार्य के प्रति खूब आकर्षण बढ़ा है फिर भी कृषि कार्य में इनकी संख्या कम है। कोरोना संकट में प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की स्थिति पिछले कुछ महीने में काफी खराब हुई है कुछ उच्च पदों को छोड़ दिया जाए तो मध्यम और नीचे स्तर पर वेतन बहुत ही कम हैं. जाहिर है, उतने वेतन से महानगरों में रह पाना मुश्किल है. ऐसे में जिनके पास गांव में खेती-बारी है, वो ऐसे सफल किसानों से प्रेरित होकर इधर आना चाहते हैं। जिनमें थोड़ा धैर्य होगा आयर कुछ पूंजी भी होगी, वो निश्चित तौर पर सफल भी होंगे." अगर उस समय सरकार इन्हें आर्थिक मदद करे या किफायती दरों पर लोन की व्यवस्था कर दे तो सोने पर सुहागा साबित होगा।
सरकार की रोजगार मुहैया कराने की कोशिश
उत्तर प्रदेश और बिहार में लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के कारण अपने राज्यों की ओर लौटे हैं और ये सिलसिला अभी जारी है. यूपी सरकार प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मुहैया कराने की व्यापक कार्ययोजना तैयार कर रही है. राज्य के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी कहते हैं, "ऐसे लोगों को मनरेगा और दूसरी योजनाओं के तहत काम मिल सकेगा." अवनीश अवस्थी के मुताबिक, जो प्रशिक्षित श्रमिक हैं, उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार काम देने की योजना बनाई जा रही है ताकि आने वाले दिनों में राज्य से पलायन को रोका जा सके.
हालांकि कृषि क्षेत्र में निवेश की अभी उतनी संभावनाएं नहीं हैं लेकिन यदि व्यापक पैमाने पर युवा इस ओर आकर्षित होते हैं तो निश्चित तौर पर इस दिशा में भी सरकारी योजनाएं बनेंगी.
बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के हर हिस्सों में प्रवासी मजदूर कोरोना महामारी के आने के बाद अपने-अपने राज्य लौट आये। इन लोगों के अपने राज्य में आने से यहां की सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती इन्हें रोजगार देने की भी है इन राज्यों की सरकारें में प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैय्या कराने की योजना भी बना रही हैं। दूसरे राज्यों से पलायन करके अपने राज्य में वापस आ चुके लोगों को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम देने की योजना बनाई जा रही है बहुत सी सरकारें इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में स्वयंसेवी संस्थाओं (SHGs) की मदद से ग्रुप बनाकर काफी लोग रोजगार प्राप्त करते हैं ऐसी संस्थाओं को देशव्यापी बनाया जाय इस माध्यम से पेड़ लगाने के कार्य को बढ़ावा दिया जाय। केंद्र सरकार के उधोग और वाणिज्य मंत्रालय भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की संस्था एपिडा की ओर से क्षेत्रीय किसानों को इस दिशा में प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. एपिडा की मदद से ढेर सारे किसान फल,सब्जी और अन्य कृषि उत्पाद को पैदा करते हैं तथा इसको यूरोप और मध्य एशिया के देशों को भेजते हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद ऐसे देशों को सामान भेजने में दिक्कत हो रही है। मनरेगा में भी पेड़ लगावो कार्यक्रम शुरू किया जायइ इससे ग्राम सभा को भी एक बड़े संसाधन दिए जा सकते हैं।
बाजार पर दबाव किसानों का नुकसान, पौधारोपड़ का कार्य ही किसानों की आय बढाने का मार्ग करेगा आसन
हम जिन प्रगतिशील किसानों को देख रहे हैं जिन्होंने कृषि क्षेत्र में सफलता का तमगा हासिल किया है, वो खाद्यान्न की ओर नहीं बल्कि फल, सब्जी, फूल, औषधीय पौधों इत्यादि के उत्पादन की ओर झुके हैं. इस क्षेत्र में अभी भी बहुत जरूरत और संभावनाएं हैं." इसके साथ पेड़ लगाने के लिए जागरूकता और सहयोग के लिए कार्यक्रम चलें तो इस समय किये गए मेहनत से आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को काफी तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। हमें इस समय खाद्यान्न पर फोकस करने के साथ साथ पेड़ लगाने पर फोकस करना चाहिए क्युकि खाद्यान्न की आपूर्ति उतनी ही होगी मार्केट में ज्यादे माल होने से रेट भी गिरेंगे। पेड़ लगानें से और पेड़ों के तैयार होने के बीच में मार्किट की जरूरत नही होती तब तक लॉकडाउन के बाद जब मार्किट पूरी तरह से खुलेगा तो इंनके उत्पाद भी मार्केट में आकर किसानों के साथ साथ देश के आय का बड़ा जरिया बनेंगे कुल मिलाकर आज जमा की गई मेहनत भविष्य में काफी फलदाई होगा।
22 मार्च 2020 को लॉक डाउन लगने के बाद शहरों में कार्य करने वाले कामगार लॉक डाउन के बाद बेरोजगार हो गए। जब यह लॉकडाउन बढ़ने लगा तो ये लोग अपने मकानों के किराये देने में अक्षम होते गए। लॉक डाउन बढ़ने के साथ-साथ इन लोगों का धैर्य भी जाता रहा अंततः ये लोग पूरा काम धाम समेटकर बोरिया बिस्तर के साथ अपने गावों की तरफ लौटने लगे। गावों की तरफ आने के समय इनके कृषि कार्य से जुड़नें की सम्भावना भी बढती गईं। ये अपने गावं आये और कृषि से जुड़ भी चुके हैं। इन लोगों नें गर्मी के समय में लौकी, भिंडी, खरबूज, तरबूज, ककड़ी आदि की फसल बोकर पैसे कमाने का एक जरिया बनाया था। सफल भी हुआ है लेकिन कृषि पर दबाव बढ़ने लगा है।
सामूहिक वानिकी भी हो सकता है बेहतर विकल्प
ढेर सारे युवा कोरोना काल में दूसरे शहरों से अपने गावं पहुच चुके हैं। ये युवा गावं में ही कृषि से जुड़े उद्योगों में ही अपने भविष्य की सम्भावनाएं तलाश रहे हैं। ऐसे युवाओं को एक समूह बनाकर सामूहिक वानिकी का कार्यक्रम चलाना चाहिए। सरकार भी ऐसे समूहों को बंजर जमीने मुहैय्या कराए तो काफी फायदा मिलेगा। इससे मिलने वाले उत्पादों (लकड़ी, फूलों, और फलों....) के एक बड़े हिस्से पर इनका अधिकार दिया जाय अगर ऐसा प्रावधान करके सरकार ऐसे युवाओं को आगे लेकर आती है तो कोरोना काल में ही आने वाले समय के लिए देश में हरियाली क्रांति का आधार बनाया जा सकता है।
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