History of Fireworks in India: पटाखों का इतिहास बेहद दिलचस्प, जानिये चीन से भारत तक पहुंचने का सफर

History of Fireworks in India: पटाखों का इतिहास बेहद दिलचस्प, जानिये चीन से भारत तक पहुंचने का सफर
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राजधानी दिल्ली में भले ही 'पटाखों का सफर' थम गया है, लेकिन इसकी यात्रा बेहद ही रोचक है। तो चलिए बताते हैं चीन से भारत तक पटाखों के पहुंचने की कहानी...

दिवाली का सीजन हो और पटाखे न हो ऐसा कैसे हो सकता है। वैसे दिवाली का मतलब पटाखे जलाना नहीं होता। दिवाली का मतलब खुशियां और प्यार फैलाना होता है। बावजूद इसके ज्यादातर लोगों का मानना है कि पटाखें न फोड़े जाएं तो खुशियां अधूरी रह जाएंगी। यही वजह है कि न केवल दिवाली बल्कि शादियों और तमाम आयोजनों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। पटाखें जलाना तो वैसे अधिक्तर लोगों को पसंद होता है, लेकिन क्या आप इसके इतिहास के बारे में जानते है ? अगर नहीं तो हम आपको बताते है पटाखों के भारत पहुंचने तक की दिलचस्प कहानी।


अगर इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो हम सीधा चीन पहुंच जाएंगे। हम सब जानते है कि पटाखों में बारूद (Gunpowder) का इस्तेमाल किया जाता है। और बारूद की खोज चीन में ही छठी से नौंवी सदी के बीच में किया गया था। तांग वंश (Tang Empire) के दौरान ही बारूद की खोज हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब छठी सदी में चीनी लोग बांस को जलाते थे तो उसमे से कुछ फूटने की आवाजें आती थी। जो कि एयर पॉकेट्स में मौजूद कुछ प्राकृतिक पटाखें थे। इसके बाद से ही चीन में बारूद की खोज शुरू हो गई। चीन के लोगों की मान्यता है कि इससे बुरी शक्तियों का नाश होता है।

बारूद से पटाखा बनाने की बारी


चीन ने इस बात तो केवल धार्मिक मान्यतों तक ही सीमित नहीं रहने दिया बल्कि उसपर रिसर्च शुरू कर दी, जिसके बाद पटाखों का निर्माण शुरू हुआ। चीन में ही पहली बार पोटेशियम नाइट्रेट (potassium nitrate), सल्फर (Sulphur)और चारकोल (charcoal) को मिलाकर बारूद का आविष्कार किया। इस बारूद को बांस के खोल में भरकर जब जलाया गया, तो इस बार का विस्फोट सबसे तगड़ा हुआ। इसके बाद से ही बारूद बनाने का प्रचलन खुरू कर दिया गया। बदलते समय में बांस की जगह कागज ने ले ली।

मुगल राज में भारत में शुरू हुआ पटाखों का प्रचलन


मुगलों के राज में धीरे-धीरे बारूद का भारत में आगमन शुरू हुआ। पानीपत का युद्ध, उन बात का साझी है, जब भारत में पहली बार लड़ाई के दौरान बारूद, आग्नेयास्त्र और तोप का इस्तेमाल किया गया था। एक तरह से ये कह सकते है कि पानीपत की इस युद्ध में बाबर को जीत दिलाने का पुरा श्रेह इन बारूदों को जाता है क्योंकि इन तोपो के आगे इब्राहिम लोधी टिक नहीं पाया और इस तरह बाबर ने युद्ध जीत लिया।


पानीपत के पहले युद्ध के बाद ही भारत में बारूद का परिचय तो ही गया था। जिसके कुछ समय बाद आतिशबाजियां भी यहां पहुंची। अकबर का शाशन आने तक आतिशबाजी शादी-ब्याह और उत्सवों का हिस्सा बनने लगी। आतिशबाजी राजसी ठाठ-बाट की पहचान बन चुकी थी।


उस वक्त बारूद बहुत महंगा हुआ करता था, इसलिए लंबे समय तक बारूद केवल राजसी घरानों तक ही सीमित था। उस वक्त बारूद अमीरो के मनोरंजन का साधन हुआ करता था। उस समय शादी या किसी उत्सव में आतिशबाजी दिखाने के लिए अलग से कलाकार हुआ करते थे, जिनको आतिशबाज के नाम से जाना जाता था। आज भारत में सबसे बड़ा पटाखा बनाने का केंद्र तमिलनाडु का शिवकाशी में है। शुरूआत में मॉर्डन पटाखे बनाने का दौर अंग्रेज सरकार ही भारत में लेकर आई थी।

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